महात्मा गाँधी के जन्म से भी पहले, आज से 148 वर्ष पूर्व, 1868 में स्थापित टाटा समूह , आज भारत का सबसे जाना-पहचाना और सम्मानित औद्योगिक घरा...
महात्मा गाँधी के जन्म से भी पहले, आज से 148 वर्ष पूर्व, 1868 में स्थापित टाटा समूह, आज भारत का सबसे जाना-पहचाना और सम्मानित औद्योगिक घराना है। दशकों की कठिन मेहनत, विश्वास और ईमानदार समर्पण द्वारा निर्माण किया गया टाटा यह नाम सत्यनिष्ठा और सत्यवादिता का पर्यायवाची बन चुका है। जहाँ एक ओर भारत के अधिकांश औद्योगिक समूह विवादों, संदेहास्पद व्यवहारों, अंतर-पीढ़ी कलह में डूबे हुए हैं, और उनके नाम सम्माननीय ढंग से अपने कर्जे चुकता नहीं करने से लेकर व्यवस्था प्रतिष्ठान को रिश्वत देने तक के आरोपों में घसीटे गए हैं, वहीं दूसरी ओर टाटा समूह भारतीय उद्योग जगत की प्रतिष्ठा की रक्षा करते हुए प्रहरी के रूप में खड़ा है।
The above picture, and all statistics therein, was valid till the evening of October 24, 2016.
नामों की समानता के चलते इस परिवार का पारिवारिक संयोजन समझने के लिए थोड़ा मुश्किल है, जिसे हमने यहाँ सरल किया है:
इस शक्तिशाली समूह की संरचना को समझने के लिए यहाँ से शुरू करें:
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नामों की समानता के चलते इस परिवार का पारिवारिक संयोजन समझने के लिए थोड़ा मुश्किल है, जिसे हमने यहाँ सरल किया है:
- समूह के संस्थापक – जमशेटजी टाटा (1839-1904, आयु 65 वर्ष)
जमशेटजी टाटा के पुत्र –
(a) दोराबजी टाटा (1859- 1952, आयु 72 वर्ष – संस्थापक टाटा स्टील/पॉवर/केमिकल्स)
(b) रतनजी टाटा (1871- 1918, आयु 47 वर्ष) – संस्थापक परोपकारी न्यास (सर रतन टाटा ट्रस्ट) जमशेटजी टाटा के दूसरे बेटे, रतनजी टाटा ने एक बेटे – नवल होर्मुसजी टाटा (1904-1989) को गोद लिया जो एक प्रतिष्ठित उद्योगपति बने। इस गोद लिए बेटे नवल एच टाटा के दो पुत्र थे – रतन टाटा (वर्तमान अध्यक्ष, 2016) और नोएल टाटा (टाटा इंटरनेशनल के वर्तमान अध्यक्ष)। - परंतु रुकिए, समूह में एक और रतनजी भी हैं – रतनजी दादाभॉय टाटा (1856-1927, आयु 70 वर्ष), जो जमशेटजी टाटा के मित्र और प्रसिद्द भारत रत्न जहाँगीर रतनजी दादाभॉय (जेआरडी) टाटा (1904- 1993, आयु 89 वर्ष) के पिता थे।
इस शक्तिशाली समूह की संरचना को समझने के लिए यहाँ से शुरू करें:
- टाटा संस लिमिटेड (1868 में जमशेटजी टाटा द्वारा स्थापित) = टाटा समूह की नियंत्रक कंपनी। टाटा संस की समूह की सभी कंपनियों में सर्वाधिक अंश भागीदारी है।
- टाटा संस के अध्यक्ष = टाटा समूह के अध्यक्ष (यह एक परंपरा है)
- टाटा संस, टाटा नाम और टाटा के ट्रेडमार्क के मालिक हैं।
- टाटा संस की अंश भागीदारी की पद्धति :
- टाटा संस की 66 प्रतिशत भागीदारी टाटा परिवार द्वारा निर्मित परोपकारी न्यासों के स्वामित्व की है (यह महत्वपूर्ण है – यहाँ स्वामित्व किन्ही व्यक्तियों या परिवारों का नहीं है – यह एक ऐसी विशिष्टता है जिसने टाटा को महान बनाया है)
- टाटा संस लिमिटेड की इस 66 प्रतिशत अंश भागीदारी के अनेक न्यास स्वामी हैं, जिनमें से कुछ नाम हैं : सर दोराबजी टाटा न्यास (27.9 प्रतिशत), सर रतन टाटा न्यास (23.5 प्रतिशत), जेआरडी टाटा न्यास (4 प्रतिशत) इत्यादि
- टाटा संस लिमिटेड में अंश भागीदारी की दृष्टि से एक एनी शक्तिशाली समूह है शापूरजी पालोनजी समूह। इसकी दो निवेश कंपनियां हैं – स्टर्लिंग इन्वेस्टमेंट कॉर्प (9.1 प्रतिशत), साइरस इन्वेस्टमेंट्स (9.1 प्रतिशत) – हाँ ये वही साइरस मिस्त्री हैं (समूह में दूसरे गैर-टाटा अध्यक्ष)।
इस शक्तिशाली और प्रतिष्ठित उद्योग समूह के विषय में पांच बातें जानना रोचक है :
- 148 वर्षों के लंबे इतिहास में इसके केवल छह अध्यक्ष हुए हैं! ये हैं : जमशेटजी नौशेरवानजी टाटा (1868-1904), सर दोराबजी टाटा (1904-1932), नौरोजी सकलातवाला (पहले गैर-पारिवारिक अध्यक्ष, 1932-1938), जहाँगीर रतनजी दादाभॉय टाटा (1938-1991), रतन टाटा (1991-2012), साइरस पालोनजी मिस्त्री (दूसरे गैर-पारिवारिकअध्यक्ष 2012-2016) और अब पुनः रतन टाटा (अक्टूबर 2016 से अंतरिम अध्यक्ष)।
- इसके परिचालन के सात प्रमुख क्षेत्र हैं – 1. रसायन, 2. उपभोक्ता उत्पाद, 3. ऊर्जा, 4. अभियांत्रिकी, 5. सूचना प्रौद्योगिकी और दूर संचार, 6. सेवाएँ और 7. इस्पात।
- इन सात क्षेत्रों की शीर्ष कंपनियां क्रमशः इस प्रकार हैं : 1. टाटा केमिकल्स / रेलीस, 2. टाटा साल्ट / टाइटन / वोल्टास तनिष्क, 3. टाटा पॉवर, 4. टाटा मोटर्स, 5. टीसीएस /टाटा टेलीसर्विसेज, 6. इंडियन होटेल्स (ताज) / एयर एशिया कंपनी / विस्तारा / टाटा इंटरनेशनल और 7. टाटा स्टील।
- टाटा बैनर के नीचे की शीर्ष कंपनियां (राजस्व की दृष्टि से) – टाटा स्टील, टाटा मोटर्स, टाटा कंसल्टेंसी सर्विसेज, टाटा पॉवर, टाटा केमिकल्स, टाटा ग्लोबल बेवरेजेज, टाटा टेलीसर्विसेज, टाइटन, टाटा कम्युनिकेशन्स और ताज समूह। इनमें से, टीसीएस एक ऐसी दुधारू गाय है जो लगातार अरबों कमा कर लाती है (डॉलर, रुपये नहीं!)
- वे बातें जो टाटा को अन्य भारतीय औद्योगिक समूहों से (और वैश्विक समूहों से भी) अलग करती हैं वे हैं
- टाटा समूह सामुदायिक परोपकार के महत्वपूर्ण सिद्धांत पर काम करता है। इसकी शुरुआत उसने 1912 से की थी, जब उसने 8 घंटे काम का नियम बनाया, संभवतः इससे पहले विश्व की किसी भी अन्य कंपनी ने यह नहीं किया था। वर्ष 1917 में टाटा समूह के सभी कर्मचारियों के लिए चिकित्सा-सेवा नीति बनाई गई। आधुनिक पेंशन, श्रमिकों की क्षतिपूर्ति, मातृत्व लाभ, और लाभ साझा करने की योजना शुरू करने वाली यह विश्व की पहली कंपनियों में से एक थी यह गहरा इतिहास वास्तव में अद्भुत है !
- टाटा समूह की अधिकांश गतिविधियाँ धर्मार्थ न्यासों के तहत संचालित होती हैं ! यह अन्य औद्योगिक समूहों से सर्वथा अलग है, जहाँ नियंत्रक परिवार (और उसके सदस्य) सभी भौतिक लाभों को नियंत्रित करते हैं।
- समूह के कोषों की सर्वथा अलग हटकर परियोजनाएं और संस्थाएं हैं, जैसे भारतीय विज्ञान संस्थान (IISc), टाटा मूलभूत अनुसंधान संस्थान (TIFR), राष्ट्रीय ललित कला केंद्र और टाटा मेमोरियल अस्पताल।
- टाटा समूह की प्रत्येक कंपनी अपनी परिचालन आय का 4 प्रतिशत न्यास को देती है और परिवार के सदस्यों की प्रत्येक पीढ़ी ने अपने लाभ का एक बड़ा हिस्सा इन्हें दिया है ! भारत के अन्य समूहों में (और विदेशों में भी) आमतौर पर यह नहीं हुआ है।
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इस शुद्ध रूप से भारतीय समूह को वैश्विक बनाने के लिए रतन टाटा द्वारा उठाए गया कदम :
- उन्होंने सभी व्यवसाय अध्यक्षों और निदेशकों के लिए अब तक कभी भी लागू नहीं किया गया निवृत्ति आयु का नियम लागू किया, जिसके कारण समूह के अनेक वृद्ध होते क्षत्रपों की समस्या का समाधान हो गया। 1990 के दशक में अनेक लोग यह मानकर चल रहे थे कि शापूरजी पालोनजी मिस्त्री रतन टाटा को अध्यक्ष पद से हटाकर स्वयं टाटा समूह के अध्यक्ष बनेंगे।
- 1991 में श्री नरसिंह राव द्वारा शुरू की गई उदारीकरण की प्रक्रिया का अर्थ था कि टाटा समूह को प्रौद्योगिकी-चालित नेतृत्व, वैश्विक प्रतिस्पर्धात्मकता पर ध्यान केंद्रित करना होगा और व्यवसाय का कोई भी क्षेत्र होने के बावजूद उन्हें घरेलू स्तर पर शीर्ष तीन में स्थान बनाना होगा। अतः रतन टाटा ने टाटा व्यापार व्यवसाय की संरचना को युक्तिसंगत बनाना शुरू किया। एक ऐसा समूह जो गैर-संरचित था, जिसके व्यापार व्यवसाय बाहुविध कंपनियों के बीच परस्पर अतिव्यापी थे, उन्हें परिवर्तित होना होगा।
- रतन टाटा ने एक भारी पुनर्गठन कार्यक्रम शुरू किया टाटा समूह में अभी भी क्षेत्रों की दृष्टि से काफी विविधता है नमक से लेकर सॉफ्टवेयर समूह, परंतु यह एक तरीके के साथ था।
- रतन टाटा ने ब्रांड टाटा पर भी ध्यान दिया। 1998 तक टाटा समूह का एक प्रतीकचिन्ह हो गया और टाटा ब्रांड का स्वामित्व टाटा संस के पास आ गया। ब्रांड नाम का उपयोग करने से पहले अब कंपनियों को टाटा संस के साथ ब्रांड इक्विटी और व्यापार संवर्धन समझौते करने पड़ते थे। उन्होंने प्रक्रियाओं को संस्थागत बनाया। अत्यंत पुरानी कंपनियों में उन्होंने नई योग्यता जगाई।
- रतन टाटा ने छोटे के साथ बड़ा करके दिखाया। एक उदाहरण – न्यू यॉर्क का आलीशान पिएरे होटल खरीदा गया और उसी समय छोटे बजट का जिंजर होटल शुरू किया गया। उसी प्रकार, मोटर वाहन क्षेत्र में एक ओर प्रतिष्ठित जगुआर और लैंड रोवर को खरीदा तो दूसरी ओर विश्व की सबसे सस्ती कार बाजार में उतारी (यह बात अलग है कि टाटा की यह योजना फ्लॉप हो गई)।
- उन्होंने कुछ व्यवसायों के विक्रय के माध्यम से संगठन को सुचारू बनाया (यही काम साइरस मिस्त्री करने का प्रयास कर रहे थे)। रतन टाटा को ही इस बात का श्रेय देना होगा कि एक नए उदारीकृत भारत में टाटा समूह देश के शीर्ष 3 औद्योगिक समूहों में अपना स्थान बनाये रखने में सफल रहा जबकि अन्य अनेक समूह हाशिये पर चले गए।
- रतन टाटा ने बड़े वैश्विक कदम उठाने के निर्णय लिए – फरवरी 2000 में टेटली को खरीदने से इस प्रक्रिया की शुरुआत हुई। इसके बाद ब्लॉकबस्टर कोरस स्टील की खरीद हुई, जो निर्बाध रूप से संपन्न हो गई (मित्तल के आर्सेलर सौदे के विपरीत जिसने काफी हंगामा पैदा किया, टाटा का सौदा शांतिपूर्ण ढंग से निपट गया)। टाटा स्टील एक ऐसी कंपनी के लिए बोली रही थी जिसका आकार उससे चौगुना था, और कंपनी ने केवल 25 प्रतिशत इक्विटी रखी थी, शेष की व्यवस्था विदेशी ऋण से की गई थी। और यहाँ तक कि उसके लिए भी निधियां कोरस से आने वाले नकद प्रवाह से ही जुटाई जानी थीं न कि टाटा स्टील से – इससे इस समूह की वैश्विक प्रतिष्ठा का पता चलता है। इसका अंतिम परिणाम हालाँकि खास उत्साहजनक नहीं रहा है। जगुआर लैंड रोवर सौदे के माध्यम से टाटा ने वैश्विक स्तर पर भारी आय अर्जित करना शुरू किया।
[आप इस बोधि को अंग्रेजी में भी पढ़ सकते हैं, यहाँ क्लिक करें ##link##] - जब रतन टाटा ने कंपनी के अध्यक्ष के रूप में काम शुरू किया था तब समूह के राजस्व का मात्र 5 प्रतिशत राजस्व विदेशों से आता था। और जब वे निवृत्त हुए तो यह 100 से अधिक देशों से आने वाला 65 प्रतिशत था!
- पर्यावरणीय मुद्दों पर विवाद बने रहे। ओडिशा के धामा में बंदरगाह के निर्माण के लिए लार्सन टूब्रो के साथ टाटा का संयुक्त उपक्रम संरक्षित क्षेत्र से इसकी निकटता के कारण जांच के घेरे में आ गया है, जिनमें से एक लुप्तप्राय ओलिवर रिडले कछुओं के विश्व के सबसे बड़े आवास हैं और दूसरा भारत का दूसरा सबसे बड़ा मैन्ग्रोव वन है। तंज़ानिया में एक सोडा ऐश उत्खनन संयंत्र भी इसके एक सरोवर के निकट होने से उसे और फ्लेमिंगो जनसंख्या को होने वाले खतरे के कारण निशाने पर रहा। टाटा नैनो का सिंगूर (बंगाल) विवाद भी काफी समय तक भड़कता रहा।
- टाटा समूह के अध्यक्ष के रूप में अपने कार्यकाल के दौरान समूह के राजस्व में 40 गुना की वृद्धि हुई, व लाभ में 50 गुना से अधिक की वृद्धि हुई ! यह समूह पुराने कमोडिटी-बिज़नस से परिवर्तित होकर एक सेवा-समूह में परिवर्तित हो गया। इन सभी ने टाटा समूह को एक भारत केंद्रित समूह से वैश्विक समूह बना दिया, जिसका 65 प्रतिशत से अधिक राजस्व 100 से अधिक देशों में परिचालित होने वाली गतिविधियों से आने लगा। वर्ष 2012 में रतन टाटा ने शीर्ष पद छोड़ दिया जिसे उन्होंने साइरस मिस्त्री को सौंप दिया, और चार वर्ष के कार्यकाल के बाद मिस्त्री को हटाकर उन्हें स्वयं फिर से वापस आना पड़ा।
टाटा नैनो - शानदार इंजीनियरिंग और डिजाईन, दुर्भाग्यशाली सेल्स विफलता
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सितंबर २०१६ में द इकोनॉमिस्ट पत्रिका में छपा एक आलोचनात्मक लेख, जिसने शायद इस घटना के पटाक्षेप हेतु, बोर्ड को आवश्यक अंतिम कारण प्रदान कर दिया होगा। शायद। हम केवल कयास लगा सकते हैं।
नया व्यक्ति अभी समूह को समझने का प्रयास ही कर रहा था जब उन्हें हटा दिया गया .
अब हम टाटा समूह में साइरस मिस्त्री के प्रवेश और निर्गम का विश्लेषण करते हैं जो उस परिवार से आते हैं जिनकी टाटा संस में सबसे बड़ी पारिवारिक होल्डिंग है जो समूह की होल्डिंग कंपनी भी है।
- सोमवार 24 अक्टूबर 2016 को घोषणा की गई कि बोर्ड ने साइरस मिस्त्री को अध्यक्ष पद से हटाने का निर्णय लिया है। यह औद्योगिक विश्व के लिए और जिन्हें व्यापार और नेतृत्व की समझ है उनके लिए एक बड़ा झटका था।
- साइरस मिस्त्री के परिवार (शापूरजी पालोनजी समूह) ने इस कदम का विरोध किया है। और जैसी मीडिया में ख़बरें आ रही हैं, उन्होंने इसे गैर-कानूनी बताया है क्योंकि उन्हें न्यूनतम 15 दिन का नोटिस भी नहीं दिया गया। यह निश्चित रूप से टाटा समूह की कार्यप्रणाली के अनुरूप नहीं है अतः इसका कुछ विश्लेषण होना चाहिए। साइरस को अध्यक्ष पद का सबसे छोटा कार्यकाल मिला (दूसरा सबसे छोटा कार्यकाल दूसरे गैर-टाटा अध्यक्ष नौरोजी सकलातवाला का था जिनका 6 वर्ष अध्यक्ष रहते हुए वर्ष 1938 में निधन हुआ था)।
- साइरस मिस्त्री के समक्ष चुनौतियाँ कौन सी थीं? जब उन्होंने इस शक्तिशाली समूह की बागडोर संभाली तब समूह के सामने कुछ जटिल चुनौतियाँ थीं
- पहली - विश्व अर्थव्यवस्था की हालत बिलकुल अच्छी नहीं थी , और एक ऐसे समूह के लिए, जो वैश्विक हो चुका था, यह अच्छी खबर नहीं थी।
- दूसरी – टाटा नैनो जैसी दूरदृष्टि पूर्ण परियोजनाएं संभावित ग्राहकों में हुए रणनीतिक रूप से गलत विपणन के कारण बुरी तरह से असफल हो गई थीं।
- तीसरी – विश्व स्तर पर सामाजिक उन्मुखीकरण के लिए समूह की प्रशंसा हो रही थी, परंतु उसी समय वित्तीय प्रदर्शन के लिए उसकी कड़ी आलोचना भी हो रही थी (इकोनॉमिस्ट पत्रिका में यहाँ देखें)
- चौथी – इसी लेख में यह उल्लेख किया गया था कि समूह की नौं सूचीबद्ध कंपनियों में से सात का आर्थिक मूल्य संवर्धन ऋणात्मक था, अर्थात, ब्याज और कर के पूर्व उनका अर्जन उनकी समग्र पूँजी की लागत से कम था।
- पांचवी – पुराने संरचनात्मक मुद्दे अभी भी बने हुए थे। उदाहरणार्थ, टाटा फर्में (विभिन्न समूहों के स्वामित्व वाली) एक ही अनुबंध पर बोली लगाती हैं या उनके नए क्षेत्रों में प्रवेश आपसी प्रतिस्पर्धा से होते हैं। यह एक कर है ! एक उदाहरण – लोग टाटा डोकोमो और टाटा स्काई जैसी सेवाओं के संयुक्तीकरण ( की असफलता के उदाहरण देते हैं जिनके माध्यम से सभी के लिए निर्बाध सेवा देने का एक अच्छा अवसर था।
- छठी – हाल की डोकोमो के साथ हुई घटना जिसके कारण एक गंभीर कूटनीतिक समस्या पैदा हो गई। रतन टाटा को इस मुद्दे का इस तरह बोर्ड रूम की चारदीवारी से बाहर निकल जाना बेहद गलत लगा होगा।
- सातवीं – साइरस मिस्त्री द्वरा लिए गए महत्वपूर्ण निर्णय जैसे कोरस स्टील के अधिग्रहित यू.के. के संयंत्र बेचने का निर्णय (जिन्हें 2007 में टाटा ने अधिग्रहित किया था), और ये अनेक लोगों को पसंद नहीं आया।
- आठवाँ – रतन टाटा अभी भी टाटा न्यासों के अध्यक्ष थे और विमानन जैसे उनके पसंदीदा विषय विवाद का कारण हो सकते हैं। इसी प्रकार का एक उदाहरण सूचना प्रौद्योगिकी फर्म इंफोसिस का भी है जिसे अपने संस्थापक अध्यक्ष नारायणमूर्ति को वापस लाना पड़ा और अंततः उसे एक बाहरी व्यक्ति (विशाल सिक्का) को सौंपना पड़ा। मिस्त्री की अपनी बड़ी योजनाएं थीं – 2025 का विज़न – जिसका क्रियान्वयन नहीं हो पाया। शायद उन्होंने परिकल्पना की थी कि रक्षा, एयरोस्पेस, खुदरा और वित्त जैसे क्षेत्रों पर ध्यान केंद्रित किया जाए।
- नवां - और अंतिम - ये आरोप है कि मिस्री की कार्यप्रणाली समूह के नैतिक मापदंडों पर खरी नहीं उतर रही थी। यौन उत्पीडन के एक मामले पर की गई कार्यवाही (जो शायद उतनी कड़ी नहीं थी) से जुडी खबरें अक्सर मीडिया में आ जाती हैं.
- संभवतः छोटी चिंगारियों की ऐसी ही एक श्रृंखला अंतिम, अपरिहार्य खंजर के रूप में परिणत हुई जो सीधे साइरस मिस्त्री के अध्यक्ष पद को समाप्त कर गया।
२६ अक्टूबर को, साइरस मिस्री ने अपना पक्ष रखा और एक विस्तृत पत्र जो उन्होंने बोर्ड को लिखा, जिसे हमने इन्टरनेट से लेकर यहाँ लिंक किया है। ये पत्र काफी कुछ उजागर करता दिखता है, जो काफी चिंताजनक है।
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- २४ अक्टूबर २०१६ का विचित्र संयोग दिवस होना
- २४ अक्टूबर को, दो अलग-अलग क्षत्रों में घटी घटनाओं में विचित्र समानताएं देखने को मिलीं। उत्तर प्रदेश में, जो भारत का सबसे विशाल राज्य है और जहाँ चुनाव होने वाले हैं, सत्तारूढ़ दल - समाजवादी पार्टी (सपा) - के सर्वेसर्वा मुलायम सिंह यादव (७६ वर्ष) ने अपने पुत्र और मुख्यमंत्री अखिलेश यादव (४३ वर्ष) को डाँटते हुए पार्टी व सरकार में उभरे हुए मतभेदों को समाप्त करने की हिदायत दी. उधर मुम्बई में, कॉर्पोरेट जगत के सम्मानित चेहरे श्री रतन टाटा (७८ वर्ष) ने, अपने ग्रुप के वर्तमान अध्यक्ष श्री सायरस मिस्री (४८ वर्ष) के प्रति अपनी नाराज़गी ज़ाहिर कर दी. दोनों ही घटनाओं में अपने संगठनों को नुक्सान पहुचने का माद्दा है. दोनों ही में, युवा किरदार ने एक नया पथ चुनने की सजा पाई है. दोनों ही में, वरिष्ठों ने दांव चला है।
दिसंबर २०१६ में, जैसे जैसे वाक्-युद्ध बढ़ता चला गया, अंदर की बातें बाहर आने लगी और विश्लेषकों ने पूरी कहानी के अलग-अलग टुकड़ों को जोड़ कर एक विश्वसनीय कथा तैयार कर दी। एक बड़ी रिपोर्ट में इकनोमिक टाइम्स इसका सार प्रस्तुत किया जो हम आपके लिए आगे के भाग में लाये हैं।
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- वास्तव में हुआ क्या था - परदे के पीछे की असली कथा
- छोटे और बड़े मतभेदों ने ऐसा रूप लिया कि श्री रतन टाटा ने अंततः श्री सायरस मिस्री को सबसे पड़े पद से हटाने का निर्णय ले लिया। ##chevron-right## पिज़्ज़ा बनाम कॉफ़ी : टाटा का अमेरिकी कॉफ़ी श्रृंखला स्टारबक्स के साथ एक सफल गठबंधन है। मिस्री गुट ने अमेरिकी पिज़्ज़ा श्रृंखला लिटिल सीसर्स से हाथ मिलाने का प्रस्ताव निदेशक मंडल को दिया। रतन टाटा नाखुश हुए कि बोर्ड का समय ऐसे विषय पर लिया जा रहा है जिसे समूह की कोई दूसरी कंपनी भी देख सकती थी। और कॉफ़ी व्यवसाय पहले से ही टाटा समूह का हिस्सा रहा है, पिज़्ज़ा नहीं! ##chevron-right## चुनावी चंदा : टाटा समूह पहले से ही अपने इलेक्टोरल ट्रस्ट (चुनावी न्यासों) की मदद से संसदीय चुनावों में चन्दा देता रहा है। मिस्री के एक साथी ने सुझाव दिया कि ओडिशा विधानसभा चुनावों में भी चन्दा दिया जाये, जो रतन टाटा को गलत लगा. मिस्री के करीबी लोगों ने इस मुद्दे पर अलग कहानी बताई है। ##chevron-right## प्रतिस्पर्धी बोलियां : एक सेना के कॉन्ट्रैक्ट (रु. ६०,००० करोड़ के भविष्य के पैदल सेना युद्धक वाहन) हेतु दो अलग-अलग टाटा कंपनियों ने बोलियां पेश कीं - इससे रतन टाटा नाराज़ हुए क्योंकि उन्हें लगा कि एक ही समूह से एक ही कंपनी ने ऐसा करना चाहिए था। ##chevron-right## टाटा-डोकोमो विवाद : रतन टाटा चाहते थे कि समूह की प्रतिबद्धता पूरी की जाये और जापानियों की पैसा दे दिया जाये। मिस्री के आर.बी.आई. के नियमों के अपने विश्लेषण के अनुसार कानूनी रूप से इसमें दिक्कतें थीं।
उपसंहार
विशाल व्यवसाय साम्राज्य का संचालन करना कभी आसान नहीं होता है। एक सशक्त इतिहास और कठोर नैतिक मानकों के बावजूद व्यापार आखिर व्यापार होता है। इसमें नित्य नई चुनौतियाँ आती हैं, कठिन प्रतिस्पर्धियों को संभालना पड़ता है और मूल्य संवर्धन करना पड़ता है। जब विशाल विरासत का बोझ नए व्यक्ति के कंधों पर आ जाता है तो व्यक्ति परिणाम के बारे में कभी भी आश्वस्त नहीं हो सकता। केवल एक ही सत्य है – समय बदलता है, लोगों को भी समयानुसार बदलना ही होगा। टाटा जैसे विशाल औद्योगिक साम्राज्य में अनेक शक्ति समूह निश्चित ही होंगे, और इनमें से कौन सा समूह विजयी होगा इसका अंदाजा नहीं लगाया जा सकता।
नियुक्ति के बाद साइरस मिस्त्री को रतन टाटा ने सलाह दी थी "Be your own man" अर्थात अपना आदमी बनो, और अपने हिसाब से चलो। आज शायद साइरस मिस्त्री सोच रहे होंगे कि उन्हें बुद्धिमत्तापूर्ण सलाह मानने की कीमत क्यों चुकानी पड़ी। हम शायद ये कभी न जान सकें कि रतन टाटा ने अंततः निर्णय क्यों लिया, किन्तु इतना तय है कि यह निर्णय इस समूह को आनेवाले अनेक वर्षों तक प्रभावित करता रहेगा, यदि कानूनी तौर पर नहीं तो भावनात्मक तौर पर तो निश्चित ही. और यदि श्री मिस्री द्वारा बोर्ड को भेजे गए गए पत्र में लगाए आरोप सही हैं, तो मामला अत्यंत गंभीर है। हालाँकि इन आरोपों के खंडन तुरंत ही आने लगे, और हम इनसे जुडी खबरें बोधि कड़ियों में लगातार अपडेट करते रहेंगे - देखें नीचे।
हम लगातार घटती परिस्थितियों को आने वाली बोधियों में आप तक लाते रहेंगे। पढ़ते रहिये! और हाँ, कमैंट्स थ्रेड में अपने विचार ज़रूर लिखियेगा (आप आसानी से हिंदी में भी लिख सकते हैं)। इससे हमें ये प्रोत्साहन मिलता है कि हमारी मेहनत आपके काम आ रही है, और इस बोधि में मूल्य संवर्धन भी होता रहता है।
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- यहाँ लगातार नए समाचार आते रहेंगे - देखते रहिये
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