जय हिन्द का युद्धघोष शायद की कोई शत्रु सुनना चाहता होगा। किन्तु रक्षा क्षमताओं में बड़े उन्नयन अटके हुए हैं।
रक्षा आवश्यकताएं, विशाल और बढ़ती हुईं
भारत विश्व के सबसे बडे हथियार एवं रक्षा उपकरण आयात करने वाले देशों में से एक है। यह हमारे शत्रुतापूर्ण व्यवहार करने वाले पड़ोसियों से स्वयं की सुरक्षा की हमारी आवश्यकताओं को प्रतिबिंबित करता है। परंतु अनेक स्थानों से इस प्रकार के प्रश्न उठाये जाते हैं कि क्या केवल आधुनिक विदेशी हथियारों और रक्षा उपकरणों की खरीद हमारी रक्षा तैयारी की दृष्टि से शुभ संकेत है? या क्या इसे उपयुक्त रक्षा तैयारी कहा जा सकता है? इन प्रश्नों का उत्तर एक स्पष्ट नहीं है।
जब नरेंद्र मोदी २०१४ में प्रधानमंत्री बने, तब उन्हें विरासत में मिली एक विशालकाय रक्षा नौकरशाही, और एक सैन्य व्यवस्था जिसमें अनेकों क्षमतागत कमियां थीं। कुछ विश्लेषकों ने कहा कि भारत को कम से कम ३०० लड़ाकू विमान, १०-१२ पनडुब्बियां, ९००-१००० लड़ाकू हेलीकाप्टर, सात युद्धक पोत (फ्रिगेट) और अनेक हज़ार तोपें चाहिए थी। मोदी ने, और बाद में पर्रिकर ने, बड़े बदलाव करने शुरू किये। २०१७ में गोवा की राजनीतिक विवशताओं के चलते पर्रिकर ने पद छोड़ दिया और पुनः अरुण जेटली कार्यवाहक रक्षा मंत्री बने।
भारत जैसा देश कितने समय तक अपने रक्षा बलों के लिए विदेशी रक्षा उपकरणों को जमा करने पर निर्भर रहेगा? विभिन्न देशों से रक्षा उपकरणों की खरीद समस्या का दीर्घकालीन समाधान नहीं है। यह निश्चित रूप से स्वदेशी रक्षा प्रौद्योगिकी विकसित करने के लिए तरीके प्रदान नहीं करता जो हमारे लिए बहुत आवश्यक है। जिस प्रकार से भारत को विश्व में एक शक्तिशाली लोकतंत्र के दर्जे का स्थान प्राप्त है, इसे हमारे स्वदेशी अत्याधुनिक रक्षा उपकरणों के विकास की दृष्टि से समरूप होना चाहिए।
[इस बोधि को अंग्रेजी में पढ़ें ##link##]
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मेक इन इंडिया?
वर्ष 2015 से यह देखा जा रहा है कि दीर्घकालीन परिप्रेक्ष्य में इस दिशा में कुछ अत्यंत सकारात्मक पहलें की गई हैं। इन पहलों में निम्न चार कदम मुख्य रूप से दिखाई देते हैं।
इन पहलों में पहली है रक्षा क्षेत्र में 'मेक इन इंडिया' नीति । दूसरा, अब सरकारी अनुमोदन मार्ग से रक्षा क्षेत्र में 100 प्रतिशत विदेशी प्रत्यक्ष निवेश की अनुमति प्रदान की गई है, बशर्ते यह आधुनिक प्रौद्योगिकी तक पहुँच में परिणामित होता है। तीसरा है छोटे हथियारों और गोला बारूद निर्माण में एफडीआई सीमा की प्रयोज्यता। चौथा है रक्षा विनिर्माण के क्षेत्र में सार्वजनिक क्षेत्र को उपलब्ध कराए गए प्रोत्साहन समाप्त करना और इस प्रकार से सार्वजनिक क्षेत्र, घरेलू निजी क्षेत्र के साथ ही मूल उपकरण निर्माताओं (ओरिजिनल इक्विपमेंट मैनुफैक्चरर्स - ओईएम OEM) को भी एक स्तर पर लाना। इनके कारण रक्षा विनिर्माण क्षेत्र में प्रतिस्पर्धा में वृद्धि होगी।
विधानसभा २०१७ चुनावों ने उस मोदी सिद्धांत को पुनः समर्थन दिया है जिससे भारत के हितों को एक सकारात्मक सोच के साथ विदेशों में संवर्धित किया जाता है।
पढ़ें [##leaf## मोदी सिद्धांत] के बारे में, और [##leaf## २०१७ विधानसभा चुनावों के विश्लेषण] के बारे में
टाटा मोटर्स, रिलायंस इंडस्ट्रीज, जैसे भारतीय विनिर्माण दिग्गज अब और अधिक प्रतिस्पर्धा के साथ रक्षा क्षेत्र विनिर्माण प्रवेश कर सकेंगे। रक्षा क्षेत्र में 30 प्रतिशत की ऑफसेट नीति को जारी रखा गया है जिसके तहत दूसरे देशों को विक्रय करने वाली विदेशी कंपनियों को एक निर्धारित प्रतिशत मात्रा में सामान करता देश से लेने के अनिवार्यता की गई है ताकी करता देश के विदेशी मुद्रा भंडार पर तनाव न पडे। (नीचे बोधि कडी का संदर्भ लें)
स्वदेशी रक्षा विनिर्माण क्षमता विकसित करना सरकार की शीर्ष प्राथमिकताओं में से एक है। भारत में इंजीनियरिंग प्रतिभा और कौशल की कमी नहीं है, जैसा कि हमने सूचना प्रौद्योगिकी, औषधि और अन्य महत्वपूर्ण विनिर्माण क्षेत्रों में दिखा दिया है। आवश्यकता इस प्रतिभा को पोषित करने, उसे अवसर प्रदान करने और उसे और निखारने की है ताकि इसका उपयोग इस महत्वपूर्ण क्षेत्र में किया जा सके। यदि हम नई रक्षा खरीद प्रक्रिया (डीपीपी) 2016 को देखें तो यह स्पष्ट हो जाता है कि सरकार का ध्यान 'मेक इन इंडिया' पर केंद्रित है और आयात से खरीद उसकी अंतिम प्राथमिकता होगी।
[Read this Bodhi in English ##link##]
नवम्बर २०१६ में, भारतीय नौसेना में कोलकाता-श्रेणी के निर्देशित-मिसाइल विध्वंसक जहाजों में तीसरा - आई.एन.एस. चेन्नई (डी ६५) - सागर में उतारा गया। इसे प्रोजेक्ट १५-ए कोडनेम के तहत मझगांव डॉक्स लिमिटेड मुम्बई में बनाया गया, और यह इस प्रोजेक्ट का अंतिम जहाज होगा। इसकी अन्य साथी हैं आई.एन.एस. कोलकाता और आई.एन.एस. कोच्ची। एक और रोचक घटना रही है भारत के द्रुतगति मार्गों पर लड़ाकू हवाई जहाजों को उतारने और उड़ाने की कवायदें। इसीके तहत, आगरा-लखनऊ द्रुतगति मार्ग पर नवम्बर २०१६ में परीक्षण भी किये गए।
भारत का रक्षा बजट कम होने वाला नहीं है!
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- संबंधित विषय पर अधिक अध्ययन हेतु, कुछ और बोधियाँ
पढ़ें [##leaf## मोदी सिद्धांत] के बारे में, और [##leaf## २०१७ विधानसभा चुनावों के विश्लेषण] के बारे में
टाटा मोटर्स, रिलायंस इंडस्ट्रीज, जैसे भारतीय विनिर्माण दिग्गज अब और अधिक प्रतिस्पर्धा के साथ रक्षा क्षेत्र विनिर्माण प्रवेश कर सकेंगे। रक्षा क्षेत्र में 30 प्रतिशत की ऑफसेट नीति को जारी रखा गया है जिसके तहत दूसरे देशों को विक्रय करने वाली विदेशी कंपनियों को एक निर्धारित प्रतिशत मात्रा में सामान करता देश से लेने के अनिवार्यता की गई है ताकी करता देश के विदेशी मुद्रा भंडार पर तनाव न पडे। (नीचे बोधि कडी का संदर्भ लें)
स्वदेशी रक्षा विनिर्माण क्षमता विकसित करना सरकार की शीर्ष प्राथमिकताओं में से एक है। भारत में इंजीनियरिंग प्रतिभा और कौशल की कमी नहीं है, जैसा कि हमने सूचना प्रौद्योगिकी, औषधि और अन्य महत्वपूर्ण विनिर्माण क्षेत्रों में दिखा दिया है। आवश्यकता इस प्रतिभा को पोषित करने, उसे अवसर प्रदान करने और उसे और निखारने की है ताकि इसका उपयोग इस महत्वपूर्ण क्षेत्र में किया जा सके। यदि हम नई रक्षा खरीद प्रक्रिया (डीपीपी) 2016 को देखें तो यह स्पष्ट हो जाता है कि सरकार का ध्यान 'मेक इन इंडिया' पर केंद्रित है और आयात से खरीद उसकी अंतिम प्राथमिकता होगी।
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नवम्बर २०१६ में, भारतीय नौसेना में कोलकाता-श्रेणी के निर्देशित-मिसाइल विध्वंसक जहाजों में तीसरा - आई.एन.एस. चेन्नई (डी ६५) - सागर में उतारा गया। इसे प्रोजेक्ट १५-ए कोडनेम के तहत मझगांव डॉक्स लिमिटेड मुम्बई में बनाया गया, और यह इस प्रोजेक्ट का अंतिम जहाज होगा। इसकी अन्य साथी हैं आई.एन.एस. कोलकाता और आई.एन.एस. कोच्ची। एक और रोचक घटना रही है भारत के द्रुतगति मार्गों पर लड़ाकू हवाई जहाजों को उतारने और उड़ाने की कवायदें। इसीके तहत, आगरा-लखनऊ द्रुतगति मार्ग पर नवम्बर २०१६ में परीक्षण भी किये गए।
भारत का रक्षा बजट कम होने वाला नहीं है!
इस प्रकार यह स्पष्ट है कि रक्षा तैयारी का अर्थ केवल विदेशी रक्षा उपकरणों, हथियारों और गोला बारूद की खरीद करके उसे जमा करना नहीं है बल्कि इसका अर्थ है इन सभी वस्तुओं का विनिर्माण अत्याधुनिक तकनीक के साथ स्थानीय स्तर पर करना, और इसका निर्यात भी करना। इजराइल जैसे देश ने पिछले पांच दशकों के दौरान यह करके दिखाया है, उससे भारत काफी सबक ले सकता है।
इस ग्राफ में एक दशक की भारतीय रक्षा बजट की पूरी कहानी है, और पूँजी बजट (कैपिटल बजट) को बढ़ाने की आवश्यकता स्पष्ट दिखती है।
भारतीय सामरिक रक्षा में पहले से ही अग्नि-१, २, ३ और पृथ्वी मिसाइलें मौजूद हैं जो उन्हें ३००० कि.मी. से अधिक की पहुँच क्षमता प्रदान करती हैं और एक प्रभावशाली अवरोध क्षमता (deterrence capability) भी प्रदान करती है। अग्नि ४ और ५ का वर्णन आगे है। अग्नि ६ आ रही है!
इस ग्राफ में एक दशक की भारतीय रक्षा बजट की पूरी कहानी है, और पूँजी बजट (कैपिटल बजट) को बढ़ाने की आवश्यकता स्पष्ट दिखती है।
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पृष्ठ २ पर जारी
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स्वदेशीकरण की ज्वाला - अग्नि
दक्षिण एशिया, और विश्व-भर में, तेज़ी से बदलती सामरिक स्थितियों के चलते, भारत को त्वरित गति से रक्षा कवच बढ़ाना पड़ रहा है। दिसंबर २६, २०१६ को, भारत के एम.टी.सी.आर. (मिसाइल टेक्नोलॉजी कंट्रोल रेजीम - प्रक्षेपास्त्र तकनीक नियंत्रण प्रशासन) का हिस्सा बनने के बाद, अग्नि - ५ का प्रथम सफल प्रक्षेपण हुआ। अब्दुल कलम द्वीप, ओडिशा तट से डी.आर.डी.ओ. (रक्षा अनुसन्धान और विकास संगठन) ने इसे अंजाम दिया। अग्नि ५ एक अंतरमहाद्वीपीय बैलिस्टिक मिसाइल है जो सतह से सतह मार करती है, और अग्नि परिवार की सबसे नवीन सदस्य है। ये चीन के सबसे उत्तरी इलाकों को भी निशाना बना सकती है। तुरंत ही, चीन की प्रतिक्रिया आई जिसने ऊपरी तौर पर तो चिंता नहीं दिखाई, किन्तु कहा कि उसे उम्मीद है कि ये परीक्षण संयुक्त राष्ट्र के मानदंडों पर खरा उतरता हो!
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- भारतीय सुरक्षा सेवाओं के प्रमुख
- भारतीय रक्षा बलों के वर्तमान प्रमुख निम्नानुसार हैं : (1) थलसेना - जनरल बिपिन रावत (Chief of Army Staff), (2) वायुसेना - एयर चीफ मार्शल बिरेंदर सिंह धनोआ (Chief of Air Staff), (3) नौसेना - एडमिरल सुनील लांबा (Chief of Navy Staff)
भारतीय सामरिक रक्षा में पहले से ही अग्नि-१, २, ३ और पृथ्वी मिसाइलें मौजूद हैं जो उन्हें ३००० कि.मी. से अधिक की पहुँच क्षमता प्रदान करती हैं और एक प्रभावशाली अवरोध क्षमता (deterrence capability) भी प्रदान करती है। अग्नि ४ और ५ का वर्णन आगे है। अग्नि ६ आ रही है!
अग्नि ५ सिस्टम की उल्लेखनीय विशेषताएं हैं
भारत ने पुनः परमाणु-सक्षम अग्नि-४ मिसाइल का सफलतापूर्वक परीक्षण किया (०२ जनवरी २०१७)। सतह-से-सतह पर मार करने वाली अग्नि-४ की मारक क्षमता ४००० कि.मी. है, इसकी लंबाई २० मी. और वजन १७ टन है। अग्नि-4 मिसाइल पांचवी पीढ़ी के ऑन-बोर्ड कंप्यूटर और वितरित संरचना से सुसज्जित है। यह मिसाइल उड़ान के दौरान होने वाली गड़बड़ियों से स्वयं को मार्गदर्शित करने और उन्हें सुधारने में सक्षम है।
[##leaf## जानें भारत के सुरक्षा /अर्धसैनिक बलों के बारे में]
तकनीकी रूप से प्रगत मिसाइलों के जखीरे के अलावा, वायुसेना को भी तुरंत प्रोन्नत करना आवश्यक है। जैसा कि निवृत्तमान वायुसेना अध्यक्ष अरूप राहा ने कहा : "३६ राफाल लड़ाकू विमान खरीदने का निर्णय अच्छा है, किन्तु नाकाफी है, चूंकि भारत को २००-२५० और ऐसे मध्यम-वज़न श्रेणी के विमान चाहिए ताकि क्षमता का पूर्ण वर्णपट बने, और शत्रुओं पर युद्धक बढ़त हो। सरकार स्वर अभी स्वीकृत स्क्वाड्रन शक्ति है ४२, जो एक संख्या है। हमें क्षमता का मिश्रण भी चाहिए। भारत के पास भारी-वज़न के लड़ाके हैं - Su30 - MKI - जो ३०-४० वर्ष चलेंगे। हलके वज़न के वर्णपट में १२३ तेजस हलके लड़ाकू विमान हमने मांगे हैं। हमें ऐसी एक और विनिर्माण श्रेणी चाहिए।"
चीन ने सतत अपनी वायु शक्ति निर्मित की है। जैसे ही चीन ने ज्हुहाई हवाई प्रदर्शन (नवंबर २०१६) में अपने पांचवी पीढ़ी के स्टेल्थ लड़ाकू जेट विमान जे- २० का प्रदर्शन किया तो अपने व्यापार के नुकसान के भय से रूस ने तुरंत चीन को चार सुखोई - एसयू ३५ उन्नत लड़ाकू जेट विमान सौंप दिए। भारत के पास एसयू-३० जेट विमान हैं। चीन ने अपने पांचवी पीढ़ी के नवीनतम संस्करण के स्टेल्थ (गुप्त / चुपके से चलने वाला) लड़ाकू जेट विमान जे-३१ का भी सफल परीक्षण किया है (जिसे अब एफसी - ३१ गीरफाल्कन नाम दिया गया है)।
बगावतों और आतंकी हमलों के रूप में भारत ने अनेकों आतंरिक चुनौतियों का सामना किया है. आज अर्धसैनिक बलों की एक व्यापक ढांचागत व्यवस्था तैयार है जिसे केंद्रीय सशस्त्र पुलिस बल (सीएपीएफ) भी कहा जाता है. हमने इसपर एक बोधि सार अलग से है जो आप अवश्य पढ़ें
[##leaf## भारतीय रक्षा और अर्धसैनिक बल - in English]
भारत ने अनेक मोर्चों पर महत्वाकांक्षी चीनियों की ओर से लगातार टकराव का सामना किया है। २०१४ से ही, मोदी सरकार ने चीन से रिश्ते सुधारने का प्रयास किया है, किन्तु चीन ने भारत की तीनों बड़ी इच्छाओं को मानने से इनकार किया है - (१) भारत पाकिस्तान को "आतंक का प्रमुख प्रायोजक (Mother-ship of terrorism)" बताकर विश्व में अलग-थलग करना चाहता है, (२) भारत की अपनी "महा-शक्ति प्रतिष्ठा" हासिल करने के प्रयासों में चीन मदद करे, और रह न रोके, और (३) चीन स्वयं को हिन्द क्षेत्र में (IOR) आगे न बढ़ाये और भारत के प्रभाव क्षेत्र का सम्मान करे। किन्तु इन सभी मुद्दों पर चीन की असंवेदनशीलता देखते हुए, भारत वीघर, फालुन गोंग और तिब्बती पृथकतावादियों को भारत निमंत्रित करता रहा है। २०१७ में, सरकार अब चीन के विरूद्ध "तिब्बत कार्ड" तैयार कर सकती है। चीन दलाई लामा को किसी भी प्रकार की वैश्विक मान्यता मिलने से चिढ जाते हैं, और भारत अब उन्हें एक बोझ नहीं वरन एक आस्ति (asset) मान कर चलना चाहता है। दिसंबर २०१६ में, चीनियों ने भारत की कड़ी आलोचना की कि क्यों दलाई लामा को राष्ट्रपति भवन दिल्ली में एक आयोजन में बुलाया गया, और साथ ही उन्होंने मंगोलिया के साथ अपनी सीमा भी सील कर दीं, चूंकि नवम्बर में चार दिन की यात्रा पर दलाई लामा वहां गए थे। सीमा बंद होने से मंगोलिया के वस्तु निर्यात बुरी तरह से प्रभावित हुए थे। इस तरह के तुनकमिजाज व्यवहार से, ये असंभव नहीं है कि चीनी अचानक किसी दिन कुछ कर बैठें।
आज ये कल्पना की जाये कि चीनीयों ने यदि नेहरू के आह्वान "हिंदी चीनी भाई भाई" को स्वीकार कर लिया होता, बजाय भारत के विरूद्ध अपनी ताकत लगाने के, तो कैसा होता। एक भविष्य की मित्रतापूर्ण दोस्ती मान कर नेहरू ने संयुक्त राष्ट्र की उस सभा का भी विरोध किया था जिसमें तिब्बत पर जबरन कब्जे के चीनी प्रयास की आलोचना थी। समय ने भी क्या करवट ली है! {एक पठनीय दस्तावेज, यहाँ} यह सुनिश्चित करने के लिए कि हम बिना तैयारी के न रहें, सरकारें काफी लंबे समय से तैयारी करती रही हैं। अब हम उसका जायजा लेंगे।
पृष्ठ ३ पर जारी
१५ फरवरी २०१७ को, भारत ने एक बड़ा कदम लिया जब इसरो (भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन) ने कार्टोसैट-२ उपग्रह प्रक्षेपित किया, जो पृथ्वी अवलोकन (अर्थ ऑब्जरवेशन) करने में सूक्ष्मता से सक्षम है। अतः, अनेकों नागरिक उद्देश्यों के अलावा, इसका लक्ष्य है कि भारत के प्रति दुर्भावना रखने वाले देशों - चीन और पाकिस्तान - पर नज़र रखना। आप इसका ज़बरदस्त विडियो अवश्य देखना चाहेंगे, है न? ये रहा!
(कुल अवधि : ५:३० मिनिट, मूल स्त्रोत यहाँ)
किन्तु, आलोचक तुरंत सक्रिय हो गए और उन्होनें एलोन मस्क की अमेरिकी कंपनी स्पेस-एक्स के मॉडल से पैदा खतरों की ओर इशारा किया। उसपर विस्तार से पढ़ें यहाँ
[##leaf## जानें भारत के सुरक्षा /अर्धसैनिक बलों के बारे में]
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जैसा कि अमेरिका के दूसरे राष्ट्रपति जॉन एडम्स ने कहा था
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- लंबी दूरी की, एवं बहुमुखी
- अग्नि ५, ५००० कि.मी. की दूरी तक १००० किलोग्राम वजनी हथियार ले जा सकती है। अतः, यह लगभग पूरे एशिया पर हमला कर सकने में समर्थ है जिसमें पाकिस्तान और चीन हैं, और यूरोप भी। इस ठोस ईंधन सिस्टम वाली मिसाइल को एक कनस्तर से प्रक्षेपित किया गया, और इससे ये सभी-मौसम-योग्य और किसी भी स्थान से चलायमान-प्रक्षेपण योग्य बनती है। इससे पूर्व इसे २०१२, २०१३ और २०१५ में छोड़ा गया था।
- चपल और आधुनिक
- अग्नि ५ का वजन है ५० टन, लंबाई है १७ मीटर और ये एक बेहद चपल और आधुनिक हथियार प्रणाली है। सतह-से-सतह मार करने वाली इस मिसाइल को फायर-एंड-फॉरगेट (छोडो और भूल जाओ) भी कहते हैं। इसे आसानी से ढूंढ नहीं सकते क्योंकि ये पहले अंतरिक्ष में जाती है और फिर मार करती है।
- एक बड़ा जखीरा
- भारत के पास पहले से ही अग्नि १, २, ३ और ४ प्रणालियाँ हैं, और ध्वनि से तीव्र चलने वाली ब्रह्मोस मिसाइल भी, जो विश्व-स्तरीय है। अग्नि ५ मिसाइल प्रणाली भारत का "शांति का हथियार" है
- विकास चक्र (आई.जी.एम.डी.पी.)
- इस श्रृंखला की पहली मिसाइल, अग्नि १, समेकित निर्देशित प्रक्षेपास्त्र विकास कार्यक्रम (आईजीएमडीपी - Integrated Guided Missile Development Programme) के तहत विकसित हुई, और १९८९ में परीक्षण हुआ। अग्नि १ = ७०० कि.मी. पहुँच, अग्नि २ = २,००० कि.मी. पहुँच, अग्नि ३ / ४ = २,५०० कि.मी. - ३,५०० कि.मी. पहुँच
- एक नया सदस्य आने वाला है!
- अग्नि ६ अपने विकास के प्रारंभिक चरण में है, और ये अत्याधुनिक हथियार पनडुब्बियों और भूमि दोनों से छोड़ा जा सकेगा, और ८०००-१०,००० कि.मी. तक मार कर सकेगा। किसी भी आक्रांता का भविष्य तबाह करने की इसमें निश्चित क्षमता होगी
भारत ने पुनः परमाणु-सक्षम अग्नि-४ मिसाइल का सफलतापूर्वक परीक्षण किया (०२ जनवरी २०१७)। सतह-से-सतह पर मार करने वाली अग्नि-४ की मारक क्षमता ४००० कि.मी. है, इसकी लंबाई २० मी. और वजन १७ टन है। अग्नि-4 मिसाइल पांचवी पीढ़ी के ऑन-बोर्ड कंप्यूटर और वितरित संरचना से सुसज्जित है। यह मिसाइल उड़ान के दौरान होने वाली गड़बड़ियों से स्वयं को मार्गदर्शित करने और उन्हें सुधारने में सक्षम है।
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वायुसेना आस्तियां
तकनीकी रूप से प्रगत मिसाइलों के जखीरे के अलावा, वायुसेना को भी तुरंत प्रोन्नत करना आवश्यक है। जैसा कि निवृत्तमान वायुसेना अध्यक्ष अरूप राहा ने कहा : "३६ राफाल लड़ाकू विमान खरीदने का निर्णय अच्छा है, किन्तु नाकाफी है, चूंकि भारत को २००-२५० और ऐसे मध्यम-वज़न श्रेणी के विमान चाहिए ताकि क्षमता का पूर्ण वर्णपट बने, और शत्रुओं पर युद्धक बढ़त हो। सरकार स्वर अभी स्वीकृत स्क्वाड्रन शक्ति है ४२, जो एक संख्या है। हमें क्षमता का मिश्रण भी चाहिए। भारत के पास भारी-वज़न के लड़ाके हैं - Su30 - MKI - जो ३०-४० वर्ष चलेंगे। हलके वज़न के वर्णपट में १२३ तेजस हलके लड़ाकू विमान हमने मांगे हैं। हमें ऐसी एक और विनिर्माण श्रेणी चाहिए।"
चीन ने सतत अपनी वायु शक्ति निर्मित की है। जैसे ही चीन ने ज्हुहाई हवाई प्रदर्शन (नवंबर २०१६) में अपने पांचवी पीढ़ी के स्टेल्थ लड़ाकू जेट विमान जे- २० का प्रदर्शन किया तो अपने व्यापार के नुकसान के भय से रूस ने तुरंत चीन को चार सुखोई - एसयू ३५ उन्नत लड़ाकू जेट विमान सौंप दिए। भारत के पास एसयू-३० जेट विमान हैं। चीन ने अपने पांचवी पीढ़ी के नवीनतम संस्करण के स्टेल्थ (गुप्त / चुपके से चलने वाला) लड़ाकू जेट विमान जे-३१ का भी सफल परीक्षण किया है (जिसे अब एफसी - ३१ गीरफाल्कन नाम दिया गया है)।
अर्ध सैनिक बल और केंद्रीय सशस्त्र पुलिस बल (सीएपीएफ)
बगावतों और आतंकी हमलों के रूप में भारत ने अनेकों आतंरिक चुनौतियों का सामना किया है. आज अर्धसैनिक बलों की एक व्यापक ढांचागत व्यवस्था तैयार है जिसे केंद्रीय सशस्त्र पुलिस बल (सीएपीएफ) भी कहा जाता है. हमने इसपर एक बोधि सार अलग से है जो आप अवश्य पढ़ें
[##leaf## भारतीय रक्षा और अर्धसैनिक बल - in English]
चीनी ड्रैगन से मुकाबला
भारत ने अनेक मोर्चों पर महत्वाकांक्षी चीनियों की ओर से लगातार टकराव का सामना किया है। २०१४ से ही, मोदी सरकार ने चीन से रिश्ते सुधारने का प्रयास किया है, किन्तु चीन ने भारत की तीनों बड़ी इच्छाओं को मानने से इनकार किया है - (१) भारत पाकिस्तान को "आतंक का प्रमुख प्रायोजक (Mother-ship of terrorism)" बताकर विश्व में अलग-थलग करना चाहता है, (२) भारत की अपनी "महा-शक्ति प्रतिष्ठा" हासिल करने के प्रयासों में चीन मदद करे, और रह न रोके, और (३) चीन स्वयं को हिन्द क्षेत्र में (IOR) आगे न बढ़ाये और भारत के प्रभाव क्षेत्र का सम्मान करे। किन्तु इन सभी मुद्दों पर चीन की असंवेदनशीलता देखते हुए, भारत वीघर, फालुन गोंग और तिब्बती पृथकतावादियों को भारत निमंत्रित करता रहा है। २०१७ में, सरकार अब चीन के विरूद्ध "तिब्बत कार्ड" तैयार कर सकती है। चीन दलाई लामा को किसी भी प्रकार की वैश्विक मान्यता मिलने से चिढ जाते हैं, और भारत अब उन्हें एक बोझ नहीं वरन एक आस्ति (asset) मान कर चलना चाहता है। दिसंबर २०१६ में, चीनियों ने भारत की कड़ी आलोचना की कि क्यों दलाई लामा को राष्ट्रपति भवन दिल्ली में एक आयोजन में बुलाया गया, और साथ ही उन्होंने मंगोलिया के साथ अपनी सीमा भी सील कर दीं, चूंकि नवम्बर में चार दिन की यात्रा पर दलाई लामा वहां गए थे। सीमा बंद होने से मंगोलिया के वस्तु निर्यात बुरी तरह से प्रभावित हुए थे। इस तरह के तुनकमिजाज व्यवहार से, ये असंभव नहीं है कि चीनी अचानक किसी दिन कुछ कर बैठें।
आज ये कल्पना की जाये कि चीनीयों ने यदि नेहरू के आह्वान "हिंदी चीनी भाई भाई" को स्वीकार कर लिया होता, बजाय भारत के विरूद्ध अपनी ताकत लगाने के, तो कैसा होता। एक भविष्य की मित्रतापूर्ण दोस्ती मान कर नेहरू ने संयुक्त राष्ट्र की उस सभा का भी विरोध किया था जिसमें तिब्बत पर जबरन कब्जे के चीनी प्रयास की आलोचना थी। समय ने भी क्या करवट ली है! {एक पठनीय दस्तावेज, यहाँ} यह सुनिश्चित करने के लिए कि हम बिना तैयारी के न रहें, सरकारें काफी लंबे समय से तैयारी करती रही हैं। अब हम उसका जायजा लेंगे।
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- किसी भी गलत कदम के लिए उन्हें भारी कीमत चुकानी पड़ेगी
- भारत के सामरिक हितों के विरुद्ध चीन के लगातार आक्रामक रुख ने भारत को अपनी पूर्वी सीमाओं की सुरक्षा पर भारी निवेश के लिए मजबूर किया है। इनमें से कुछ निवारक (प्रतिरोधक) उपायों के रूप में हैं तो कुछ पारंपरिक युद्धकला की सैन्य परिसंपत्तियां हैं। अब हम उन्हें सूचीबद्ध करते हैं – (ए) – निवारक उपाय (Deterrece Measures) – (1) 3000 कि.मी. तक की पहुँच वाली परमाणु-सक्षम अग्नि-3 बैलिस्टिक मिसाइल पहले ही एसएफसी (सामरिक बल कमान) में शामिल की जा चुकी है, (2) अग्नि-4 और अग्नि-5 के सफल जमीनी परीक्षण जारी हैं, और इन्हें कभी भी शामिल किया जा सकता है, (3) छह सतह-से-सतह पर मार करने में सक्षम आकाश मिसाइल स्क्वाड्रन उत्तर-पूर्व में तैनात की जा रही हैं, (4) ब्रह्मोस पराध्वनिक क्रूज मिसाइल रेजिमेंट अरुणाचल प्रदेश में तैयार की जा रही है (बी) – पारंपरिक युद्धक परिसंपत्तियां (Conventional Warfare Assets) – (1) सुखोई – 30 एमकेआई लड़ाकू विमान पहले से ही तेजपुर और चाबुआ (असम) के बीच परिचालित हो रहे हैं, (2) अरुणाचल (पासीघाट, मेचकुला, वालोंग, अलोंग, जिरो, तुतिंग) और लद्दाख (डीबीओ, न्योमा, फुकचे) में उन्नत अवतरण क्षेत्र, (3) वर्ष 2019 से बंगाल के हासीमारा ठिकाने पर पहली 18 राफेल जेट विमानों की स्क्वाड्रन रखी जाएगी, (4) छह सी-130 जे “सुपर हरक्युलिस” विमान पानागढ़ में स्थित किये जाएँगे, (5) 90,000 से अधिक सैनिकों के साथ नई माउंटेन स्ट्राइक कोर (17 वीं कोर), जिसका मुख्यालय पानागढ़ (बंगाल) में होगा, वर्ष 2021 तक पूरी तरह से तैयार हो जाएगी, (6) असम के लिकाबाली और मिस्सामारी में दो पैदल सेना डिवीज़न (36,000 सैनिक) पहले ही (वर्ष 2010) तैयार की जा चुकी हैं, (7) पूर्वी लद्दाख और सिक्किम में टी-72 टैंक। सामरिक मोर्चे पर, भारत को एशिया में अनेक नई चुनौतियों का सामना करना पड़ रहा है [वो मुद्दे हमने इस बोधि में समझाए हैं]
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पृष्ठ ३ (३ में से)
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इसरो और भारतीय रक्षा
१५ फरवरी २०१७ को, भारत ने एक बड़ा कदम लिया जब इसरो (भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन) ने कार्टोसैट-२ उपग्रह प्रक्षेपित किया, जो पृथ्वी अवलोकन (अर्थ ऑब्जरवेशन) करने में सूक्ष्मता से सक्षम है। अतः, अनेकों नागरिक उद्देश्यों के अलावा, इसका लक्ष्य है कि भारत के प्रति दुर्भावना रखने वाले देशों - चीन और पाकिस्तान - पर नज़र रखना। आप इसका ज़बरदस्त विडियो अवश्य देखना चाहेंगे, है न? ये रहा!
किन्तु, आलोचक तुरंत सक्रिय हो गए और उन्होनें एलोन मस्क की अमेरिकी कंपनी स्पेस-एक्स के मॉडल से पैदा खतरों की ओर इशारा किया। उसपर विस्तार से पढ़ें यहाँ
भारतीय रक्षा बलों के सैन्य अभ्यास
भारतीय रक्षा बल लगातार अनेक युद्ध-अभ्यास करते रहते हैं। ये रही एक सूची आपके सन्दर्भ हेतु :
- IBSAMAR भारत, ब्राजील और दक्षिण अफ्रीका के नौसेनिक अभ्यासों की श्रृंखला है। IBSAMAR = India-Brazil-South Africa Maritime। इसका पहला अभ्यास 2008 में हुआ था, और पांचवा भारत के पश्चिमी तट पर 19 से 29 फरवरी 2016 को हुआ।
- INDRA भारत और रूस द्वारा 2003 में प्रारंभ एक संयुक्त द्वि-वार्षिक सैन्य अभ्यास है, जो भारत और रूस की नौसेनाओं को सहयोग बढ़ाने और सह-क्रियान्वयन में मदद करता है। INDRA = India + Russia। इस अभ्यास में वास्तविक गोलीचालन एवं वायुरक्षा और पनडुब्बी रोधी गतिविधियां भी होती है। इसका 9वां अंक बंगाल की खाड़ी में 14 से 21 दिसंबर 2016 को हुआ। समय के साथ ये अभ्यास जटिलता और सहभागिता में परिपक्व होता चला गया है।
- मलाबार नौसेनिक अभियान (1992 में प्रारंभ) एक त्रि-पक्षीय गतिविधि है जिसमें अमेरिका, जापान और भारत स्थाई सदस्य हैं। शुरूआत में यह द्वि-पक्षीय अभ्यास रहा, और 2015 में जापान इसका स्थाई सदस्य बना। आस्ट्रेलिया और सिंगापुर भूतपूर्व अस्थाई सदस्य रहे हैं। इसमें अनेक गतिविधियां होती हैं जिसमें एयरक्राफ्ट कॅरियर से चलाये गये युद्धक अभ्यास भी होते हैं। 2016 का मलाबार अभ्यास 26 जून 2016 को प्रारंभ हुआ। भारत की रक्षा तैयारी पर पढ़ें हमारी बोधि यहां।
- SIMBEX (1993 में प्रारंभ) भारत और सिंगापुर की नौसेनाओं के अभ्यास की श्रृंखला है। SIMBEX = Singapore India Maritime Bilateral। पनडुब्बी रोधी युद्धक अभ्यास से आगे बढ़कर इसमें जटिल नौसेनिक अभ्यास जैसे वायुरक्षा, वायु और सतह पर गोली चालन, नौसेनिक सुरक्षा, और खोज और बचाव अभियान शामिल है। 2017 का अभ्यास अंडमान सागर में 22 से 28 मई 2014 को हुआ।
- SLINEX (2005 में प्रारंभ) भारतीय-श्रीलंका नौसेनाओं का संयुक्त अभ्यास है। SLINEX = Sri Lanka India Naval Exercise । चौथा स्लाइनेक्स 27 अक्टूबर से 15 नंवंबर 2015 तक श्रीलंका के तिंकुमाली के निकट हुआ।
- AUSINDEX (औसइंडेक्स) एक द्विपक्षीय नौसैनिक अभ्यास है जिसे २०१५ में पहली बार बंगाल की खाड़ी में किया गया था, और २०१८ में पश्चिमी ऑस्ट्रेलिया में पुनः दोहराया जायेगा।
- वरूण नौसेनिक अभ्यास (1993 में प्रारंभ), नाम मिला 2001 से। भारत और फ्रांस की 21वीं सदी की सामरिक भागीदारी का अभिन्न अंग है और इसमें दोनों नौसेनाओं के बीच सहयोग अभ्यास होते हैं। ये अभ्यास या तो हिंद महासागर या भू-मध्य सागर में होते हैं। 2015 के वरूण अभ्यास में वायु सेना - नौसेना और पनडुब्बी रोधी युद्धक अभ्यास रहे।
- TROPEX एक माह तक चलने वाला और भारतीय सशस्त्र बलों के तीनों अंगों हेतु एक वार्षिक सैन्य अभ्यास है जिसमें युद्ध क्षेत्र की क्रियात्मक कार्यवाही करवाई जाती है। इस अभ्यास में भारतीय सेना के सभी अंग युद्ध हेतु कितने तैयार है इसकी जांच होती है। 2006 में शुरू, ट्रापेक्स 2017 भारत के पश्चिमी तट पर जनवरी-‘फरवरी 2017 में हुआ।
- आयरन फिस्ट पोखरण राजस्थान में होने वाला भारतीय वायुसेना अभ्यास है। ये अब तक दो बार हुआ है - 2013 और 2016 में। 2013 का पहला अभ्यास भारतीय वायुसेना की संजाल-केंद्रीत क्षमताओं के प्रदर्षन हेतु हुआ था। आयरन फिस्ट 2016 का आयोजन 18 मार्च 2016 को हुआ जिसमें 181 वायुयानों ने भाग लिया, जिनमें 103 युद्धक विमान थे। इसमें तेजस का भी पहली बार प्रदर्शन किया गया।
- रेड फ्लेग अभ्यास अमेरिका के नेवादा में नैलिस वायुसेना बेस पर आयोजित होने वाला उन्नत स्तरीय यु़द्धक प्रशिक्षण कार्यक्रम है इसका लक्ष्य है कि अमेरिका, नाटो और अन्य मित्र देशों के पायलटों को वास्तिविक अभ्यास हेतु प्रशिक्षित करना। भारत ने इसमें 2008 और 2016 में भाग लिया था।
- युद्ध अभ्यास भारतीय और अमेरिकी सेनाओं द्वारा आयोजित होने वाला लंबे समय से चला आ रहा संयुक्त सैन्य अभ्यास है, जिसका आयोजन हर वर्ष किसी एक देश में होता है। पहला अभ्यास 2004 में हुआ और हालिया अभ्यास 2015 में। रक्षा एवं सैन्य पर अनेक वीडियो देखें, यहां।
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जैसा कि अमेरिका के दूसरे राष्ट्रपति जॉन एडम्स ने कहा था
मुझे राजनीति और युद्ध सीखना (पढ़ना) ही होगा यदि मेरे बच्चे गणित और दर्शन-शास्त्र पढ़ना चाहते हैं तो (I must study politics and war that my sons may have liberty to study mathematics and philosophy.)
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