उत्पादन, उपभोग और निर्यात में एक विश्व नेता, भारतीय कृषि कुछ विशिष्ट चुनौतियों से जूझ रहा है।
भारत मोटे तौर पर एक कृषि अर्थव्यवस्था रहा है। काफी जटिल है, जिसमें अनेकविध अतिव्यापी कानूनी प्रावधान हैं, सामाजिक बाध्यताएं हैं, और प्रौद्योगिकीय बाधाएं हैं। भारतीय कृषि अर्थव्यवस्था की समस्याएं इस कारण से जटिल हैं क्योंकि इनमें से अनेक समस्याएं आसानी से दिखाई नहीं देती हैं और न ही इन समस्याओं का समाधान ढूंढना आसान है। भारतीय कृषि क्षेत्र के कई विरोधाभासों में से प्रमुख विरोधाभास यह है कि हम कहते हैं कि हमारी जनसंख्या का 65 प्रतिशत से अधिक अभी भी कृषि पर निर्भर है। परंतु इनमें से अधिकतर रोजगार अर्धबेरोजगारी या प्रच्छन्न बेरोजगारी की अवस्था में केवल इसलिए लगा हुआ है क्योंकि उनके पास रोजगार के कोई वैकल्पिक अवसर उपलब्ध नहीं हैं।
हालांकि भारत दुनिया का दूसरा सबसे बड़ा कृषि भूमि वाला देश है, किंतु भारत की अधिकांश कृषि भूमि बहुत ही छोटे-छोटे अलाभकारी टुकडों में विखंडित है अतः हमारी कृषि उत्पादकता दुनिया में सबसे अल्प में से एक है। इसका प्रमुख कारण देश की विशाल जनसंख्या वृध्दि (और आकार) है, और प्रत्येक पीढी के साथ जमीन का विखंडन होता रहता है। हमारी अधिकांश कृषि जीवन-निर्वाह कृषि के रूप में है। देश के सकल घरेलू उत्पाद में कृषि क्षेत्र का योगदान लगभग 16 प्रतिशत जितना कम है। साथ ही हमारी कृषि भूमि में से 60 प्रतिशत से अधिक असिंचित भूमि है, और भारतीय कृषि का एक बडा हिस्सा आज भी वर्षा-पोषित है और इसके कारण वर्षा के अभाव की स्थिति में हमें दुःखद घटनाओं का सामना करना पडता है।
साथ ही भारत दालों, दूध एवं दुग्ध उत्पादों, फलों और सब्जियों जैसे अनेक कृषि उत्पादों में विश्व के सबसे बडे उत्पादक होने का दावा करता है परंतु फिर भी हम इस वास्तविकता को नकार नहीं सकते कि अत्यल्प उत्पादकता यहाँ भी हमारा मानदंड है। हम दुनिया में दूध और दूध उत्पादों के उच्चतम उत्पादकों हो सकते हैं लेकिन तथ्य यह है कि इस क्षेत्र में हमारी उत्पादकता दुनिया में सबसे कम में से एक है, और हम दुनिया के शीर्ष पांच देशों की उत्पादकता के निकट भी नहीं पहुँच पाते हैं। हम दुनिया में दालों के सबसे बडे उत्पादकों में से एक हैं परंतु फिर भी हमें साल-दर-साल अपनी आवश्यकताओं की पूर्ति के लिए दालों का आयात करना पडता है। हालांकि ऐसा करने के लिए हमारी अपनी मजबूरियां हैं।
अनेक अवसरों पर हमारे खाद्यान्नों के गोदाम लबालब भरे हुए होते हैं, परंतु फिर भी बडी संख्या में देश के नागरिक दो वक्त की रोटी के बिना सोने के लिए मजबूर हैं। इस तथ्य की ओर न्यायालयों ने भी सरकार का ध्यान आकर्षित किया है। भारतीय खाद्य निगम और उसकी सहयोगी संस्थाएं एक विशाल तंत्र का संचालन करते हैं, जबकि अनेक अवसरों पर उनके प्रयास विफल हो जाते हैं।
दुर्भाग्य से कुपोषण सूचकांक में हम ढेर के सबसे नीचे हैं। कृषि रोजगार न केवल असंगठित है बल्कि यह साहूकारों, माफिया और स्थानीय राजनीतिज्ञों के प्रणालीगत शोषण का शिकार भी है। प्रति वर्ष देश के हजारों किसान आत्महत्या करने को मजबूर हैं। हालांकि इनमें से अनेक किसान व्यक्तिगत कारणों से भी ऐसा करते हैं।
समग्र रूप से विचार किया जाए तो उपरोक्त लक्षण एक स्वस्थ कृषि अर्थव्यवस्था को प्रतिबिंबित नहीं करते जो बढती जनसंख्या की चुनौती स्वीकार करने के लिए तैयार है। कृषि के लिए नीतियां बनाते समय पहले उपरोक्त समस्याओं और जटिलताओं के समाधान खोजना चाहिए ताकि कृषि को आत्मनिर्भर और लाभदायक बनाया जा सके। मोदी सरकार वर्ष 2022 तक कृषि आय को दोगुना करने के लिए प्रतिबद्ध है।
यह एक कठिन कार्य प्रतीत हो सकता है परंतु इसे प्राप्त करना असंभव निश्चित रूप से नहीं है। परंतु इस उद्देश्य को प्राप्त करने का प्रयास करते समय सरकार को उपरोक्त महत्वपूर्ण मुद्दों को समग्र, पारदर्शी और प्रणालीगत तरीके से संबोधित करना और उनका हल ढूंढना आवश्यक है। इलेक्ट्रॉनिक राष्ट्रीय कृषि बाजार का निर्माण इस दिशा में उठाया गया एक महत्वपूर्ण कदम है। रस्धतरीय शीत भंडार श्रृंखला, खाद्य उद्यान, और प्रसंस्करण केंद्रों, आधुनिक सिंचाई पद्धतियां, जैसे टपक सिंचन, इत्यादि जैसी और अधिक पहलें बडे पैमाने पर करना आवश्यक है।
उत्कृष्ट द्विभाषी कोर्सेज - ऑनलाइन व क्लासरूम :
[##cloud-download## Eco.Survey & Budget] [##rocket## Bodhi Booster Premium] [##sun-o## BODHI PRATHAM classroom] [##diamond## UPSC IAS Self Prep Course]
वर्ष 2022 तक कृषि आय को दुगना करना
भारत की कृषि जीडीपी = फसलें + वन + मत्स्यपालन उद्योग। जहाँ फसलें इस जीडीपी का 60 प्रतिशत हैं वहीँ बागवानी क्षेत्र फसलों का 30 प्रतिशत बनाता है। आम धारणा के विपरीत किसान देश भर में राजनीतिक रूप से संगठित नहीं हैं। अनेक विश्लेषकों का आरोप है कि सरकारें इस राजनीतिक अलगाव का अनेक तरीकों से उपयोग करती हैं, जिसमें वोट प्राप्त करने के लिए उनकी चिंताओं के शोषण और स्थाई परिवर्तन के लिए अवसरों से उन्हें वंचित रखने का हिस्सा भी कम नहीं है। इन बहुविध संबंधित मुद्दों और समस्याओं की एक सूची नीचे दी गई है।
और यहाँ है इस मुद्दे पर भारतीय खाद्य और कृषि परिषद की एक संपूर्ण रिपोर्ट (अंग्रेजी में), जिसे आप यहाँ डाउनलोड कर सकते हैं।
- [message]
- वर्ष 2022 तक कृषि आय को दुगना करना – मुद्दे, समस्याएँ और परिप्रेक्ष्य
- एक मुख्यतः कृषि प्रधान देश में जहाँ 130 करोड़ जनसंख्या में से लगभग 60 प्रतिशत लोग कृषि और संबंधित क्षेत्रों से जुड़े हुए हैं, कृषि आय पर भारत को सही दृष्टिकोण के साथ विचार करना अत्यंत आवश्यक है। इस बात से तो सरकार भी इंकार नहीं करती कि देश की कृषि और किसान बुरी तरह से व्यथित हैं। वर्ष 2022 तक कृषि आय को दुगना करने के लक्ष्य को इसलिए क्रांतिकारी माना गया क्योंकि इससे सरकारों का इस मापन योग्य लक्ष्य को प्राप्त करने पर ध्यान केंद्रित करने के लिए आवश्यक बहुविध प्रयासों में सहायता मिलेगी। कृषि नीतियां ##chevron-right## उत्पादन उन्मुख हो सकती हैं या ##chevron-right## उत्पादक उन्मुख या ##chevron-right## बाजार उन्मुख (या इन तीनों का मिश्रण) हो सकती हैं। फसल बीमा, मृदा स्वास्थ्य, सिंचाई, ग्रामीण सड़कें, डेरी, कुक्कुट पालन और बागवानी के लिए की गई विभिन्न पहलें इसी दिशा में निर्देशित प्रतीत होती हैं। एक ओर जहाँ जनसंख्या में लगातार वृद्धि हो रही है वहीँ कृषि भूमि के विखंडन ने कृषि भूमि के (अत्यंत छोटे) अव्यवहार्य आकार निर्मित कर दिए हैं। अतः उत्पादकता में वृद्धि करना अत्यंत महत्वपूर्ण है। दुर्भाग्य से संयुक्त कृषि का विचार नहीं किया जा सकता क्योंकि लोकतांत्रिक परंपराएं तत्काल समेकन की अनुमति नहीं देती (चीन के विपरीत जहाँ 1950 के दशक के उन्माद का परिणाम करोड़ों लोगों को गोली मारने के रूप में हुआ, फिर कृषि भूमि का पुनर्वितरण हुआ, फिर संयुक्तीकरण हुआ और अंततः बड़े पैमाने पर फसल का नुकसान हुआ)। विशेषज्ञ इस बात पर खेद प्रकट करते हैं कि पिछले वर्षों के दौरान फसल वृद्धि या तो स्थिर रही है या कम हुई है जिसके कारण किसानों की वास्तविक आय में भारी कमी हुई है। आय दो प्रकार की हो सकती है – ##chevron-right## मुद्रास्फीति-समायोजित आय (inflation-adjusted) और ##chevron-right## असमायोजित आय (unadjusted income)। साधारण गणित से यदि वास्तविक आय को दुगना करने का लक्ष्य रखा गया तो इसके लिए अनेक वर्षों तक न्यूनतम 12 प्रतिशत कृषि वृद्धि आवश्यक होगी, जो स्पष्ट रूप से संभव नहीं है क्योंकि वर्तमान दरें केवल 1.7 प्रतिशत प्रति वर्ष (2014-16) हैं। हरित क्रांति की पहली लहर के अत्यंत क्षीण होने के साथ अब आवश्यकता है कुशल सिंचाई और नई पीढ़ी के बीजों पर ध्यान केंद्रित करने की। इससे बजट में सरकार द्वारा सिंचाई योजनाओं पर दिए गए बल का उद्देश्य स्पष्ट हो जाता है। फसल बीमा योजनाएं बड़े पैमाने पर क्रियान्वित की जाने की आवश्यकता है, साथ ही ड्रोन जैसे तकनीकी साधनों के माध्यम से भूजल की निगरानी भी अच्छा विचार है। ई-राष्ट्रीय कृषि बाजार (e-National Agricultural Market - eNAM) का निर्माण भी किसानों को उनके उत्पाद का उचित मूल्य प्राप्त करने की दृष्टि से अनेक मायनों में सहायक साबित होगा। कृषि का विविधिकरण संपूर्ण मूल्य श्रृंखला पर होना चाहिए। विशेषज्ञों ने तो यहाँ तक कहा है कि किसानों को “प्रति एकड़ सुनिश्चित भुगतान करना चाहिए जो छोटे किसानों के लिए अधिक हो और बड़े किसानों के लिए अपेक्षाकृत कम हो” क्योंकि यह गैर-व्यापार विकृत कृषि अनुवृत्ति के रूप में विश्व व्यापार संगठन के अनुरूप भी होगा। सरकार भारतीय खाद्य निगम (FCI) के माध्यम से बड़े पैमाने पर न्यूनतम समर्थन मूल्य (MSP) पर खाद्यान्नों की खरीद करती है, और इस संपूर्ण प्रक्रिया में व्यापक स्तर पर भ्रष्टाचार के आरोप भी लगाए जाते हैं। कुछ विशेषज्ञों ने एक निश्चित सीमा से अधिक कृषि आय पर कर लगाने का भी सुझाव दिया है। दावा किया गया है कि वर्ष 2017-18 का बजट “विकास उन्मुख है न कि “खैरात उन्मुख” । परंतु उत्पादकता वृद्धि की दृष्टि से किये गए आवंटन उन आवश्यकताओं से कम प्रतीत होते हैं जो “कृषि आय को दुगना करने के लिए आवश्यक हैं”। आंकड़ों की सटीकता एक बड़ी समस्या है क्योंकि राष्ट्रीय नमूना सर्वेक्षण संगठन (NSSO) के सर्वेक्षणों को छोड़कर भारत में नियमित अंतराल से कृषि आय के आंकडे एकत्रित नहीं किये जाते हैं। अतः औसत आय की गणना के लिए प्रातिनिधिक संकेतों (उत्पादन अनुमान / मूल्य) का उपयोग किया जाता है। वर्ष 2015-16 (सूखे का वर्ष) के दौरान कृषि वृद्धि 1.2 प्रतिशत जितनी कमजोर थी जो वर्ष 2014-15 (यह भी सूखा वर्ष था) के 0.2 प्रतिशत संकुचन से ही बेहतर थी। वर्ष 2016-17 (सामान्य मानसून) में राष्ट्रीय आय के पहले अग्रिम अनुमान (जनवरी 2018) कृषि क्षेत्र के लिए 4.1 प्रतिशत वृद्धि का आकलन करते हैं। परंतु विमुद्रीकरण ने बागवानी क्षेत्र को बुरी तरह से प्रभावित किया है। नवंबर में सब्जियों के थोक मूल्यों में 24 प्रतिशत की गिरावट हुई, जो दिसंबर में 33 प्रतिशत थी। वर्ष 2013 से बागवानी उत्पादन खाद्यान्न उत्पादन से अधिक होता रहा है। परंतु सटीक आंकडे आसानी से उपलब्ध नहीं हैं। वर्ष 2017-18 के बजट के अनुसार – (ए) वर्ष 2017-18 के लिए कृषि ऋण के लक्ष्य को रिकॉर्ड रु.10 लाख करोड़ पर निर्धारित किया गया है, (बी) प्रधानमंत्री द्वारा 31 दिसंबर को घोषित की गई 60 दिन की ब्याज माफ़ी से भी किसानों को लाभ होगा, (सी) छोटे किसानों के लिए ऋण प्रवाह सुनिश्चित करने के लिए सरकार नाबार्ड को कम्प्यूटरीकरण और सभी 63,000 क्रियाशील प्राथमिक कृषि साख सोसाइटीयों के जिला केंद्रीय सहकारी बैंकों की कोर बैंकिंग व्यवस्था के साथ एकीकरण के लिए सहायता प्रदान करेगी। यह काम लगभग 1,900 करोड़ की लगत से तीन वर्ष में पूरा किया जाएगा, (डी) फसल बीमा के आवरण क्षेत्र को वर्ष 2016-17 के फसल के 30 प्रतिशत से बढाकर वर्ष 2017-18 के लिए फसल के 40 प्रतिशत और वर्ष 2018-19 के लिए फसल क्षेत्र के 50 प्रतिशत किया गया है, जिसके लिए 9,000 करोड़ रुपये का प्रावधान किया गया है, (ई) मृदा नमूना जांच के लिए कृषि विज्ञान केन्द्रों में नई छोटी प्रयोगशालाएँ स्थापित की जाएंगी और इसके लिए सभी 648 कृषि विज्ञान केन्द्रों को इसमें शामिल किया जाएगा, (एफ) नाबार्ड में पहले से ही गठित दीर्घकालीन सिंचाई कोष को 100 प्रतिशत तक संवर्धित किया जाएगा जिससे इसकी कुल निधि बढ़कर 40,000 करोड़ रुपये हो जाएगी, (जी) प्रारंभिक 5,000 करोड़ धनराशी के साथ नाबार्ड में समर्पित सूक्ष्म सिंचाई कोष ‘प्रति बूँद अधिक फसल’ को प्राप्त करने के उद्देश्य से स्थापित किया जाएगा, (एच) राष्ट्रीय ई-कृषि बाजार (ई-नैम) की व्याप्ति को 250 बाजारों से बढाकर इसमें सभी 585 कृषि उपज बाजार समितियों को शामिल किया जाएगा, (आई) प्रत्येक ई- नैम को 75 लाख रुपये की सहायता प्रदान की जाएगी, (जे) अनुबंध कृषि पर एक आदर्श कानून तैयार किया जाएगा और इसे राज्यों के बीच अनुपालन के लिए प्रसारित किया जाएगा, (के) डेरी प्रसंस्करण एवं अधोसंरचना विकास कोष नाबार्ड में स्थापित किया जाएगा। ##eye## भारतीय कृषि से संबंधित मुद्दों पर विडियो विश्लेषण बोधि शिक्षा चैनल पर देखें।
कृषि के एक महत्त्वपूर्ण पहलू - अनुवृत्तियों (सब्सिडी) पर ये रहा एक विस्तृत व्याख्यान। देखें, सीखें, आनंद लें!
क्या ऐसे अनेक निःशुल्क व्याख्यान आप देखना चाहते हैं? यहाँ आइये!
[बोधि प्रश्न हल करें ##question-circle##]
इस बोधि को हम सतत अद्यतन करते रहेंगे। पढ़ते रहिये। और कमेंट्स थ्रेड में अपने विचार अवश्य बताएं।
[ Running Updates on Agriculture related news ]
- [message]
- [message]
- आपका स्नेह हमारा उत्साहवर्धन करता है!
- Spread the good word about Bodhi Booster! Join our social media family using links provided on top right of all pages. Share this Bodhi using the yellow vertical bar icons on right side of your screen. Comment and let us know your views in the Disqus threads. Use हिंदी बोधि and English Bodhis for knowledge development beyond mere exams. Learn English in an easy, spontaneous and practical way - welcome to Bodhi Bhasha. Stay ahead with precise and time-saving news and analysis videos, Shrutis and PDFs by Bodhi News! Use content & expertise of our friends at PT education for competitive exams prep - check their PT Youtube channel, PT site and PT Self-prep courses that help you prepare best right at home!
[Newsletter ##newspaper-o##] [Bodhi Shiksha ##play-circle-o##] [FB ##facebook##] [हिंदी बोधि ##leaf##] [Sameeksha live ##graduation-cap##] [Shrutis ##fa-headphones##] [Quizzes ##question-circle##] [Premium ##rocket##]
उत्कृष्ट द्विभाषी कोर्सेज - ऑनलाइन व क्लासरूम :
COMMENTS