भारत विभिन्न प्राकृतिक संसाधनों, खनिज संपदा और भौगोलिक विशेषताओं की उपलब्धता में भारी विविधता वाला देश है।हमारी समस्या यह रही है कि अब तक...
भारत विभिन्न प्राकृतिक संसाधनों, खनिज संपदा और भौगोलिक विशेषताओं की उपलब्धता में भारी विविधता वाला देश है।हमारी समस्या यह रही है कि अब तक हम उपयुक्त कौशल के साथ अपने लाभ के लिए इन संसाधनों का उपयोग करने में पूरी तरह से सफल नहीं हो पाए हैं, जिसके परिणामस्वरूप हम हमारी ऊर्जा आवश्यकताओं के लिए जीवाश्म ईंधन के आयात पर काफी हद तक निर्भर रहे हैं। इस संपूर्ण प्रक्रिया के दौरान हमने अपने लिए एक सामाधान की तुलना में अनेक समस्याएं पैदा की हैं। अर्थव्यवस्था में जितनी अधिक वृद्धि होती है उतने ही हम दूसरों पर निर्भर होते जा रहे हैं।
वर्ष 2020 तक भारत अमेरिका और चीन के बाद दुनिया का तीसरा सबसे बड़ा ऊर्जा उपभोक्ता बनने का अनुमान है। ऊर्जा की मांग में तेजी से निरंतर वृद्धि की अवधि के लिए तैयार होने के मार्ग में हमें इस बात का आकलन करना आवश्यक होगा कि यह वैश्विक ऊर्जा परिदृश्य को किस प्रकार से पुनर्परिभाषित करेगा। अपनी बढती ऊर्जा मांग की पूर्ति करने के लिए भारत जिस प्रकार से अपनी अधोसंरचना और संसाधनों को विकसित करेगा, इसमें अनेक चुनौतियाँ और अवसर मौजूद हैं।
भारतीय अर्थव्यवस्था बहुत तेजी से बढ रही है और पर्याप्त मात्रा में स्वच्छ ऊर्जा की उपलब्धता विकास की इस महत्वाकांक्षा को प्राप्त करने की दृष्टि से केंद्रीय है। सभी के लिए २४ x ७ बिजली और 'मेक इन इंडिया' अभियान जैसी सभी पहलें भारत के ऊर्जा दृष्टिकोण को प्रभावित करेंगी। वित्त और प्रौद्योगिकी प्रमुख मुद्दे होंगे क्योंकि सुरक्षित और सस्ती ऊर्जा की आपूर्ति सुनिश्चित करने के लिए स्वच्छ ऊर्जा उत्पादन के क्षेत्र में भारी निवेश और तकनीकी विशेषज्ञता की आवश्यकता होगी। वैश्विक प्रौद्योगिकी जुडाव अत्यंत महत्वपूर्ण होंगे। सौर ऊर्जा उत्पादन को बढाने के लिए सूर्य से समृद्ध देशों (जो पूर्ण रूप से या आंशिक रूप से कर्क रेखा और मकर रेखा के बीच स्थित हैं) के बीच सहयोग के लिए भारत और फ्रांस द्वारा संयुक्त रूप से निर्मित अंतरराष्ट्रीय सौर अनुबंध आगे की दिशा में लिया गया एक ठोस कदम है। [बाद में बोधि कडी देखें]
हालांकि पहले इंकार करने के बाद भारत ने भी मोहनदास गाँधी (महात्मा) की जन्म जयंती का औचित्य साधते हुए 2 अक्टूबर 2016 को पेरिस समझौते की पुष्टि करने के लिए सहमति व्यक्त की, क्योंकि गांधीजी का मानना था न्यूनतम कार्बन फुटप्रिंट। वैश्विक ग्रीनहाउस गैस उत्सर्जन में भारत का योगदान लगभग 4.5 प्रतिशत है। संयुक्त राष्ट्र महासचिव बान की मून का कहना था कि लगभग 48 प्रतिशत योगदान देने वाले 60 देश पहले ही इस समझौते में शामिल हो चुके हैं। पेरिस समझौता हिमनदों को पिघलाने वाले, समुद्र-स्तरों को बढाने वाले और वर्षा की प्रवृत्ति को परिवर्तित करने वाले बढते वैश्विक तापमान को कम करने के लिए कदम उठाने के लिए समृद्ध और गरीब, दोनों देशों से मांग करता है। इसके लिए आवश्यक है कि उत्सर्जन को कम करने के लिए और वैश्विक तापमानों को 2 अंश सेलसियस (3.6 अंश फारेनहाइट) से नीचे रखने के लिए सरकारें राष्ट्रीय योजनाएं प्रस्तुत करें।
विकास और वृद्धि के इस परिदृश्य में पवन ऊर्जा, सौर ऊर्जा जैसे संसाधनों की प्रमुख भूमिका होगी। भारत इनका अनुकूलन किस प्रकार से करता है यह अत्यंत महत्वपूर्ण होगा। इसका मतलब यह नहीं है कि हम कोयले जैसे जीवाश्म ईंधन (जो सस्ता, पर्याप्त और आसानी से उपलब्ध है) के प्रयोग को पूरी तरह से बंद कर दें, परंतु यह सुनिश्चित किया जाना चाहिए कि ऊर्जा उत्पादन के लिए जीवाश्म ईंधन का प्रयोग इस प्रकार से किया जाये ताकि प्रदूषण और स्वास्थ्य के लिए खतरे कम से कम हों। यह सुनिश्चित करना अपने आप में एक महती जिम्मेदारी है।
विकास और वृद्धि के इस परिदृश्य में पवन ऊर्जा, सौर ऊर्जा जैसे संसाधनों की प्रमुख भूमिका होगी। भारत इनका अनुकूलन किस प्रकार से करता है यह अत्यंत महत्वपूर्ण होगा। इसका मतलब यह नहीं है कि हम कोयले जैसे जीवाश्म ईंधन (जो सस्ता, पर्याप्त और आसानी से उपलब्ध है) के प्रयोग को पूरी तरह से बंद कर दें, परंतु यह सुनिश्चित किया जाना चाहिए कि ऊर्जा उत्पादन के लिए जीवाश्म ईंधन का प्रयोग इस प्रकार से किया जाये ताकि प्रदूषण और स्वास्थ्य के लिए खतरे कम से कम हों। यह सुनिश्चित करना अपने आप में एक महती जिम्मेदारी है।
अतः आगे का मार्ग यह है कि एक ऐसे ऊर्जा क्षेत्र का निर्माण किया जाये जो विशिष्ट, अधिक धारणीय, सुरक्षित, सस्ता और अधिक अभिनव हो। भारत की जलवायु प्रतिज्ञा को देखते हुए, जिसमें भारत ने अपने इस इरादे को स्पष्ट किया है कि वह इसी स्तर के विकास के दौरान अन्य देशों द्वारा अपनाये गए मार्ग की तुलना में अधिक स्वच्छ मार्ग अपनाएगा, दुनिया भारत की ओर देख रही होगी। जैसा कि महात्मा गाँधी था 'आप स्वयं वह परिवर्तन बनें जो परिवर्तन आप दुनिया में देखना चाहते हैं'।
आगे का मार्ग आसान और सीधा नहीं है। अंतरराष्ट्रीय ऊर्जा तंत्र के साथ भारत के संबंध पहले से ही काफी गहरे हैं। हमें इन्हें और अधिक गहरा करना होगा ताकि व्यापार, निवेश, स्वच्छ ऊर्जा प्रौद्योगिकी सहयोग के माध्यम से अंतरराष्ट्रीय बाजारों पर भारत का प्रभाव और निर्भरता और अधिक तीव्र हो सके।
आगे का मार्ग आसान और सीधा नहीं है। अंतरराष्ट्रीय ऊर्जा तंत्र के साथ भारत के संबंध पहले से ही काफी गहरे हैं। हमें इन्हें और अधिक गहरा करना होगा ताकि व्यापार, निवेश, स्वच्छ ऊर्जा प्रौद्योगिकी सहयोग के माध्यम से अंतरराष्ट्रीय बाजारों पर भारत का प्रभाव और निर्भरता और अधिक तीव्र हो सके।
स्वच्छ स्थायी, विश्वसनीय और सस्ती ऊर्जा देने के लिए अंतरराष्ट्रीय भागीदारी होना हमारे लिए आवश्यक है जिसे हमें और अधिक बढाना होगा।
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