इसरो - प्रतिष्ठित भारतीय अंतरिक्ष प्रौद्योगिकी संस्थान

अपने पश्चिमी प्रतिद्वंदियों की तुलना में, इसरो बेहद कम लागत में इतिहास रचता रहा है।

आधुनिक भारत की शान 

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आधुनिक भारत ने विज्ञान और प्रौद्योगिकी के क्षेत्र में लंबी छलांग लगाईं है। हालांकि स्वास्थ्य, कृषि, और रक्षा जैसे महत्वपूर्ण क्षेत्रों में हमारी वैज्ञानिक और प्रौद्योगिकीय सफलता उल्लेखनीय है, फिर भी अंतरिक्ष, परमाणु और मिसाइल प्रौद्योगिकी के क्षेत्रों में हमनें सही अर्थों में उत्कृष्टता प्राप्त की है।

भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन (इसरो ISRO) भारत का प्रतिष्ठित अंतरिक्ष अनुसंधान संस्थान है। नियमित रूप से नए सफल प्रक्षेपणों के साथ इस प्रतिष्ठित संस्थान ने न केवल अपने खाते में अनेक महत्वपूर्ण उपलब्धियां जोड़ी हैं, बल्कि विश्व को भी यह बता दिया है कि भारत की अंतरिक्ष प्रतिभा दुनिया में किसी से कम नहीं है।

१५ फरवरी २०१७ को इसरो ने १०४ उपग्रह एक साथ प्रक्षेपित कर इतिहास रच दिया है। हमने उसे इस बोधि में आगे (पेज ३ पर) कवर किया है। मई २०१७ में, इसरो ने दक्षिण एशियाई उपग्रह का स्वप्न भी पूर्ण कर दिया, जब इसने "दक्षिण एशिया उपग्रह" सफलतापूर्वक प्रक्षेपित कर उसे चालू कर दिया। इस बारे में पूरी जानकारी पाएं इस बोधि के पृष्ठ ४ पर

आप इस ऐतिहासिक उड़ान का सेल्फी विडियो अवश्य देखना चाहेंगे, है न? ये रहा विडियो!
(कुल अवधि - ५:३० मिनिट, मूल स्त्रोत यहाँ)




[इस बोधि को अंग्रेजी में पढ़ें  ##link##]


इसरो की स्थापना वर्ष १९६९ में डॉ. विक्रम साराभाई द्वारा बैंगलोर में की गई थी। अपनी स्थापना के समय से ही यह संस्थान स्वदेशी संसाधनों और प्रतिभाओं का उपयोग करके आश्चर्यजनक उपलब्धियां हासिल करता रहा है। वास्तव में, इसरो के हाल के अनेक मिशन विश्व कीर्तिमानों की पुस्तक का हिस्सा बने हैं। मंगल कक्षित्र अभियान (मंगलयान या मॉम MOM), इस उत्कृष्टता की संपूर्ण महिमा को प्रतिबिंबित करता है। मंगलयान का प्रक्षेपण २८ अक्टूबर २०१३ को किया गया, और २४ सितंबर २०१४ को इसे मंगलग्रह की कक्षा में प्रविष्ट किया गया।

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मंगल, ये आये हम!


मंगलयान के मंगलग्रह की कक्षा के प्रवेश के साथ ही इसरो विश्व का पहला अंतरिक्ष अभिकरण, और भारत विश्व का पहला देश बन गया जिसने यह उपलब्धि अपने पहले ही प्रयास में हासिल की है ! समस्त विश्व ने भारत के इस महत्वपूर्ण प्रयास को न केवल स्वीकार किया, बल्कि इसकी काफी प्रशंसा भी की। इसके पूर्व, इसरो ने सफलतापूर्वक चंद्रयान-१ - भारत का पहला चंद्र तक जाने वाला अभियान - २२ अक्टूबर २००८ को संपन्न किया था। वह अन्तरिक्ष यान चन्द्रमा की सतह से १०० कि.मी. ऊपर चक्कर लगा रहा था और उसमें भारत, अमेरिका, ब्रिटेन, जर्मनी, स्वीडन और बुल्गारिया में बने ११ वैज्ञानिक उपकरण लगे थे जो रासायनिक, खनिज और भूगर्भीय आंकलन कर रहे थे। सभी प्रमुख अभियान लक्ष्य हो जाने के पश्चात, कक्षा को मई २००९ में २०० कि.मी. किया गया। उपग्रह ने चन्द्रमा के ३४०० चक्कर लगाए और २९ अगस्त २००९ को संपर्क टूट जाने की बाद अभियान समाप्त माना गया।

अब चंद्रयान-२ की तैयारी चल रही है!

ऊष्मा कवच (हीट शील्ड) बंद होने के पश्चात पीएसएलवी-सी३६ 

रिसोर्स सैट २-ए प्रक्षेपण - लिफ्ट-ऑफ!


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१९७० से अमेरिका जैसे देशों ने कुछ उपग्रह हमारे सौर मंडल के बाहरी इलाकों, और अन्य ग्रहों पर, भेजे हैं, और इनसे प्राप्त आंकड़ों और जानकारियों के मदद से मानवता को सौर मंडल के असल आकार और ढांचे के बारे में जानने में बेहद मदद मिली है।


अपनी विजयी दौड़ को आगे बढ़ाते हुए, जुलाई २०१६ में इसरो ने अपने पीएसएलवी-सी 34 प्रक्षेपण वाहन के माध्यम से एकसाथ 20 उपग्रह प्रक्षेपित किये ! साथ ही यह पीएसएलवी का 35 वां सफल प्रक्षेपण भी था - निश्चित तौर पर यह कोई मामूली उपलब्धि नहीं है! अब आ रहा है सब अभियानों में विशालतम - एक साथ ८२ उपग्रहों को छोड़ने हेतु! (पीएसएलवी = Polar Satellite Launch Vehicle)

कारगिल के सबक - अंतरिक्ष में हमारी आँख


उभरती वैश्विक सुरक्षा स्थिति ने भारत के अपने क्षेत्रीय नौवहन तंत्र के लिए संकट के समय 100 प्रतिशत सूचना उपलब्धता सुनिश्चित करना आवश्यक बना दिया। हमारा कारगिल का जीपीएस अनुभव अन्य  देशों द्वारा नियंत्रित तंत्रों पर निर्भरता के रूप में हमारी कमजोरी साबित हुआ। आई.आर.एन.एस.एस. - भारतीय क्षेत्रीय नौवहन उपग्रह प्रणाली, या नाविक  - अब पूरी तरह से क्रियाशील हो गया है और यह विभिन्न उपयोगकर्ता समूहों को अप्रत्याशित रूप से विस्तृत सूचनाएं प्रदान कर रहा है।


२६ सितंबर २०१६ को भारत के प्रक्षेपण वाहन पीएसएलवी ने आठ उपग्रह सफलतापूर्वक प्रक्षेपित किये, जिसमें देश का स्कैटसैट - एस.सी.ए.टी.एस.ए.टी-1 (SCATSAT-1, एक लघु उपग्रह जो मौसम अनुमान, तूफ़ान चेतावनी और मार्गन (tracking) सेवा देगा) और अन्य पांच उपग्रहों का दो भिन्न-भिन्न कक्षाओं में अन्य देशों से किया गया प्रक्षेपण भी शामिल था। इसने यह सुनिश्चित कर दिया है कि अब भारत के पास लगभग सभी प्रयोजनों - सैन्य, मौसम, प्रसारण और उन्नत सुदूर संवेदन - के लिए उपग्रह उपलब्ध हैं। और ऐसा प्रतीत नहीं होता कि यह संस्थान अपनी उपलब्धियों से संतुष्ट होकर बैठ गया है। 

प्रक्षेपण यानों (लॉन्चर्स) में लगने वाली तकनीकों के ज़बरदस्त उन्नयन और विकास ने भारतीय वैज्ञानिकों के दृढ़ आत्मविश्वास को जगजाहिर किया है, और ऐसा अक्सर पूर्णतः मित्रतापूर्ण माहौल (बाहरी) के न रहते हुए हुआ है। आज, अनेकों प्रक्षेपण यानों की एक स्थिर और भरोसेमंद व्यवस्था हमारे पास है

एक मजबूत परिवार 



एक जिज्ञासु मन के लिए, इन प्रक्षेपण यानों में प्रयुक्त बारीकियों का अध्ययन एक रोचक कार्य हो सकता है, और यही यान अंतरिक्ष में कुछ भी हासिल करने हेतु, अथवा सैन्य मिसाइलों के प्रक्षेपण हेतु लगने वाली क्षमताओं में पहला कदम होते हैं
 


किन्तु इसरो शांत नहीं बैठा है। उद्यमितापूर्ण ऊर्जा और नवाचार लगातार चल रहे हैं जैसे ये अद्यतन दर्शाते हैं। बोधि बूस्टर की ओर से भारत की शान इसरो को ढेरों शुभकामनाएं!


  • [message]
    • ##rocket##  इसरो - दृढ़तापूर्वक वहां पहुंचे जहाँ कोई न गया हो! 
      • मंगलयान को किफायती अभियांत्रिकी (frugal engineering) ने प्रसिद्ध कर दिया था। किन्तु हाल की रिपोर्ट दिखातीं हैं कि इसरो ने सबको ज्ञात रु.४५० करोड़ की आंकड़े से भी कम में काम कर दिया था - केवल रु. ४४७.३ करोड़ में! हाल में, अंतरिक्ष कारपोरेशन (इसरो का विपणन अंग) ने सूखे से प्रभावित ब्रह्मसांद्र ग्राम (कर्नाटक) को गोद लिया है ताकि किसानों की मदद की जा सके। २०१७ में, इसरो की योजना है कि सार्क उपग्रह छोड़ा जाये। सुदूर संवेदन उपग्रह रिसोर्स सैट २-ए सफलतापूर्वक ०७ दिसंबर २०१६ को पीएसएलवी-सी३६ यान से प्रक्षेपित किया गया। ये संसाधन निगरानी हेतु बनाया एक सुदूर संवेदन उपग्रह है, और २००३ के अभियान रिसोर्स सैट १ व २०११ के अभियान रिसोर्स सैट २ के बाद तीसरा है। इसरो अपना सबसे भारी उपग्रह (३.२ टन वजनी जी-सैट-१९ ई कौमसैट) २०१७ में जी.एस.एल.वी. मार्क-III राकेट से छोड़ेगा। किन्तु सबसे विशाल अभियान (mother of all missions) तो १५ फ़रवरी २०१७ को हुआ जब इसरो ने एक साथ १०४ विदेशी उपग्रहों छोड़े!


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 पृष्ठ  (४ में से) 

एक आकाशगंगा स्तर का विश्व कीर्तिमान!

(All information and pictures from ISRO website)

इसरो के सबसे भरोसेमंद और मेहनती प्रक्षेपण यान - पीएसएलवी - ने अपनी ३९वीं उड़ान (पीएसएलवी वी-सी३७) में ७१४ टन वजनी पृथ्वी-निरीक्षण  कार्टोसैट-२ उपग्रह को, और साथ ही १०३ अन्य साथी उपग्रहों को जिनका वज़न ६६४ किलो था, ५०५ कि.मी. ऊँची कक्षा में छोड़ा। इस यान को सतीश धवन अंतरिक्ष केंद्र (SDSC-SHAR) से छोड़ा गया, और ये इसकी सोलहवीं उड़ान थी जो "एक्स.एल." स्वरुप में थी (स्ट्रेप-ऑन मोटर्स के साथ)। साथ में थे १०१ साथी उपग्रह जिनमें ९६ अमेरिका के थे, और १-१ इजराइल, कज़ाख़स्तान, नेदरलॅंड्स, स्विट्ज़रलैंड, संयुक्त अरब अमीरात का था। भारत के भी २ नैनो-उपग्रह थे। इन सबका कुल वजन था १३७८ किलो।

इस बड़ी उड़ान के महत्वपूर्ण तथ्य 


  • भारत का उच्च-रेसॉल्यूशन  कार्टोसैट-२ उपग्रह पहले अंतरिक्ष में छोड़ा गया, और अनेकों नागरिक अनुप्रयोगों (ऍप्लिकेशन्स) के अलावा  इसका मुख्य कार्य होगा सूक्ष्मता से पाकिस्तान और चीन - भारत के दो शत्रु पडोसी देशों - पर नज़र गड़ाए रखना। तो ये है स्वदेशी तकनीक का ज़ोर - कारगिल के सबक अच्छे सीखे गए हैं।
  • नागरिक उपयोगों की एक सूची है : मानचित्रण अनुप्रयोग, शहरी और ग्रामीण अनुप्रयोग, तटीय भूमि इस्तेमाल और विनियमन, अनेक सुविधाओं का प्रबंधन जैसे राजमार्ग संजाल मॉनिटरिंग, जल वितरण, भूमि-प्रयोग मानचित्र एवं अन्य अनेक एल.आई.एस. और जी.आई.एस. अनुप्रयोग। एक लंबी सूची!
  • कार्टोसैट-२ सीरीज, जो मुख्य उपग्रह है, वो इसी श्रृंखला के पहले चार उपग्रहों के समान ही है।
  • दो भारतीय नैनो उपग्रह - इसरो का आईएनएस १-ए और आईएनएस १-बी - जिनपर चार अलग-अलग पेलोड हैं, वे प्रयोग हेतु छोड़े गए हैं।
  • पीएसएलवी ने सबसे पहले ७१४ किलो के कार्टोसैट-२ उपग्रह को छोड़ा, और उसके बाद १०३ अन्य साथी उपग्रहों को, और इन्हें पृथ्वी से ५२० कि.मी. ऊपर की कक्षा में स्थापित किया।  
  • ९६ उपग्रह अमेरिका के हैं, और पांच इसरो (अंतरिक्ष कारपोरेशन) के ग्राहकों के - इजराइल, कज़ाकस्तान, नेदरलॅंड्स, स्विट्ज़रलैंड, संयुक्त अरब अमीरात, आदि।
  • इसरो की वाणिज्यिक शाखा अंतरिक्ष कारपोरेशन के वैश्विक ग्राहकों के अनुबंध अनुसार नैनो-उपग्रहों को छोड़ा गया है 

१०४ मित्र अंतरिक्ष की यात्रा पर - अंतिम कुछ घंटे!


  • [message]
    • ##rocket##  १५ फ़रवरी, २०१७ तक की रोमांचक समय-घटना
      • ##chevron-right## १५-फरवरी - इसरो ने देश का नाम पुनः रोशन किया! स्वदेशी तकनीक की बुनियाद पर खड़ी सफलता कभी इतनी मीठी नहीं थी!
        ##chevron-right##  १५-फरवरी - पीएसएलवी वी-एक्स-एल राकेट - ४४.४ मीटर ऊँचा और ३२० टन वजनी - भरी गर्जना के साथ उठा, और पृथ्वी के गुरुत्वाकर्षण से छूटा। इसरो ने उसी एक्स-एल राकेट का प्रयोग किया जिससे महत्वकांक्षी चंद्रयान और मंगल अभियान की शुरुआत हुई थी।
        ##chevron-right##  १५-फरवरी - बेहद कुशलता से, इसरो का भरोसेमंद पोलर सॅटॅलाइट लांच व्हीकल (पीएसएलवी-सी-३७) अपने ३९वें मिशन पर सुबह ९:२८ पर श्रीहरिकोटा अंतरिक्ष केंद्र से १०४ उपग्रहों को लेकर उडा, जिनमें १०१ विदेशी थे। 
        ##chevron-right##  १५-फरवरी - सुबह ९:२८ पर SDSC-SHAR से प्रक्षेपण है! इसे इसरो अध्यक्ष ए.एस.किरण कुमार और शीर्ष वैज्ञानिक मिशन कंट्रोल से करीब से देखेंगे
        ##chevron-right##  १४-फरवरी - मोबाइल सेवा टावर को पीछे खिसका लिया गया है। द्वितीय चरण में प्रोपेलेंट भरने का कार्य पूर्ण हुआ
        ##chevron-right##  १४-फरवरी - अनेक अन्य तकनीकी कार्य पूर्ण
        ##chevron-right##  १४-फरवरी - २८ घंटे की उलटी गिनती (काउंटडाउन) सुबह ०५:२८ पर शुरू
        ##chevron-right##  १३-फरवरी - मिशन रेडीनेस रिव्यु समिति और प्रक्षेपण अनुमति बोर्ड ने प्रक्षेपण के २८ घंटे की उलटी गिनती को हरी झंडी दी


बड़ी खबर - भारत का शुक्र गृह को जाने वाला पहला अभियान (शुक्रयान), और मंगल हेतु दूसरा (मंगलयान २) - भी तय हो चुके हैं, और निधि आवंटन भी किया जा चुका है। ये दोनों २०२१-२२ में होंगे। एक बड़ी छलांग!

ये अदभुत यात्रा, चित्रों में !


Spacecraft loaded into thermal vacuum chamber

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PSLV's heat shield being closed
with the 104 satellites inside - stay cool!

Solar panel illumination test

Panel Deployment Test for Cartosat Series 2 satellite

Dynamic Balancing Test

Cartosat-2 Series satellite

Fuel filling of Cartosat-2 Series satellite

Vehicle integration - hoisting of the
nozzle end of PSLV C-37

Core stage of PSLV C-37 integrated
to launch pedestal

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PSLV C-37 first stage integrated

PSLV C-37 liquid stage

PSLV C-37 vehicle at mobile service tower

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PSLV C-37 ready for action!



सफलता!


इतिहास रचने को तैयार



भारत और इसरो के लिए आकाश कोई सीमा नहीं


एक बड़ी विजय!



और देखें एक ज़बरदस्त सेल्फी विडियो - जय हिन्द!
(कुल अवधि - ५:३० मिनिट, मूल स्त्रोत यहाँ)





अब हम इसरो की एक और अद्भुत सफलता के बारे में देखेंगे - दक्षिण एशिया उपग्रह!




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 पृष्ठ (४ में से)


दक्षिण एशिया -  स्वयं का उपग्रह


दक्षेस में नेतृत्व की जिम्मेदारी लेना : 235 करोड़ रूपए लागत वाला “दक्षिण एशिया उपग्रह” 5 मई 2017 को सफलतापूर्वक प्रक्षेपित हुआ। दक्षेस की नवंबर 2014 में नेपाल में हुई शिखर परिषद के दौरान सभी सदस्यों को तब आश्चर्य हुआ जब प्रधानमंत्री मोदी ने दक्षेस सदस्य देशों के लाभ के लिए दक्षेस उपग्रह प्रक्षेपित करने की घोषणा की।

भारत और पाकिस्तान के बीच की कटुता की खाई : पाकिस्तान के इस परियोजना से स्वयं को पूरी तरह से दूर रखने के निर्णय के साथ दक्षिण एशिया उपग्रह भारत, नेपाल, भूटान, मालदीव्स, बांग्लादेश और श्रीलंका की आवश्यकताओं की पूर्ति करेगा। अफगानिस्तान, जिसने अभी तक इस समझौते पर हस्ताक्षर नहीं किये हैं, भी इसमें शामिल है। दक्षेस पहले ही लगभग बेकार है, और यह भारत के लिए एक नया रास्ता हो सकता है। पाकिस्तान ने यह कहते हुए स्वयं को इससे दूर रखा है कि उसका स्वयं का अंतरिक्ष कार्यक्रम है। उके पास पांच उपग्रह हैं परंतु उसके पास भारी उपग्रह प्रक्षेपित करने और उपग्रह निर्माण की क्षमता नहीं है। तीन दक्षेस देशों के पास पहले से ही परिपूर्ण दूरसंचार उपग्रह मौजूद हैं। पकिसन और श्रीलंका की इस दृष्टि से चीन द्वारा सहायता की गई है, जबकि अफगानिस्तान के पास भारत द्वारा निर्मित एक पुराना उपग्रह है जो उसने यूरोप से क्रय किया है।

जीसैट 9 : 2,230 किग्रा वजन वाला दूरसंचार उपग्रह, जिसे भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन (इसरो) द्वारा जीसैट-9 कहा जाता है, तीन वर्ष की अवधि में निर्मित हुआ। यह उपग्रह इस कार्यक्रम में शामिल दक्षेस सदस्यों को परिपूर्ण सेवाएँ प्रदान करेगा, जिनमें दूरसंचार, टेलीविज़न, डायरेक्ट-टू-होम,वीसैट, टेली-शिक्षा और टेली-स्वास्थ्य जैसी सेवाएँ शामिल हैं। विदेश मंत्रालय इस परियोजना की देखरेख कर रहा है।

हॉटलाइनें : यह उपग्रह इसमें शामिल दक्षेस सदस्य देशों के बीच सुरक्षित हॉटलाइन सेवाएँ भी प्रदान कर सकता है, जिनका उपयोग भूकंप, चक्रवातों, बाढ़, और सुनामी जैसी आपदाओं के दौरान आपदा प्रबंधन में किया जा सकता है। दक्षिण एशिया उपग्रह में 12 ट्रांसपोंडर हैं – रेडियो संकेत के माध्यम से निर्मित किये जाने वाले संचार उपकरण। प्रत्येक दक्षेस देश को कम से कम एक ट्रांसपोंडर में एक्सेस प्राप्त होगा, जिसके माध्यम से वे अपने प्रोग्राम प्रसारित कर पाएँगे। प्रत्येक देश को अपनी स्वयं की जमीनी अधोसंरचना विकसित करनी होगी।

प्रक्षेपण : इसका प्रक्षेपण श्रीहरिकोटा के सतीश धवन अंतरिक्ष केंद्र से हुआ जिसमें भू-स्थैतिक प्रक्षेपण वाहन (जीएसएलवी) एमके-2 का उपयोग हुआ। जीसैट 9 अन्य जीसैट की तुलना में सामरिक दृष्टि से अधिक श्रेष्ठ स्थिति में होगा क्योंकि इसे दक्षिण एशिया उपग्रह कहा गया है। यह ध्यान रखा जाना चाहिए कि 15 फरवरी 2015 को इसरो ने एक साथ 104 उपग्रह प्रक्षेपित करके विश्व कीर्तिमान स्थापित किया था। एक नया प्रयोग : इसरो इस व्यवस्था का प्रयोग एक उपग्रह केंद्र –रखरखाव उपाय के रूप में करने वाला है, जिसका अर्थ है कक्षा में होते हुए उपग्रह की स्थिति में समायोजन करना। इससे उपग्रह में एक निश्चित मात्रा में इंधन ले जाने से बचत होती है जिसके कारण वह अधिक पेलोड ले जा सकता है।


लॉन्च वीडियो का आनंद लें






सहयोग के एक नए युग की शुरुआत 


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अंतरिक्ष टेक्नोलॉजी से सम्बंधित एक व्याख्यान का एक हिस्सा यहाँ देखें! (ऐसे अन्य व्याख्यान आपको यहाँ मिलेंगे)
  







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इस बोधि को हम सतत अद्यतन करते रहेंगे। पढ़ते रहिये। और कमेंट्स थ्रेड में अपने विचार अवश्य बताएं। 


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    • बोधि कडियां (गहन अध्ययन हेतु; सावधान: कुछ लिंक्स बाहरी हैं, कुछ बड़े पीडीएफ)
        •  ##chevron-right## इसरो का IRNSS यहाँ ##chevron-right## भारत का मंगल अभियान MOM यहाँ ##chevron-right## इसरो चंद्रमा पर पहुंच - चंद्रयान १ यहाँ ##chevron-right## इसरो पुनः चंद्रमा पर जायेगा - चंद्रयान २ यहाँ ##chevron-right## डॉ विक्रम साराभाई के बारे में यहाँ ##chevron-right## नासा होमपेज यहाँ  ##chevron-right## विश्व के सर्वोच्च अंतरिक्ष तकनीक राष्ट्र यहाँ ##chevron-right## मंगलयान की लागत रु.४५० करोड़ से कम थी यहाँ ##chevron-right## इसरो के अंतरिक्ष कॉर्प ने ग्राम गोद लिया यहाँ  ##chevron-right## इसरो २०१७ में दक्षेस उपग्रह छोड़ेगा यहाँ ##chevron-right## इसरो २०१५-१६ वार्षिक रिपोर्ट pdf यहाँ ##chevron-right## इसरो एक साथ ८२ उपग्रह छोड़ेगा यहाँ ##chevron-right## सबसे भारी प्रक्षेपण यहाँ  ##chevron-right## सबसे भारी प्रक्षेपण यहाँ  ##chevron-right## लघु उपग्रह यहाँ 



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    http://hindi.bodhibooster.com/2016/10/Hindi-Bodhi-ISRO-Space-research-department-space-nuclear-NASA-solar-system-PSLV-GSLV-IRNSS.html
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