वस्तु एवं सेवा कर : भारत का सर्वोच्च कर सुधार

वस्तु और सेवा कर भारत का सबसे महत्वकांक्षी कर-सुधार कार्यक्रम है। पेश है संपूर्ण विश्लेषण

वस्तु और सेवा कर पर एक विस्तृत और उपयोगी संसाधन - प्रोफेशनल्स, अभ्यर्थियों, परीक्षा तैयारी (बैंक पीओ, यूपीएससी, एमबीए), जीडी-इंटरव्यू, कॉलेज और स्कूल छात्रों हेतु 


करों का वर्णपट


किसी भी आधुनिक सभ्यता का प्रशासन एक वृहद और जटिल राज्य व्यवस्था करती है, जिसे अपने अस्तित्व हेतु विशाल मात्रा में राजस्व की आवश्यकता पड़ती है। कर (टैक्स) उस ईंधन का मुख्य भाग होते हैं जो इस मशीन को जीवित रखता है।

सरकारें कर क्यों लगाती हैं? शासन के कार्य जारी रखने के लिए आवश्यक राजस्व का अर्जन करने के लिए, अर्थात स्वयं के व्ययों का वित्तीयन करने के लिए। बडी संख्या में करों का उपयोग अंततः सार्वजनिक सेवाओं के संचालन के लिए किया जाता है जो देश के नागरिकों के लिए हितकारी और लाभदायक होती हैं। मानवता के इतिहास में हर राजा, युद्ध-सम्राट, सामंती जमींदार या सरकार ने अपनी प्रजा पर कर लगाए हैं। दुर्भाग्यवश, आधुनिक भारत में, ये व्यवस्था बेहद जटिल और नकारात्मक होती चली गयी है। जीएसटी प्रशासन शायद भारतीय कर व्यवस्था में सरलता और सुगमता वापस ला सके।

जीवन की मूल आवश्यकताएं, सूचीबद्ध 

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    • कर (Tax)
      • कर सरकार द्वारा किसी उत्पाद, आय या गतिविधि पर प्रभारित किया जाने वाला शुल्क होता है। यदि यह किसी व्यक्ति या कंपनी की आय पर अधिरोपित किया जाता है तो यह प्रत्यक्ष कर बन जाता है। यदि कर किसी वस्तु या सेवा के मूल्य पर अधिरोपित किया जाता है तो यह अप्रत्यक्ष कर बन जाता है।
    • विक्रय कर
      • किये गए प्रत्येक विक्रय पर अधिरोपित किये गए कर को विक्रय कर कहा जाता है। इस प्रकार, कोई व्यापारी किसी दूसरे व्यापारी  को माल की बिक्री करते समय से स्थानीय विक्रय कर संग्रहित करता है जो आमतौर पर वस्तु के मूल्य में ही शामिल होता है। आगे भी  के साथ इसी प्रक्रिया को दोहराता है। इस प्रकार कर बार-बार अधिरोपित होता रहता है क्योंकि  के विक्रय मूल्य में उसका  से किया हुआ क्रय मूल्य भी शामिल है (जिसमें विक्रय कर शामिल था) और उसका लाभ शामिल है।
    • मूल्य संवर्धित कर (वैट) (VAT)
      • इन्वेंटरी प्रक्रिया के प्रत्येक चरण पर लगाया गया कर। प्रक्रिया के प्रत्येक चरण पर - विनिर्माता से वितरक तक और थोक विक्रेता से खुदरा विक्रेता तक और अंततः ग्राहक तक - कर अधिरोपित किया जाता है। वैट एकसमान होता है।
    • सेवा कर (एसटी)
      • सेवाओं पर अधिरोपित किया गया कर, और इनकी संख्या बहुत है!
    • उत्पादन शुल्क और वैट
      • वस्तुओं पर अधिरोपित कर, और किसी भी उपभोक्ता-प्रधान समाज में इनकी संख्या ज़बरदस्त  है!
    • वस्तु एवं सेवा कर (जीएसटी)
      • वस्तुओं और सेवाओं, दोनों पर अधिरोपित किया गया मूल्य संवर्धित कर (वैट)। एक व्यापक कर जो अन्य सभी करों को सम्मिलित करता है। भारत में वैट भी करों के प्रपाती प्रभाव (cascading effect) को समाप्त करने में सक्षम नहीं था, अतः वस्तु एवं सेवा कर प्रशासन लाने की जद्दोजहद। जीएसटी उपभोग कर के समान ही एक गंतव्य कर है। यह वस्तुओं और सेवाओं पर तब अनुप्रयुक्त होता है जब उपभोक्ता उन्हें क्रय करता है। वर्तमान में 160 से अधिक विकसित देशों में यह व्यवस्था लागू है। जीएसटी गंतव्य सिद्धांत के तदनुसार आयात जीएसटी के दायरे में होंगे, जबकि निर्यात शून्य-क्रमित होंगे। भारत के भीतर अंतर-राज्य लेनदेनों के मामले में राज्य कर मूल राज्य के बजाय गंतव्य राज्य में अनुप्रयुक्त होंगे।


तो "करों का प्रपाती प्रभाव" आखिर है क्या?



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भारतीय वैट व्यवस्था की समस्याएं

भारत में ऐसी वैट व्यवस्था शुरू की गई थी जिसमें प्रत्येक अगले चरण में व्यापारी को उसकी कर देयता पर पिछले चरणों के दौरान भुगतान किये गए करों पर श्रेय प्राप्त होना था। इसका लाभ? व्यापारियों की समग्र देयता में कमी, मूल्यों पर मुद्रास्फीति के प्रभाव में कमी। पूर्व में केंद्रीय उत्पादन शुल्क में परिकल्पना थी - सीईएनवैट प्रत्यय योजना (CENVAT credit scheme) - जिसे पूर्व में मॉडवैट (MODVAT) कहा जाता था। इसमें निविष्टि चरण पर भुगतान किये गए उत्पादन शुल्क (excise) पर वस्तुओं के निकास पर उत्पादन शुल्क देयता के साथ श्रेय के व्यतिरेक (set-off) की अनुमति थी। वर्ष 2004 में इस व्यवस्था का विस्तार सेवा कर पर भी किया गया। उत्पादन शुल्क और सेवा कर के बीच श्रेय के पार उपयोग (क्रॉस-यूटिलाइजेशन) की भी अनुमति थी। इन उपायों के कारण करों के प्रपाती प्रभाव की समस्या का समाधान हो गया। किन्तु २०१६ तक, व्यवस्थागत परेशानियां बनीं रहीं जिन्हें हल नहीं किया जा सका।


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    • ##fa-times##  वैट व्यवस्था की सतत समस्याएं
      • निविष्टि वैट का क्रेडिट उत्पादन वैट के विरुद्ध उपलब्ध है और निविष्टि उत्पादन शुल्क/ सेवा कर का क्रेडिट उत्पादन शुल्क/ सेवा कर की उत्पादन देयता के विरुद्ध उपलब्ध है। हालांकि वैट का क्रेडिट उत्पादन शुल्क के विरुद्ध उपलब्ध नहीं है और न ही उत्पादन शुल्क का क्रेडिट वैट के विरुद्ध उपलब्ध है। [यह ध्यान रखा जाना चाहिए कि वैट की गणना उस मूल्य पर होती है जिसमें उत्पादन शुल्क शामिल है, और इसके लिए सेनवैट क्रेडिट की अनुमति नहीं है, अतः यह कर पर कर का उदाहरण है] । उत्पादन शुल्क और सेवा कर केंद्र सरकार द्वारा अधिरोपित किये जाते हैं, जबकि वैट राज्य सरकार द्वारा अधिरोपित किया जाता है। इस कारण क्रेडिट का पार-उपयोग (क्रॉस यूटिलाइजेशन) असंभव हो गया। हालांकि करों का प्रपाती प्रभाव जारी रहा! कर तो कर ही बना रहता है!

भारत सरकार की प्रेस विज्ञप्ति (अगस्त २०१६) वस्तु एवं सेवा कर को परिभाषित करती है :

"जीएसटी संपूर्ण देश के लिए एक अप्रत्यक्ष कर है, जो भारत को एक एकीकृत बाजार बना देगा। जीएसटी वस्तुओं और सेवाओं पर अधिरोपित होने वाला एकल कर है, जो विनिर्माताओं से लेकर उपभोक्ता तक सभी पर लागू है। प्रक्रिया के प्रत्येक चरण पर भुगतान किये गए निविष्टि करों के श्रेय मूल्य संवर्धन के अगले चरण पर उपलब्ध होंगे, जो जीएसटी को मूल्य संवर्धन के प्रत्येक चरण पर अनिवार्य रूप से एक अधिरोपित होने वाला कर बनाता है। इस प्रकार अंतिम उपभोक्ता केवल मूल्य श्रृंखला के अंतिम चरण पर अंतिम वितरक द्वारा लगाए गए जीएसटी को ही वहन करेगा, जिसमें प्रत्येक पिछले चरण पर व्यतिरेक (मुआवजे) (set-off benefit) का लाभ उपलब्ध होगा।"

जीएसटी क्या अवशोषित नहीं करेगा : भारत में जीएसटी मूलभूत सीमा शुल्क को छोडकर, उपरोक्त सभी करों को अवशोषित (अंतर्लीन) करगा। सीमा शुल्क जीएसटी लागू होने के बाद भी अधिरोपित रहेगा। मुद्रांक शुल्क (stamp duty) जैसे अन्य अप्रत्यक्ष कर भी जारी रहेंगे। भारत एक दोहरे जीएसटी मॉडल अंगीकार करेगा, जिसका अर्थ है कि जीएसटी केंद्र सरकार और राज्य सरकारों दोनों द्वारा प्रशासित किया जाएगा।

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    • ##fa-leaf##  युगों की विद्वत्ता 
      • “राजा को उचित समय पर अपनी प्रजा से संपत्ति प्राप्त करनी चाहिए। अपनी गाय का नित्य दोहन करने वाले एक बुद्धिमान व्यक्ति के समान राजा को अपने राज्य का प्रतिदिन दोहन करना चाहिए। जैसे मधुमक्खी धीरे-धीरे फूलों से मधु (शहद) इकठ्ठा करती है, उसी प्रकार राजा को भी संग्रह करने के लिए अपने राज्य से धीरे-धीरे संपत्ति का संग्रहण करना चाहिए।”
        भीष्म युधिष्ठिर को सुशासन पर सलाह देते हुए, महाभारत, शांति पर्व (पुस्तक १२), राजधर्म अनुशासन पर्व (अध्याय ८८)

[इस बोधि को अंग्रेजी में पढ़ें ##link##]

 पृष्ठ २ पर जारी 

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 पृष्ठ २ (८ में से) 

भारत की वर्तमान अप्रत्यक्ष कर संरचना 

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    • ##chevron-right##  केंद्रीय कर
      • केंद्रीय उत्पादन शुल्क, सेवा कर, अतिरिक्त सीमा शुल्क (आमतौर पर प्रतिकारी शुल्क CVD कहा जाता है), विशेष अतिरिक्त सीमा शुल्क (SAD), केंद्रीय विक्रय कर (केंद्र द्वारा अधिरोपित, राज्यों द्वारा संगृहित), केंद्रीय अधिभार एवं उपकर (वस्तुओं और सेवाओं की आपूर्ति से संबंधित)
    • ##chevron-right##  राज्य कर
      • मूल्य संवर्धित कर (VAT), चुंगी और प्रवेश कर (Octroi and Entry Tax), क्रय कर (Purchase Tax), विलासिता कर (Luxury Tax), लॉटरी-जुआ कर, केंद्रीय अधिभार एवं उपकर (State cesses and surcharges), मनोरंजन कर - स्थानीय निकायों के अलावा (Entertainment Tax), केंद्रीय विक्रय कर (केंद्र द्वारा अधिरोपित, राज्यों द्वारा संगृहित)

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जीएसटी की संरचना व घटक

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    • ##chevron-right##  जीएसटी के घटक
      • भारत एक दोहरी जीएसटी व्यवस्था बना रहा है। यहाँ एक केंद्रीय जीएसटी (सी.जी.एस.टी.) और राज्य जीएसटी (एस.जी.एस.टी.) होगा। वस्तुओं के अंतर-राज्य लेनदेन के लिए एक तीसरा घटक भी प्रस्तावित है – आई.जी.एस.टी. या एकीकृत जीएसटी (Integrated GST)। इसकी कार्य प्रणाली आगे समझाई गई है।
    • ##chevron-right##  सी.जी.एस.टी. (CGST)
      • सीजीएसटी वर्तमान में अधिरोपित अनेक करों को समाहित करेगा जैसे (ए) केंद्रीय उत्पादन शुल्क, (बी) अतिरिक्त उत्पादन शुल्क, (सी) सेवा कर, (डी) अतिरिक्त सीमा शुल्क जिसे आमतौर पर प्रतिकारी शुल्क (सीवीडी कहा जाता है) (ई) विशेष अतिरिक्त सीमा शुल्क (एडीसी), (एफ) अधिभार एवं उपकर
    • ##chevron-right##  एस.जी.एस.टी. (SGST)
      • एसजीएसटी वर्तमान में अधिरोपित अनेक करों को समाहित करेगा जैसे  (ए) राज्य मूल्य संवर्धित कर (वैट) और विक्रय कर,  (बी) चुंगी और प्रवेश कर, (सी) क्रय कर, (डी) मनोरंजन कर, (ई) विलासिता कर (सीवीडी), (एफ) लॉटरी कर, (जी) राज्य अधिभार एवं उपकर
    • ##chevron-right##  Modus Operandi
      • केंद्र और राज्य, दोनों मूल्य श्रृंखला पर एकसाथ जीएसटी अधिरोपित करेंगे। वस्तुओं एवं सेवाओं की प्रत्येक आपूर्ति पर कर अधिरोपित किया जाएगा। केंद्र केंद्रीय वस्तु एवं सेवा कर (CGST) अधिरोपित करेगा और इसका संग्रहण करेगा, जबकि राज्य राज्य भीतर होने वाले प्रत्येक लेनदेन पर राज्य वस्तु एवं सेवा कर (SGST) अधिरोपित करेंगे और इसका संग्रहण करेंगे। सीजीएसटी पर निविष्टि कर के श्रेय उत्पादन के प्रत्येक चरण पर सीजीएसटी की देयता का वहन करने के फलस्वरूप उपलब्ध होंगे। उसी प्रकार, निविष्टियों पर भुगतान किये गए SGST के श्रेय उत्पादन पर SGST के भुगतान पर उपलब्ध होंगे। श्रेयों (क्रेडिट) के पार-उपयोग (क्रॉस यूटिलाइजेशन) की अनुमति नहीं होगी

जीएसटी दरें, संख्याएं और तथ्य 


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    • ##fa-users##  जीएसटी परिषद
      • जीएसटी परिषद एक निकाय है जो केंद्र और राज्यों (दिल्ली और पुडुचेरी सहित) के वित्त-मंत्रियों से मिलकर बना है। ये जीएसटी लागू करने संबंधित अनुशंसाएं करेगा यथा दरें, सिद्धान्त आदि। परिषद उभरते विवादों से निपटने हेतु प्रक्रियाएं भी तय करेगा।


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    • जीएसटी का जीडीपी पर प्रभाव
      • जीएसटी के आने के साथ ही, निम्न देशों के जीडीपी में वृध्दि देखी गई - कनाडा में 1.4 प्रतिशत की, न्यूजीलैंड में 2 प्रतिशत की और ऑस्ट्रेलिया में 1 प्रतिशत की। भारत के लिए ऐसी संभावना व्यक्त की जाती है कि यह वृद्धि 0.9 प्रतिशत से 1.7 प्रतिशत के बीच होगी।  
    • चार स्तरीय ढांचा (Four Tier)
      • ५%, १२%, १८% और २८% से मिलकर बना एक चार स्तरीय ढांचा जीएसटी परिषद ने तय कर दिया है (अतः ५% से २८% की सीमा है न कि १२% से २०% जैसा पहले सोचा गया था) 
    • 0 % स्तर (slab)
      • आवश्यक खाद्य सामग्रियां - 0 % - मुद्रास्फीति को नियंत्रण में रखने हेतु, आवश्यक वस्तुएं जैसे भोजन, जो वर्तमान में उपभोक्ता मुद्रास्फीति बास्केट का आधा हिस्सा हैं, पर  0 % की दर से कर लगेगा 
    • ५ % स्तर 
      • सामान्य इस्तेमाल की वस्तुएं - ५ % - इनपर सबसे कम दर से कर लगेगा 
    • १२% से १८% स्तर 
      • ०१ अप्रैल २०१७ से आने वाले जीएसटी प्रशासन में मानक दरें होंगी १२% और १८% (अब तो ये तिथि कठिन लग रही है; शायद सितंबर २०१७ से ही हो
    • २८% स्तर 
      • विलासिता वस्तुएं - २८% - सबसे उच्च कर स्तर उन वस्तुओं पर लगेगा जिनपर आज ३०-३१% लगता है (उत्पाद शुल्क और वैट)। लक्ज़री कारें, तम्बाखू और सॉफ्ट ड्रिंक्स पर एक अतिरिक्त अधिभार भी लगेगा। इस अधिभार से, और स्वच्छ ऊर्जा अधिभार से हुआ संग्रहण एक राजस्व पूल बनाएगा जिससे राज्यों को जीएसटी लागू होने के पहले ५ वर्षों में होने वाली कोई भी राजस्व हानि की पूर्ति होगी। ५ वर्ष बाद ये अधिभार खत्म हो जायेगा।
    • अन्य देश 
      • अन्य देशों में यह निम्नानुसार है - कनाडा ५ प्रतिशत, यूके  २० प्रतिशत, ऑस्ट्रेलिया १० प्रतिशत, फ्रांस १९ प्रतिशत, न्यूजीलैंड १५ प्रतिशत और चीन १७ प्रतिशत।
    • राज्यों को हानिपूर्ति 
      • वित्त मंत्रालय के अनुसार, रु.५०,००० करोड़ की आवश्यकता जीएसटी लागू होने से राज्यों को होने वाली राजस्व हानि की पूर्ति हेतु आवश्यक होगी, क्योंकि जीएसटी अनेक केंद्रीय और राज्य करों को पहले ही वर्ष से समाहित कर लेगा 
    • जीएसटी और बचत 
      • जीएसटी को शुरू करने से भारत को प्रति वर्ष लगभग ८०,००० करोड रुपये की बचत होने की संभावना व्यक्त की जा रही है। रोजगार वृद्धि लगभग ४० लाख से ५० लाख के बीच रहने की संभावना है। विनिर्मित उत्पादों पर मूल्य में लगभग २.५ प्रतिशत तक की कमी हो सकती है।

२०१५ में विश्व भर में जीएसटी / वैट की स्थिति निम्नानुसार थी

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 पृष्ठ ३ पर जारी 

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 पृष्ठ ३ (८ में से) 

जीएसटी प्रारम्भ करना (परिचालनात्मक बनाना)


भारत राज्यों का एक परिसंघ है (वास्तव में देखा जाए तो हम अर्ध संघीय हैं क्योंकि इसमें आधारभूत एकल प्रकृति का संधारण किया गया है) । इस संघीय संरचना के परिप्रेक्ष्य में यह प्रस्ताव दिया गया है कि जीएसटी का अधिरोपण केंद्र (सीजीएसटी) और राज्यों (एसजीएसटी) द्वारा साथ-साथ किया जाये। ऐसी संभावना है कि सीजीएसटी और एसजीएसटी के बीच (व्यक्तिगत रूप से सभी राज्यों के एसजीएसटी में) आधार एवं अन्य अनिवार्य संरचनात्मक विशेषताएं समान होंगी। सीजीएसटी और एसजीएसटी दोनों ही गंतव्य सिद्धांत के आधार पर अधिरोपित होंगे। इस प्रकार निर्यात शून्य मूल्यांकित होंगे, और आयातों पर कर उसी प्रकार अधिरोपित होगा जैसे वह घरेलू वस्तुओं और सेवाओं पर अधिरोपित किया जाता है। भारत के अंदर अंतर राज्य आपूर्तियों पर एक एकीकृत जीएसटी IGST (सीजीएसटी और गंतव्य राज्य के एसजीएसटी का सकल) अधिरोपित किया जाएगा।

  • [col]
    • भारतीय कैबिनेट ने (२७ जुलाई २०१६ को) जीएसटी संविधान संशोधन विधेयक में बदलाव अनुमोदित किये, और १ % विनिर्माण कर हटाया गया तथा इस नयी व्यवस्था लागू होने से राज्यों को पहले पांच वर्षों में होने वाली राजस्व हानि की पूर्ति हेतु गारंटी दी। ये भी तय हुआ की केंद्र-राज्य विवादों का समाधान जीएसटी परिषद करेगी। 
    • इसमें केंद्र और राज्यों दोनों की सहभागिता होगी। अतः, भारत में अब राज्य जीएसटी होगा, जो राज्य संग्रहित करेंगे, और केंद्रीय जीएसटी होगा, जो केंद्र संग्रहित करेगा। अतः, जीएसटी का प्रशासन जीएसटी परिषद का ही कार्य होगा


जीएसटी करारोपण व्यवस्था 


  • [col]
    • जीएसटी वस्तुओं और सेवाओं की आपूर्ति के प्रत्येक लेनदेन पर एकसाथ अधिरोपित किया जाएगा जिसमें उन छूट प्राप्त वस्तुओं और सेवाओं को छूट प्रदान की जाएगी जो जीएसटी की परिधि से बाहर हैं और साथ ही ऐसे लेनदेनों पर छूट प्राप्त होगी जो निर्धारित प्रारंभिक सीमा से नीचे हैं। 
    • साथ ही, राज्य वैट के विपरीत, जो वस्तुओं के केंद्रीय उत्पादन शुल्क सहित मूल्य पर अधिरोपित किया जाता है, ये दोनों कर (सीजीएसटी और एसजीएसटी) एक ही कीमत या मूल्य पर अधिरोपित किये जाएंगे।


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राज्य के भीतर दोहरा जीएसटी (Dual GST within a state)

राज्य के भीतर दोहरे जीएसटी मॉडल की कार्य प्रणाली का चित्रात्मक प्रदर्शन नीचे की आकृति में दर्शाया गया है।

इसमें, CGST क्रेडिट को वस्तुओं और सेवाओं में क्रॉस-इस्तेमाल किया जा सकेगा। उसी तरह, SGST में भी ऐसा किया जा सकेगा। किन्तु ऐसा करने हेतु अंतर-राज्य वस्तु और सेवा प्रदाय का समेकित जीएसटी (IGST) में होना अनिवार्य होगा

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वस्तुओं और सेवाओं के अंतर-राज्य लेनदेन के लिए जीएसटी


  • [col]
    • आईजीएसटी पद्धति की दृष्टि से जीएसटी के अंतर्गत वस्तुओं और सेवाओं के अंतर राज्य लेनदेन पर कर किस प्रकार अधिरोपित किया जाएगा? अंतर राज्य लेनदेनों के मामले में केंद्र संविधान के अनुच्छेद 269 ए (1) के तहत वस्तुओं और सेवाओं की समस्त अंतर राज्य आपूर्तियों पर एकीकृत वस्तु एवं सेवा कर अधिरोपित करेगा और उसका संग्रहण करेगा। आईजीएसटी सीजीएसटी और एसजीएसटी के लगभग बराबर होगा। आईजीएसटी तंत्र की संरचना एक राज्य से दूसरे राज्य में निविष्टि कर के सुचारू प्रवाह को सुनिश्चित करने की दृष्टि से की गई है। अंतर राज्य विक्रेता अपनी वस्तुओं के विक्रय पर केंद्र सरकार को आईजीएसटी का भुगतान करेगा जिस दौरान वह अपनी खरीद पर आईजीएसटी, सीजीएसटी और एसजीएसटी (इसी क्रम में) के श्रेयों को समायोजित करेगा। 
    • निर्यात करने वाला राज्य आईजीएसटी के भुगतान में उपयोग किया गया श्रेय केंद्र को हस्तांतरित करेगा। आयात करने वाला व्यापारी अपने स्वयं के राज्य में अपनी उत्पादन देयता कर (सीजीएसटी और एसजीएसटी दोनों) की पूर्ति करते समय आईजीएसटी के श्रेयों का दावा करेगा। केंद्र एसजीएसटी के भुगतान में उपयोग किये गए आईजीएसटी के श्रेय आयातक राज्य को हस्तांतरित करेगा। चूंकि जीएसटी एक गंतव्य आधारित कर है, अतः अंतिम उत्पाद पर समस्त एसजीएसटी आमतौर पर उपभोक्ता राज्य को प्राप्त होंगे। 


अंतर-राज्य लेनदेनों के लिए आईजीएसटी मॉडल की कार्य प्रणाली का चित्रात्मक प्रदर्शन नीचे की आकृति में दर्शाया गया है।

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 पृष्ठ ४ पर जारी 

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 पृष्ठ ४ (८ में से) 

क्या जीएसटी एक व्यवस्था परिवर्तक (game changer) है?


अनेक लोगों का दावा है कि जीएसटी शासन एक व्यवस्था परिवर्तक साबित होगा। उन्हें ऐसा क्यों लगता है? तर्क दिया जाता है कि जीएसटी एक समान भारतीय बाजार के विकास में सहायक होगा और यह वस्तुओं और सेवाओं की लागत पर कर के प्रपाती प्रभाव (कर पर कर पर कर) को कम करेगा। यह व्यवस्था वर्तमान कर संरचना के अनेक पहलुओं की प्रत्यक्ष तौर पर पुनर्रचना करेगी - कर संरचनाएं, कर भर, कर गणना, कर भुगतान, कर अनुपालन, श्रेय का दावा और उपयोग और कर प्रतिवेदन - जिसके कारण भारतीय कर प्रणाली की एक नई आकृति निर्मित होगी।


  • [message]
    • ##fa-thumbs-o-up##  जीएसटी का सकारात्मक और परिवर्तनकारी प्रभाव
      • ये वस्तुओं और सेवाओं की कीमतों पर प्रभाव डालेगा, आपूर्ति श्रृंखलाओं को कुशल बनाएगा, आई.टी. और ईआरपी लागू करने में मदद करेगा आदि। ये वस्तुओं और सेवाओं की कीमतों पर प्रभाव डालेगा, आपूर्ति श्रृंखलाओं को कुशल बनाएगा, आई.टी. और ईआरपी लागू करने में मदद करेगा, आदि। कंपनियों को सबसे अच्छी प्रथाएं (best practices) अपनानी होंगी, प्रक्रियाओं में बदलाव लाने होंगे, अपने लोगों को प्रशिक्षित करना पड़ेगा और जीएसटी-आज्ञाकारी (compliant) बनने हेतु आई.टी. व्यवस्था बनानी होगी। अनेक अप्रत्यक्ष करों को ख़त्म कर, जीएसटी सभी राज्यों को जोड़कर एक नई प्रणाली से एक एकल बाजार विकसित कर देगाराज्यों की सीमाओं पर होने वाली देरी को समाप्त करेगा और चेक-पोस्टों के मकड़जाल भी, जिससे गति बढ़ेगी। जीएसटी एक गंतव्य कर है, ठीक एक उपभोग कर की ही तरह। ये तभी लगता है जब उपभोक्ता किसी वस्तु और सेवा को खरीदता है। १६० से अधिक विकसित देशों में ये लागू है। अतः एक संघीय व्यवस्था में लग रहे अनेकों भ्रमित कर देने वाले अप्रत्यक्ष करों को समाप्त कर ये एक राष्ट्रव्यापी कर बन जायेगा।

प्रधानमंत्री श्री नरेन्द्र मोदी ने जीएसटी की इस अत्यंत लंबी यात्रा को समाप्त करने के उद्देश्य से आम राय बनाने के लिए सभी राजनीतिक दलों तक पहुँचने का प्रयास करने का निश्चय किया था। जबकि हमें 1947 में राजनीतिक स्वतंत्रता प्राप्त हुई थी और इस प्रकार हम एक एकल राजनीतिक निकाय - एक राज्य बने, वहीं अब अंततः हम एक विखंडित बहुविध बाजारों के समूह के स्थान पर एक एकल बाजार बन जाएंगे। हम अपने स्वयं के साथ एक मुक्त व्यापार समझौते पर हस्ताक्षर कर रहे हैं !


जीएसटी की न्यायिक और संवैधानिक यात्रा

केंद्र सरकार एक ऐसी व्यवस्था बनाने के प्रति प्रतिबद्ध रही है जो केंद्र और राज्य सरकारों द्वारा वस्तुओं और सेवाओं पर अधिरोपित किये जाने वाले सभी अप्रत्यक्ष करों को प्रतिस्थापित करेगी। उसकी मंशा वर्ष 2016 तक जीएसटी लागू करने की थी। जीएसटी के साथ यह अनुमान लगाया गया है कि कर आधार अधिक विस्तारित और गहरा हो जाएगा, और अधिकांश वस्तुएं और सेवाएं कर पात्र हो जाएंगी।

जीएसटी की इस यात्रा का कदम-दर- कदम इतिवृत्त नीचे दिया गया है।
(click to read headings)


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    • १. राजकोषीय शक्तियों का पृथक्करण
      • जीएसटी को लागू करने के लिए एक संविधान संशोधन आवश्यक था। ऐसा इसलिए क्योंकि संविधान की सातवीं अनुसूची में कराधान के संदर्भ में केंद्र और राज्यों के बीच शक्तियों के विभाजन का प्रावधान किया गया है। अंतर राज्य वस्तु विक्रय के अतिरिक्त वर्त्तमान में केंद्र वस्तु विक्रय पर कर नहीं लगा सकता है। इसी प्रकार, राज्य किसी भी प्रकार का सेवा कर अधिरोपित नहीं कर सकते हैं। सातवीं अनुसूची के अंतर्गत अनुच्छेद 246 में यह निर्दिष्ट किया गया है। इस बुनियादी वास्तविकता को परिवर्तित करने के लिए सन्विधान में संशोधन करना अनिवार्य है। केंद्र और राज्य, दोनों को एक एकल कर,जीएसटी, अधिरोपित करने के अधिकार प्रदान करना आवश्यक है। अतः जीएसटी विधेयक का सबसे पहला प्रावधान था अनुच्छेद 246 ए को प्रविष्ट करना।  
    • २. विशेष बहुमत अनिवार्य है
      • संविधान संशोधन विधेयक के लिए विशेष बहुमत की आवश्यकता होती है - सदन की कुल सदस्यता का बहुमत, साथ ही उपस्थित और मतदान में भाग लेने वाले सदस्यों का दो-तिहाई बहुमत। मतदान हमेशा विभाजन द्वारा होता है। अनुसूची की प्रत्येक उपधारा (उपखंड) पृथक रूप से सदन में मतदान के लिए प्रस्तुत की जाएगी और इसे विशेष बहुमत द्वारा पारित किया जाएगा। हालांकि इन उपधाराओं के संशोधन के लिए सामान्य बहुमत पर्याप्त होगा।
    • ३. वाजपेयी काल से ही 
      • वर्ष २००० में प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी के शासनकाल के दौरान पहली बार आधिकारिक रूप से प्रस्तावित किये जाने के बाद से लेकर अब तक इस नए कर (जीएसटी) की यात्रा काफी लंबी रही है। वाजपेयी सरकार ने जीएसटी का विचार रखा था, जिसके लिए उसने श्री असीम दासगुप्ता की अध्यक्षता में एक उच्चाधिकार प्राप्त समिति का गठन किया था। 
    • . राजकोषीय समेकन पर केलकर कार्यदल
      • वर्ष २००३ में इस कार्यदल ने एफआरबीएम (राजकोषीय दायित्व एवं बजट प्रबंधन) का प्रस्ताव करते हुए इस विचार को रखा था।
    • ५. एकमत हेतु चिदंबरम का २००६ में आह्वान
      • वर्ष २००६ में श्री पी चिदंबरम ने २८ फरवरी के अपने बजट भाषण के दौरान इस मुद्दे पर आम राय बनाने की मांग की थी। वास्तव में उन्होंने कहा था कि इस मुद्दे पर आम राय पहले से ही विद्यमान है : "मेरी यह भावना है कि इस विषय में एक व्यापक आम राय है कि देश को एक ऐसे राष्ट्रव्यापी वस्तु एवं सेवा कर (जीएसटी) की दिशा में आगे बढना चाहिए जिसे केंद्र और राज्यों के बीच साझा किया जाए। मैं प्रस्ताव करता हूँ कि हम जीएसटी के प्रारंभ के लिए १ अप्रैल २०१० की तारीख निर्धारित करें। विश्व भर में वस्तुओं और सेवाओं पर कर की दरें समान हैं। यही एक जीएसटी की बुनियाद है। लोगों को जीएसटी के विचार के प्रति अनुकूल बनना होगा"।
    • . लगातार प्रयास 
      • इसे वर्ष २००७ में भी दोहराया गया। उस समय से लेकर अब तक प्रत्येक बजट भाषण में इसी प्रकार का एक परिछेद दृश्य हुआ है। हर बार जीएसटी की दिशा में शीघ्रता से बढने की बात कही गई। परंतु जीएसटी ने कभी भी दिन के प्रकाश के दर्शन नहीं किये। नई दिल्ली और राज्यों के बीच और विभिन्न राजनीतिक दलों के बीच सघन सौदेबाजी लगातार जारी रही है। 
    • . राज्य वित्त मंत्रियों का अधिकार-प्राप्त समूह 
      • १० मई २००७ को राज्यों के वित्त मंत्रियों की अधिकार प्राप्त समिति ने एक संयुक्त कार्यदल गठित करने का निर्णय लिया। ३० अप्रैल २००८ को इस कार्यदल ने डॉ मनमोहन सिंह के नेतृत्व वाली सरकार को "भारत में जीएसटी के लिए एक मॉडल और प्रस्तावित मानचित्र" प्रस्तुत किया। 
    • ८. जटिल मुद्दे 
      • इन पर अनेक विवाद रहे हैं (ए) आर्थिक गतिविधि पर कर लगाने की राज्यों की क्षमता को त्यागने के बदले राज्यों को प्रदान की जाने वाली क्षतिपूर्ति, (बी) जीएसटी की वह दर जो राजस्व की दृष्टि से निष्पक्ष हो, (सी) राज्य की सीमाओं के पार परिवहन की जाने वाली वस्तुओं पर एक अल्प अतिरिक्त शुल्क अधिरोपित किया जाए या नहीं, और (डी) क्या संविधान में जीएसटी की एक अधिकतम दर लिखी जाए, इन सभी विषयों के बारे में अनेक प्रकार की बहसें होती रही हैं। १० नवंबर २००९ को अधिकार प्राप्त समिति ने वस्तु एवं सेवा कर पर एक विस्तृत आलेख प्रस्तुत किया। दिसंबर २००९ में श्री केलकर ने १३ वें वित्त आयोग की अध्यक्षता की और जीएसटी पर कुछ सुझाव दिए। 
    •  ९. मुख़र्जी ने इसे टाला 
      • फरवरी २०१० में तत्कालीन वित्तमंत्री श्री प्रणब मुखर्जी ने जीएसटी के प्रारंभ को अप्रैल २०११ तक विलंबित कर दिया।
    • १०. २०११ संशोधन विधेयक विफल 
      • मार्च २०११ में जीएसटी को अधिरोपित करने की क्षमता निर्माण करने के लिए संविधान (११५ वां संशोधन) विधेयक, २०११ लोकसभा में प्रस्तुत किया गया। यह विधेयक पारित नहीं हो पाया। अगस्त २०१३ में समिति ने संसद में एक रिपोर्ट प्रस्तुत की। हालांकि १५ वीं लोकसभा के विसर्जन के साथ ही यह विधेयक कालातीत हो गया।
    • ११. नई सरकार का पदार्पण 
      • दिसंबर २०१४ में मंत्रिमंडल ने संविधान (१२२वां संशोधन) विधेयक, २०१४ को अनुमोदन प्रदान किया। दिसंबर २०१४ में विधेयक लोकसभा में प्रस्तुत किया गया। .
    • १२. लोकसभा ने जीएसटी संशोधन पारित किया 
      • अंततः 6 मई 2015 को भारतीय संसद की लोकसभा (जनता का सदन) ने वस्तु एवं सेवा कर के लिए संविधान (122 वां) संशोधन विधेयक, 2014 पारित कर दिया।
    • १३. राज्यसभा और संयुक्त समिति 
      • १२ मई  २०१५ को विधेयक राज्यसभा को भेजा गया। १४ मई  २०१५ को विधेयक को लोकसभा एवं राज्यसभा की संयुक्त समिति को भेजा गया। २२ जुलाई २०१५ को प्रवर समिति ने अपनी रिपोर्ट प्रस्तुत की। हालांकि राजनीतिक आम राय के अभाव में चीजें अगले वर्ष तक के लिए लंबित हो गईं। 
    • १४. प्रारूप जीएसटी बिल तैयार 
      • जून 2016 में वित्त मंत्रालय ने मॉडल जीएसटी विधेयक का मसौदा प्रकाशित किया।  
    • १५. एक लचीली सरकार 
      • सरकार ने तीन मोर्चों पर लचीला रुख अपनाया। उसने अंतर राज्य विक्रय पर प्रस्तावित १ प्रतिशत कर का प्रस्ताव हटा दिया, एक विवाद निवारण तंत्र की आवश्यकता को मान्य किया, और राज्यों को उनके अप्रत्यक्ष करों के संग्रहण पर होने वाली किसी भी हानि पर संपूर्ण पांच वर्षों तक क्षतिपूर्ति प्रदान करने की स्वीकृति दी।
    • १६. अगस्त २०१६ - राज्य सभा ने पारित किया 
      • ३ अगस्त २०१६ को विधेयक राज्यसभा में बहस के लिए प्रस्तुत हुआ, और एक शालीन और सघन बहस के पश्चात यह सफलतापूर्वक पारित हुआ। और इस प्रकार एक दीर्घ-प्रतीक्षित स्वप्न साकार हुआ। अब संशोधन पारित होंगे लोक सभा से। 
    • १७. आगे क्या? 
      • राज्यसभा द्वारा इसे पारित करने के बाद आगे क्या होगा? राज्यसभा द्वारा इसे पारित करने मात्र से ही कहानी का अंत नहीं होता। राज्यसभा में इसे पारित होने के लिए दो-तिहाई बहुमत आवश्यक था। राज्यसभा द्वारा इसे आवश्यक बहुमत से पारित किया गया और अब लोकसभा इसमें हुए संशोधनों को मंजूरी प्रदान करेगी।  
    • १८. ५०% राज्यों की सहमति 
      • इसके पश्चात बाद विधेयक की राष्ट्रपति द्वारा अधिनियमन के रूप में मंजूरी से पहले न्यूनतम १५ राज्यों (५० प्रतिशत) द्वारा उनकी संबंधित विधान सभाओं के मध्यम से विधेयक की प्रतिपुष्टि की जाना आवश्यक था। सरकार को उम्मीद थी की सितंबर २०१६ अंत तक यह कर लिया जायेगा। किन्तु उसके काफी पहले ही यह हो गया। ०८ सितंबर २०१६ तक, १८ राज्यों ने विधेयक को अनुमोदित कर दिया था, जिसमें शामिल थे असम, बिहार, झारखण्ड, छत्तीसगढ़, हिमाचल प्रदेश, गुजरात, मध्य प्रदेश, दिल्ली, नागालैंड, महाराष्ट्र, हरियाणा, सिक्किम, मिजोरम, तेलंगाना, गोवा, ओडिशा और राजस्थान। पुडुचेरी केंद्र-शासित प्रदेश ने भी अनुमोदन कर दिया था। 
    • १९. राष्ट्रपति की स्वीकृति 
      • भारत का संविधान ०८ सितंबर २०१६ को संशोधित हो गया जब राष्ट्रपति प्रणब मुख़र्जी ने जीएसटी हेतु संविधान (१२२वें) संशोधन विधेयक २०१४ को अपनी मंज़ूरी दे दी।
    • २०. जीएसटी परिषद - सर्वेसर्वा! 
      • विधेयक के अधिनियमन के ६० दिन के अंदर केंद्र और राज्यों के प्रतिनिधियों वाली जीएसटी परिषद् का गठन किया जाएगा। जीएसटी परिषद् केंद्र और राज्यों को आदर्श वस्तु एवं सेवा कर कानूनों, वस्तु एवं सेवा कर के बंधनों के साथ न्यूनतम नियत दरों सहित अन्य दरों, आपूर्ति नियमों के स्थान और परिषद् की दृष्टि से आवश्यक जीएसटी से संबंधित अन्य सभी मामलों पर सिफारिशें प्रस्तुत करेगी। सरकार का प्रयास है की ०१ अप्रैल २०१७ से जीएसटी परिषद् को प्रभावी कर दिया जाये।
    • २१. जीएसटी दरों के विधेयक लंबित 
      • वास्तविक जीएसटी दरों के विधेयक (केंद्रीय जीएसटी विधेयक और एकीकृत जीएसटी विधेयक) संसद प्रस्तुत किये जाएंगे। यह काफी गर्मागर्म बहस का विषय बना हुआ है कि सरकार को इसे धन विधेयक के रूप में (जो संभवतः सरकार करना नहीं चाहेगी) प्रस्तुत करना चाहिए या नहीं। ये कानून जम्मू-कश्मीर पर लागू नहीं होगा और उसे इसके लिए स्वतंत्र कानून पारित करना होगा। राज्यों को भी उनके अपने जीएसटी कानून पारित करने होंगे। 
    • २२. जीएसटी दरों पर सहमति 
      • जैसा पहले बताया गया, दरों के स्तर तय कर दिए गए हैं। वित्त मंत्री और राज्य वित्त मंत्रियों की उच्चाधिकार प्राप्त समिति और जीएसटी परिषद ने ऐसा किया। जीएसटी के अंतर्गत भुगतान की व्यापार प्रक्रियाओं, पंजीकरण प्रतिदाय और विवरण पर बनी राज्य वित्त मंत्रियों की उच्चाधिकार प्राप्त समिति द्वारा गठित संयुक्त समिति की विभिन्न रिपोर्ट्स जारी कर दी गई हैं और इन्हें सुझावों के लिए सार्वजनिक अधिकार क्षेत्र में रखा गया है।
    • २३. मसौदा (प्रारूप) जीएसटी कानून 
      • संभावना है कि मसौदा जीएसटी कानून और आपूर्ति नियमों का स्थान निर्मित किया जाएगा और इसे टिप्पणियों के लिए सार्वजनिक कार्यक्षेत्र में रखा जाएगा। 
    • २४. जीएसटी संजाल (GST Network)
      • जीएसटी संजाल, जो जीएसटी का मुख्य आधार है, जो ऑनलाइन पंजीकरण, कर भुगतान और विवरण प्रस्तुतीकरण को सुविधाजनक बनाएगा, शीघ्र ही शुरू किया जाएगा। 
    • २५. राज्य कानून
      • राज्य अपने-अपने संबंधित जीएसटी कानून बनाएँगे ताकि वे जीएसटी का क्रियान्वयन कर सकें। यह केंद्रीय जीएसटी कानून के आधार पर ही बनाए जाएंगे।
    • २६. विमुद्रीकरण धमाका!
      • प्रधानमंत्री मोदी ने ०८ नवम्बर २०१६ की रात्रि एक अनपेक्षित घोषणा कर विमुद्रीकरण कर दिया। इससे जीएसटी लागू करने के पूर्व के सभी अनुमान विफल हो गए, चूंकि केंद्र और कुछ राज्यों के बीच नया घर्षण प्रारम्भ हो गया। इसका पूरा प्रभाव तो अभी महसूस ही किया जा रहा है। किन्तु अप्रैल २०१७  की तिथि तो अब नहीं हो सकेगी। विमुद्रीकरण पर हमारी विस्तृत बोधियाँ यहाँ और यहाँ पढ़ें 
    • २७. शीतकालीन सत्र जम गया 
      • नोटबंदी विवाद - या उसके अभाव में - पूर्ण शीतकालीन सत्र समाप्त हो गया और कोई विधेयक पारित न हो सका. अब शायद विशेष सत्र बुलाना पड़े


वर्ष २०११, २०१४, और २०१६ के विधेयकों और संशोधनों की तुलना


  • वर्ष 2011 का विधेयक जीएसटी को निम्नानुसार परिभाषित करता है "कच्चे पेट्रोलियम, उच्च गति डीजल, मोटर स्पिरिट (पेट्रोल), प्राकृतिक गैस, उड्डयन टरबाइन ईंधन और मानव उपभोग के लिए मद्यिक पेय की आपूर्ति को छोडकर अन्य वस्तुओं और सेवाओं की आपूर्ति पर कोई भी कर"। वर्ष 2014 का विधेयक जीएसटी को निम्नानुसार परिभाषित करता है "मानव उपभोग के लिए मद्यिक पेय की आपूर्ति पर कर को छोडकर अन्य वस्तुओं और सेवाओं पर अधिरोपित किया गया कोई भी कर"। 
  • वर्ष 2011 के विधेयक में जीएसटी के कारण राजस्व में होने वाली किसी भी हानि और कर की सामंजस्यपूर्ण संरचना पर पडने वाले प्रभाव से जुडे मामलों पर केंद्र और राज्यों के बीच निर्मित होने वाले विवादों पर न्यायनिर्णय के लिए वस्तु एवं सेवा कर विवाद निवारण प्राधिकरण के निर्माण का प्रावधान किया गया है। वर्ष 2014 के विधेयक ने इस प्रकार के प्राधिकरण के प्रावधान को समाप्त कर दिया था।
  • साथ ही वर्ष 2014 के विधेयक ने 2011 के विधेयक के निम्न प्रावधानों को भी समाप्त किया 
    • वह प्रावधान जो राज्यों को उन वस्तुओं पर कर लगाने से प्रतिबंधित करता था जिन्हें अंतर राज्य व्यापार और वाणिज्य की दृष्टि से विशेष महत्वपूर्ण माना जाता है।
    • वह प्रावधान जो राज्यों को किसी स्थानीय क्षेत्र में वस्तुओं के प्रवेश पर उस हद तक प्रवेश कर अधिरोपित करने की अनुमति देता था जो पंचायत या नगरपालिका द्वारा उपभोग या विक्रय पर अधिरोपित किया गया है।
  • वर्ष 2014 का विधेयक संसद और राज्यों की विधान सभाओं को एक वस्तु एवं सेवा कर अधिरोपित करने का समवर्ती अधिकार प्रदान करने के लिए संविधान में संशोधन करता है। इसका निहितार्थ यह है कि केंद्र एक केंद्रीय जीएसटी अधिरोपित करेगा जबकि राज्यों को राज्य जीएसटी अधिरोपित करने की अनुमति होगी। ऐसी वस्तुएं और सेवाएं जो विभिन्न राज्यों से होकर गुजरती हैं, या आयातों पर केंद्र एक अन्य कर अधिरोपित करेगा, अर्थात एकीकृत जीएसटी (आईजीएसटी) । इसकी कार्यप्रणाली इस लेख में अन्यत्र दी गई है।
  • मानव उपभोग के लिए मद्य को जीएसटी की परिधि से बाहर रखा गया है। साथ ही बाद में किसी समय 5 प्रकार के पेट्रोलियम उत्पादों पर जीएसटी अधिरोपित किया जाएगा। इसकी तिथि का निर्धारण जीएसटी परिषद् द्वारा किया जाएगा।
  • जीएसटी परिषद् एक ऐसा निकाय है जिसमें केंद्रीय वित्तमंत्री के साथ ही सभी राज्यों (दिल्ली और पुडुचेरी सहित) के वित्तमंत्री सदस्य के रूप में शामिल हैं। यह जीएसटी के क्रियान्वयन के संबंध में सिफारिशें करेगी, जिसमें जीएसटी की दरें, अधिरोपण के सिद्धांत इत्यादि शामिल हैं। परिषद् उसकी सिफारिशों से उठने वाले विवादों के निराकरण के तौर-तरीकों पर भी निर्णय करेगी। 
  • 2016 के संशोधनों द्वारा प्रस्तावित प्रमुख परिवर्तन - ये संशोधन 2014 के विधेयक में तीन प्रमुख परिवर्तन प्रस्तावित करते हैं। इनका संबंध निम्न के साथ है 
    • 1 प्रतिशत तक अतिरिक्त कर - इस प्रावधान को समाप्त कर दिया गया 
    • राज्यों को क्षतिपूर्ति - पांच वर्ष तक की अवधि के लिए
    • जीएसटी परिषद् द्वारा विवादों का निराकरण - केंद्र बनाम राज्यों के सभी संभव संयोजन





 बोधि पृष्ठ ५ पर जारी है 

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 पृष्ठ ५ (८ में से) 

भारतीय जीएसटी व्यवस्था की प्रमुख विशेषताएं


  1. अंतर राज्य व्यापार और वाणिज्य की आपूर्तियों के संबंध में कानून बनाने का अधिकार केवल केंद्र सरकार में ही निहित होगा। राज्यों को सेवाओं सहित राज्यांतर्गत लेनदेनों पर जीएसटी अधिरोपित करने का अधिकार होगा। 
  2. केंद्र वस्तुओं और सेवाओं की  अंतर राज्य आपूर्ति पर आईजीएसटी अधिरोपित करेगा। वस्तुओं का आयात मूलभूत सीमा शुल्क और आईजीएसटी आकर्षित करेगा। 
  3. जीएसटी को,मानव उपभोग के लिए मद्य को छोडकर अन्य सभी वस्तुओं और सेवाओं पर अधिरोपित किया गया कोई कर, के रूप में परिभाषित किया गया है। 
  4. केंद्रीय उत्पादन शुल्क, अतिरिक्त उत्पादन शुल्क, सेवा कर, अतिरिक्त सीमा शुल्क और विशेष अतिरिक्त शुल्क जैसे केंद्रीय कर और वैट या विक्रय कर, केंद्रीय विक्रय कर, मनोरंजन कर, प्रवेश कर, क्रय कर, विलासिता कर और चुंगी जैसे राज्य के कर जीएसटी में समाहित हो जाएंगे। अर्थात उनका स्वतंत्र अस्तित्व समाप्त हो जाएगा। 
  5. कच्चे तेल, उच्च गति डीजल, मोटर स्पिरिट, विमानन टरबाइन ईंधन और प्राकृतिक गैस जैसे पेट्रोलियम और पेट्रोलियम उत्पाद जीएसटी परिषद् द्वारा अधिसूचित तिथि से जीएसटी के अधीन आएंगे। 
  6. वस्तुओं की अंतर राज्य आपूर्ति पर अधिरोपित किया जाने वाला 1 प्रतिशत मूल आधारित अतिरिक्त कर जीएसटी श्रृंखला में गैर श्रेय प्राप्य होगा। इस कर से प्राप्त राजस्व मूल राज्य को अंतर्निहित किया जाना है। यह कर प्रारंभिक दो वर्षों के लिए या ऐसी समयावधि के लिए, जो जीएसटी परिषद् द्वारा तय की जानी है, अधिरोपित किया जाना है। 
  7. समस्त भारत में प्रवेश कर / चुंगी के अधिरोपण की समाप्ति का प्रावधान। 
  8. राज्य सरकारों द्वारा फिल्मों, नाट्य गृहों इत्यादि  पर अधिरोपित किया जाने वाला मनोरंजन कर जीएसटी में समाहित किया जाएगा, परंतु पंचायत, नगरपालिका या जिला स्तर के मनोरंजन कर जारी रहेंगे। 
  9. समाचारपत्रों की बिक्री और विज्ञापनों पर भी जीएसटी अधिरोपित किया जा सकता है और इससे सरकार के राजस्व में काफी वृद्धि होने की संभावना है। 
  10. मुद्रांक शुल्क, जो आमतौर पर राज्यों द्वारा न्यायिक समझौतों पर अधिरोपित किये जाते हैं, आगे भी राज्यों द्वारा अधिरोपित किये जाते रहेंगे। 
  11. जीएसटी के प्रशासन की जिम्मेदारी जीएसटी परिषद् की होगी, जो जीएसटी के लिए शीर्ष नीति निर्माण निकाय होगा। जीएसटी सदस्यों के रूप में राज्यों के वित्त मंत्रालयों के प्रभारी मंत्री होंगे।

  • [message]
    • ##fa-thumbs-o-up## प्रपाती लाभ, प्रपाती कर नहीं!
      • जीएसटी से करों के प्रपाती प्रभाव से मुक्ति मिलेगी जिससे मुद्रास्फीति पर लगाम कसेगी। इससे अनेक कर समाप्त होंगे जिससे कर प्रशासन सरल बनेगा। भारत एक एकल बाजार बनेगा न कि विखंडित, जिससे मुक्त प्रवाह होगा। कर विवाद और मुकदमेबाजी कम होगी। राज्य की सीमाओं पर तेज़ आवाजाही होगी। गंतव्य सिद्धान्त और जीरो रेटिंग होने से उपभोग होने वाले राज्यों में कर संग्रहण होगा, और निर्यातों को लाभ होगा क्योंकि कर निर्यात नहीं किये जा सकते!



जीएसटी तंत्र का एक सरल स्पष्टीकरण


हम एक आपूर्ति श्रृंखला की की बात करें      बुनकर  -  दर्जी  -  खुदरा व्यापारी  -  ग्राहक

समस्त पर 8 प्रतिशत की जीएसटी दर मानें

बुनकर कच्चे माल का स्रोत खोजता है और कपडा बुनता है। उस कपडे को वह 100 रुपये में दर्जी को बेच देता है, परन्तु उसे जीएसटी का भुगतान करना पडेगा, अतः वह इसे 100 रुपये पर अनुप्रयुक्त करता है। दर्जी के लिए बुनकर का विक्रय मूल्य 108 रुपये हो जाता है, जिसमें से 8 रुपये जीएसटी है।

दर्जी को कपडा 108 रुपये में मिलता है। वह उसे सिलकर एक रेडीमेड शर्ट में परिवर्तित कर देता है। उस शर्ट को वह खुदरा व्यापारी को 250 रुपये में बेच देता है। परंतु उसे जीएसटी का अनुप्रयोग करना है जो 250 रुपये का 8 प्रतिशत है = 20 रुपये। अतः दर्जी का विक्रय मूल्य है 270 रुपये, जिसमें से 20 रुपये जीएसटी है। दर्जी ने 8 रुपये जीएसटी का भुगतान पहले ही कर दिया है, अतः उसे उसके खाते में 12 रुपये (20-80) का श्रेय प्राप्त होगा। बुनकर को 8 रुपये का श्रेय उसके खाते में प्राप्त हो गया।

खुदरा व्यापारी उस शर्ट को एक ग्राहक को 550 रुपये में बेच देता है। परंतु उसे भी इसपर 80 प्रतिशत की दर से जीएसटी का अनुप्रयोग करना है। अतः उसका विक्रय मूल्य 500 + 40 = 540 रुपये हो जाता है। इसमें से बुनकर और दर्जी ने क्रमशः 8 रुपये और 12 रुपये का श्रेय प्राप्त कर लिया है, अतः खुदरा व्यापारी 40-20 = 20 रुपये के लिए कर का दावा करता है।

ग्राहक ने शर्ट 540 रुपये में खरीदी। यह गंतव्य बिंदु है। वह उस शर्ट को किसी को बेच नहीं रहा है बल्कि उसका स्वयं उपभोग कर रहा है। अतः उसे कोई कर श्रेय प्राप्त नहीं होगा। वह संपूर्ण 40 रुपये जीएसटी का भुगतान करता है।

अतः इस संपूर्ण चक्र में दावा किया गया कुल कर श्रेय था


  • बुनकर द्वारा 8 रुपये, दर्जी द्वारा 12 रुपये और खुदरा व्यापारी द्वारा 20 रुपये, इस प्रकार कुल 40 रुपये।
  • ग्राहक ने कुल 40 रुपये का भुगतान किया।


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अब वास्तविक दर १५% हो सकती है, तो गणना ऐसी होगी

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और आपूर्ति श्रृंखला ऐसी दिखेगी

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[इस बोधि को अंग्रेजी में पढ़ें ##link##]


 बोधि पृष्ठ ६ पर जारी है 

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 पृष्ठ ६ (८ में से) 

वे मुख्य मुद्दे जो नागरिकों को प्रभावित करेंगे


ऐसे तीन प्रमुख मुद्दे हैं जिन्हें समझना आवश्यक है।


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    • समेकन और कुशलता 
      • एडम स्मिथ (एक ववचार के रूप में पूंजीवाद के जनक) ने कहा था कि "श्रम का विभाजन बाजार के विस्तार के अनुसार सीमित होता है"। दूसरे शब्दों में, जीएसटी के माध्यम से घरेलू बाजार का एकीकरण आर्थिक कौशल में सुधार करेगा। भारतीय आपूर्ति श्रृंखलाओं का विखंडन न्यूनतम हो जाएगा। अपने राजनीतिक एकीकरण के लगभग सात दशक बाद भारत एक साझा बाजार बन जाएगा। 
    • उत्पादक कुशलता सिद्धान्त 
      • डायमंड-मिर्लेस द्वारा दिए गए इष्टतम कराधान के सिद्धांत को वैश्विक स्तर पर कर व्यवस्था की बुनियाद के रूप में स्वीकार किया जाता है। इसका मुख्य विचार है "उत्पादकता कौशल प्रमेय"। यह कहती है कि इष्टतम कर व्यवस्था को मध्यवर्ती वस्तुओं के उत्पादन पर कर नहीं लगाना चाहिए। मध्यवर्ती वस्तुओं पर किया गया कराधान संसाधनों को अंतिम वस्तुओं के उत्पादन से दूर करता है। कर का भार आय और उपभोग पर पडना चाहिए ताकि कौशल को अधिकतम किया जा सके। भारत का प्रस्तावित जीएसटी मूल्य श्रृंखला के विभिन्न स्तरों पर कर का भुगतान करने के बजाय वास्तव में अंतिम उपभोग पर कराधान है अतः यह डायमंड मिर्लेस के मानदंड के काफी निकट है। जीएसटी प्रभावी रूप से उत्पादन और वितरण पर कराधान को समाप्त करेगा - केवल अंतिम उपभोग पर ही कर अधिरोपित होगा।
    • गरीबों को हानि न हो 
      • वर्ष २००९ में अरबिंद मोदी ने वित्त मंत्रालय के लिए लिखा था जिसमें उन्होंने एक दोषरहित जीएसटी का तर्क दिया था। उन्होंने कहा था कि इससे गरीबों की हानि नहीं होनी चाहिए। अनेक लोगों का कहना है कि दर जितनी अधिक होगी उतनी ही गरीबों की हानि की दृष्टि से प्रतिगाम्यता अधिक होगी। यहाँ मुख्य मुद्दा यह है कि उच्च जीएसटी दर गरीबों को आहत करेगी। अरबिंद मोदी रिपोर्ट ने एक मध्यम १२ प्रतिशत दर का सुझाव दिया था, जिसे नई दिल्ली, राज्यों और सरकार के स्तर के बीच साझा किया जाएगा। परंतु अब वह दर कहीं भी दृष्टिक्षेप में नहीं है !

भारत जैसे जटिल देश को निश्चित रूप से एक राष्ट्रीय समझदारी की आवश्यकता है - एक सौदेबाजी - व्यापार और वाणिज्य में जटिलता के न्यूनीकरण पर। परंतु यह सुनिश्चित किया जाना आवश्यक है कि इस संपूर्ण प्रक्रिया में कहीं भी गरीबों का नुकसान न होने पाए।

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  भारत - एक बाजार


जीएसटी केंद्र की संघीय सरकार और राज्य सरकारों के लिए निधियां निर्मित करेगा, और साथ ही यह केंद्र, राज्यों और स्थानीय प्राधिकरणों द्वारा अधिरोपित किये जाने वाले करों, शुल्कों और प्रशुल्कों, अधिभारों और उपकरों के विशाल तंत्र को प्रतिस्थापित करेगा। वर्तमान कर व्यवस्था अर्थव्यवस्था को विखंडित करती है और साथ ही यह अधिकारियों और राजनीतिज्ञों को भ्रष्टाचार के विशाल अवसर प्रदान करती है।

एक भारत का निर्माण करके भारत में निर्माण करें - अधिकांश करों को जीएसटी से प्रतिस्थापित करने से भारत में आदर्श रूप से एक एकल बाजार - 1.3 लोगों के - का निर्माण होगा। वर्तमान में भारतीय अर्थव्यवस्था में अनेक तिमाहियों से 7 प्रतिशत से अधिक की दर से वृद्धि हो रही है। श्री मोदी के "मेक इन इंडिया" के नारे को वास्तविकता में बदलने सर्वश्रेष्ठ अवसर है एक एकल बाजार के माध्यम से - "एक भारत का निर्माण करके भारत में निर्माण करें", जैसा कि सरकार की एक रिपोर्ट में कहा गया है। वर्तमान व्यवस्था उपभोग की तुलना में उत्पादन पर अधिक कर अधिरोपित करती है, और प्रभावी रूप से घरेलू उत्पादकों पर तरजीह देकर आयातकों को अनुवृत्ति देती है। विकृत रूप से, 2 प्रतिशत एक केंद्रीय विक्रय कर के माध्यम राज्यों के बीच व्यापार पर भी कर अधिरोपित है। कुछ राज्य अन्य राज्यों से उनके राज्य में प्रवेश करने वाली वस्तुओं और माल पर शुल्क अधिरोपित करते हैं। ट्रकों को आतंरिक जांच चौकियों पर लंबे समय तक खडा करके रखा जाता है।

कंपनियों के समक्ष आने वाली समस्याएं
 – चूंकि एक राज्य से दूसरे राज्य के बीच किये जाने वाले व्यापार पर केंद्रीय विक्रय कर अधिरोपित किया जाता है, जबकि इन्वेंटरी के हस्तांतरण पर कोई कर अधिरोपित नहीं किया जाता, अतः कर से बचने के लिए कंपनियों को प्रत्येक राज्य में गोदाम स्थापित करने के लिए मजबूर होना पडता है .और चूंकि निविष्टियों पर भुगतान किये गए शुल्क वापस नहीं मांगे जा सकते हैं अतः पिछली निविष्टियों पर कर का "प्रपाती" प्रभाव पडता है। इसके कारण मशीनों पर निवेश हतोत्साहित होता है। यह संपूर्ण व्यवस्था कर के इष्टतमीकरण की दृष्टि से कार्य करती है, न कि उत्पादकता के इष्टतमीकरण की दृष्टि से। इसने पिछले अनेक दशकों में भारत को काफी हानि पहुंचाई है।

निश्चित ही, सभी वस्तुओं और सेवाओं के लिए एकल दर और न्यूनतम छूट के साथ एक दोषरहित जीएसटी भारत की आर्थिक वृद्धि में प्रति वर्ष 0.9 प्रतिशत से 1.7 प्रतिशत तक की वृद्धि कर सकता है। इसका एक अन्य लाभ यह भी हो सकता है कि एक कागज का पुछल्ला निर्मित किया जा सकता है और कंपनियों के लिए यह प्रेरणा बन सकती है कि कर श्रेय प्राप्त करने के लिए अपने लेनदेनों को उचित रूप करें ताकि समग्र दृष्टि से कर अपवंचन में काफी हद तक कमी हो सके।


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    • यह प्रस्ताव दिया गया था कि तेल उत्पादों (एक महत्वपूर्ण निविष्टि) पर कर अधिरोपण को एक अनिश्चित भविष्य कालीन तिथि तक लंबित किया जाए। इसने मद्य को पूर्ण छूट प्रदान की। चूंकि ये दो वर्ग वर्तमान में राज्यों के राजस्व ( और अवैध दलगत निधीयन) के एक बडे हिस्से का निर्माण करते हैं। कांग्रेस ने ठीक ही केंद्रीय विक्रय कर का विरोध किया। परंतु उसकी इस मांग का, कि संविधान में जीएसटी की अधिकतम 18 प्रतिशत की दर को समाहित किया जाए, कोई तार्किक आधार नहीं है। 
    • वित्त मंत्रालय के मुख्य आर्थिक सलाहकार अरविंद सुब्रमण्यम की अध्यक्षता वाली समिति ने कुछ रियायतों का सुझाव दिया है : केंद्रीय विक्रय कर को समाप्त करना और जीएसटी के लिए दो बैंड निर्धारित करना (17-18 प्रतिशत की एक मानक दर और कुछ संवेदनशील वस्तुओं के लिए एक न्यून 12 प्रतिशत दर) । समिति ने यह भी प्रस्ताव दिया है कि मद्य और संपत्ति संबंधी लेनदेनों को जीएसटी के दायरे में लाया जाना चाहिए; इसके बदले राज्य मद्य और तंबाखू जैसे उत्पादों पर 40 प्रतिशत तक का एक "पाप कर" अधिरोपित कर सकते हैं।
    • राज्य इस बात से चिंतित हैं कि राज्य शुल्कों की समाप्ति के कारण उनके समग्र कर राजस्व में काफी गिरावट हो सकती है जिसकी भरपाई जीएसटी से प्राप्त होने वाले उनके हिस्से से संभवतः नहीं हो पाएगी। इसीलिए केंद्र सरकार ने उन्हें एक निश्चित अवधि तक क्षतिपूर्ति प्रदान करने का आश्वासन दिया है।

तमिलनाडु का विरोध


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    • भारत एक बहुत ही विविधतापूर्ण और जटिल देश है जहाँ विभिन्न राज्यो की भिन्न-भिन्न आवश्यकताएं हैं। जीएसटी पर तमिलनाडु के विरोध को इसी परिप्रेक्ष्य में देखा जाना चाहिए। तमिलनाडु सरकार को लगता है कि इस ऐतिहासिक सुधार कार्यक्रम में उसे प्राप्त नहीं हो रहा है। यह एक ऐसा राज्य है जो विनिर्माण के क्षेत्र में मजबूत है। ऐसे राज्यों को समस्या है क्योंकि जीएसटी एक गन्तव्य कर है अतः इसका परिणाम कर राजस्व के उपभोग सघन राज्यों की दिशा में बहिर्वाह के रूप में होगा (साथ ही केंद्रीय विक्रय कर के चरणबद्ध समापन और अंतर राज्य विक्रय और अंतर राज्य भंडार हस्तांतरण के निविष्टि श्रेय हस्तांतरण गंतव्य राज्यों को होने के कारण भी) । तमिलनाडु का दावा है कि नाममात्र उच्च राजस्व-निष्पक्ष दर निर्धारण की कठिनाई के कारण यह संभावना है कि जीएसटी के तहत तमिलनाडु को 9270 करोड रुपये की राजस्व हानि होगी। तमिलनाडु ने जोर देकर इस बात की आवश्यकता को दोहराया है कि ऐसे राज्यों द्वारा वहन की जाने वाली संपूर्ण (100 प्रतिशत) राजस्व हानि की कम से कम पांच वर्ष तक क्षतिपूर्ति के लिए एक संवैधानिक रूप से अनिवार्य स्वतंत्र क्षतिपूर्ति तंत्र निर्मित करना आवश्यक है। वस्तुओं की अंतर राज्य आपूर्ति पर प्रस्तावित 1 प्रतिशत अतिरिक्त उपकर (जिसे अंततः केंद्र सरकार ने वापस ले लिया) के ऐवज में तमिलनाडु का सुझाव था कि जीएसटी वस्तुओं और सेवाओं की अंतरराज्य आपूर्ति पर अधिरोपित किये जाने वाले अंतर राज्य जीएसटी के केंद्रीय जीएसटी का चार प्रतिशत हिस्सा मूल राज्यों को अपने पास रखने की अनुमति दी जानी चाहिए। 
    • इसके कारण राजस्व हानि के एक हिस्से की शीघ्र क्षतिपूर्ति सुनिश्चित होगी साथ ही देय क्षतिपूर्ति की राशि भी कम हो जाएगी। जिन राज्यों में अधिकांश विनिर्माण उद्योग हैं ऐसे राज्यों के लिए गंतव्य आधारित जीएसटी के माध्यम से एकीकृत अप्रत्यक्ष कर आधार को केंद्र के साथ साझा करने का अर्थ यह होगा कि वहां उत्पादित वस्तुओं और सेवाओं के साथ ही कर राजस्व का बहिर्वाह ऐसे राज्यों की ओर होगा जो इन वस्तुओं और सेवाओं का उपभोग करते हैं। इस दृष्टि से जीएसटी विनिर्माणकर्ता राज्यों के लिए कोई प्रोत्साहन प्रदर्सन नहीं करता। हालांकि विधेयक में राज्यों के कर राजस्व की हानि की पांच वर्ष तक क्षतिपूर्ति का प्रावधान किया गया है। एक बार यह क्षतिपूर्ति प्रदान करने की अवधि समाप्त होने के बाद इस बात में संदेह है कि जीएसटी वाहन विनिर्माणकर्ता राज्यों को उनकी वर्तमान राजस्व प्राप्ति के स्तर पर लाने में सहायक हो पाएगा या नहीं।



समग्र दृष्टि से जीएसटी राज्यसभा में, और तत्पश्चात लोक सभा एवं समुचित संख्या में राज्य विधानसभाओं में, अधिक कठिनाई बिना पारित हो गया। इसी के बाद ०८ सितंबर २०१६ को संविधान संशोधन हो गया. काफी हद तक प्रणालीगत परिवर्तन अब होंगे।


जीएसटी के क्षेत्रवार लाभ

जीएसटी के अर्थव्यवस्था के अनेक क्षेत्रों को प्रत्यक्ष लाभ होंगे। कुछ उदाहरण नीचे सूचीबद्ध किये गए हैं। विमुद्रीकरण (नोटबंदी) के बाद, इनमें से कुछ क्षेत्रों में अचानक से मंदी आई है, और पूर्ववर्ती अनुमान गलत दिखने लगे हैं।


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    • बैंकिंग एवं वित्तीय सेवाएं
      • ##chevron-right##  निविष्टि कर के श्रेय प्राप्त करने की दृष्टि से चूंकि अर्थव्यवस्था का बडा हिस्सा जीएसटी की परिधि में आ जाएगा, अतः बैंकिंग कार्यों की व्याप्ति में काफी अधिक विस्तार होगा।  ##chevron-right##  वस्तुओं के क्रय पर जीएसटी श्रेयों के कारण समग्र श्रेय भंडार में वृद्धि होने की संभावना है।  ##chevron-right## जीएसटी के अंतर्गत ऋणों के ब्याज पर कर अधिरोपित किये जाने की संभावना है।
    • अधोसंरचना और रियल एस्टेट
      • ##chevron-right##  वैट, सेवा कर, प्रवेश कर इत्यादि जैसे बहुविध करों की समाप्ति द्वारा संयुक्त लेनदेनों पर सरलीकृत करारोपण और मूल्यांकन। ##chevron-right##  संयुक्त अनुबंधों को "सेवाएं" माने जाने की संभावना है जिसके कारण मुकदमेबाजी की संभावना काफी हद तक समाप्त हो जाएगी।
    • सूचना प्रौद्योगिकी एवं दूर संचार
      • ##chevron-right##  वैट, सेवा कर, प्रवेश कर इत्यादि जैसे बहुविध करों की समाप्ति द्वारा संयुक्त लेनदेनों पर सरलीकृत करारोपण और मूल्यांकन। ##chevron-right##  सिम कार्ड, फ्रेंचाइजी शुल्क, वार्षिक संधारण अनुबंध इत्यादि जैसे मदों के लिए वस्तुओं और सेवाओं के बीच वर्गीकरण संबंधी विवादों की समाप्ति।
    • सेवाएं
      • ##chevron-right##  वस्तुओं और सेवाओं के बीच वर्गीकरण संबंधी विवादों की समाप्ति।  ##chevron-right##  उच्च कर अनुपालन सुनिश्चित करने के लिए छोटी नकारात्मक सूची।
    • विनिर्माण और खुदरा
      • ##chevron-right##  अंतर राज्य विक्रय पर पूर्ण श्रेय खरीद और उत्पादन लागत को कम करेगा। ##chevron-right##  आयातित वस्तुओं का श्रेय उन्हें खुदरा व्यापारियों के लिए अधिक सस्ता बना देगा।  ##chevron-right##  प्रवेश कर की समाप्ति। ##chevron-right##  वस्तुओं और सेवाओं पर श्रेय की अधिक विनिमेयता।
    • मीडिया और आतिथ्य सत्कार
      • ##chevron-right##  मनोरंजन कर, विलासिता कर, वैट इत्यादि जैसे करों की विविधत को समाप्त करता है। ##chevron-right##  वस्तुओं और सेवाओं के बीच विनिमेय श्रेय का सर्वाधिक लाभ मीडिया और मनोरंजन क्षेत्र को होगा।

इस प्रकार, मूल्यों में कमी होने के कारण कम से कम पांच क्षेत्रों से निर्यात को बढावा मिलना चाहिए। ये क्षेत्र हैं - रसायन, लोहा एवं इस्पात उद्योग, खाद्य और वस्त्रोद्योग की मशीनें, कृषि मशीनें, और प्लास्टिक और रबर उत्पाद।

 बोधि पृष्ठ ७ पर जारी है 



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जीएसटी के समग्र लाभ


  • कर के प्रपाती प्रभाव न होने के कारण महंगाई भडकने की न्यूनतम संभावना।
  • एक ही कर सभी प्रकार के अप्रत्यक्ष करों को समाहित करने के कारण कर प्रशासन सरल और आसान हो जाएगा।
  • केंद्र और राज्यों के कर प्रशासनों में सामंजस्य होने से दोहरीकरण और अनुपालन लागतें कम होंगी। कर संबंधी विवाद और परिणामी मुकदमेबाजी कम होगी।
  • भारत एक विखंडित बाजारों के समूह की बजाय एक एकल बाजार बन जाएगा जिसके कारण मुक्त परिवहन और आदान-प्रदान संभव होगा।
  • अल्प विकसित राज्यों को बढावा मिलेगा क्योंकि 2 प्रतिशत अंतर राज्य करारोपण का अर्थ है उत्पादन राज्य के भीतर ही रखा जाएगा। जीएसटी राष्ट्रीय बाजार में इसका बिखराव हो सकता है। 
  • कंपनियों के बीच अधिक प्रतिस्पर्धात्मकता के कारण "मेक इन इंडिया" संभव हो पाएगा। 
  • अधिक व्यापक कर आधार, जो कर की दरों को कम करने और वर्गीकरण संबंधी विवादों को समाप्त करने की दृष्टि से अनिवार्य है। 
  • राज्यों की सीमाओं के पार न्यूनतम प्रवेश औपचारिकताओं के कारण परिवर्तनकाल। 
  • गंतव्य सिद्धांत और शून्य मूल्यांकन, जिसके कारण उपभोक्ता राज्यों द्वारा जीएसटी संग्रहण और शून्य मूल्यांकन के कारण निर्यात लाभ क्योंकि करों का निर्यात नहीं किया जा सकेगा ! 
  • कर के प्रपाती प्रभाव इत्यादि की समाप्ति के कारण जीडीपी को बढावा मिलेगा।

जीएसटी के लाभों के विषय में सरकार का मूल्यांकन

भारत सरकार सोचती है कि जीएसटी के निम्नलिखित लाभ होंगे।


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    • व्यापार और उद्योगों के लिए    
      • ##chevron-right## सरल अनुपालन: एक मजबूत और व्यापक सूचना प्रौद्योगिकी व्यवस्था भारत में जीएसटी शासन की नींव होगी। अतः पंजीकरण, विवरण प्रस्तुति, भुगतान इत्यादि जैसी सभी कर आदाता सेवाएं कर दाताओं को ऑनलाइन उपलब्ध होंगी जिसके कारण कर अनुपालन आसान और पारदर्शी हो जाएगा। ##chevron-right## कर दरों और संरचनाओं में समानता: जीएसटी यह सुनिश्चित करेगा कि अप्रत्यक्ष कर दरें संपूर्ण देश में समान होंगी, इस प्रकार व्यापार करने की सुनिश्चितता और सहजता में वृद्धि होगी। दूसरे शब्दों में, जीएसटी देश में व्यापार करने के काम को कर निष्पक्ष बना देगा, फिर व्यापार का स्थान का चयन कोई भी क्यों न हो। ##chevron-right## कर के प्रपाती प्रभाव की समाप्ति: संपूर्ण मूल्य श्रृंखला में एक निर्बाध और अखंड कर श्रेय व्यवस्था यह सुनिश्चित करेगी कि करों का प्रपाती प्रभाव न्यूनतम हो। यह व्यापार करने की अदृश्य लागतों में कमी करेगा। ##chevron-right## सुधारित प्रतिस्पर्धात्मकता: व्यापार की लेनदेन लागतों में कमी अंततः व्यापार और उद्योगों के लिए एक अधिक सुधारित प्रतिस्पर्धात्मकता में परिणामित होगी। ##chevron-right## विनिर्माताओं और निर्यातकों को लाभ: प्रमुख केंद्रीय और राज्यों के करों का जीएसटी में समावेश, निविष्टि वस्तुओं और सेवाओं का संपूर्ण और व्यापक व्यतिरेक और केंद्रीय विक्रय कर की चरणबद्ध समाप्ति स्थानीय स्तर पर उत्पादित वस्तुओं और सेवाओं की लागतों में कमी करेंगे। इसके कारण भारतीय वस्तुओं और सेवाओं की अंतर्राष्ट्रीय बाजारों में प्रतिस्पर्धात्मकता में वृद्धि होगी जो भारतीय निर्यातों को बढावा देगा। संपूर्ण देश में कर दरों और प्रक्रियाओं में समानता की भी अनुपालन लागत में कमी करने की दृष्टि से महत्वपूर्ण भूमिका होगी।
    • केंद्र एवं राज्य सरकारों के लिए    
      • ##chevron-right## प्रशासित करने की दृष्टि से सरल एवं आसान: केंद्रीय और राज्य स्तर पर करों की बहुविधता जीएसटी द्वारा प्रतिस्थापित होगी। एक मजबूत अंत-से-अंत सूचना प्रौद्योगिकी व्यवस्था की सहायता से जीएसटी का प्रशासन अब तक अधिरोपित किये गए सभी अन्य अप्रत्यक्ष करों की तुलना में अधिक सरल एवं आसान हो जाएगा। ##chevron-right## रिसावों पर अधिक बेहतर नियंत्रण: एक मजबूत सूचना प्रौद्योगिकी अधोसंरचना के कारण जीएसटी का परिणाम बेहतर कर अनुपालन में होगा। मूल्य संवर्धन की श्रृंखला में एक चरण से दूसरे चरण में निविष्टि कर श्रेयों के निर्बाध हस्तांतरण के कारण जीएसटी की संरचना में एक अंतर्निहित तंत्र है जो व्यापारियों द्वारा कर अनुपालन को प्रोत्साहन देगा। ##chevron-right## अधिक उच्च राजस्व कौशल: ऐसा अनुमान है कि जीएसटी सरकार के कर राजस्व संग्रहण की लागत में कमी करेगा अतः इसके कारण राजस्व कुशलता अधिक उच्च होगी। 
    • उपभोक्ता के लिए   
      • ##chevron-right## एकल और पारदर्शी कर जो वस्तुओं और सेवाओं के मूल्य के आनुपातिक होगा: केंद्र और राज्य द्वारा अधिरोपित बहुविध अप्रत्यक्ष करों के कारण, जिनमें मूल्य संवर्धन के प्रगतिशील चरणों पर अपूर्ण निविष्टि कर श्रेय या किसी प्रकार के निविष्टि कर श्रेय प्राप्त नहीं होने के कारण आज देश की अधिकांश वस्तुओं और सेवाओं की लागत पर अनेक प्रच्छन्न करों का बोझ है। जीएसटी के अंतर्गत विनिर्माता से लेकर उपभोक्ता तक केवल एक ही कर होगा, जिसके कारण अंतिम उपभोक्ता को भुगतान किये गए कर पारदर्शी हो जाएंगे।  ##chevron-right## समग्र कर भार में राहत: कौशल लाभों और रिसावों के निवारण के कारण अधिकांश वस्तुओं पर समग्र कर भार कम हो जाएगा जिसके कारण उपभोक्ताओं को लाभ मिलेगा।

जीएसटी का चित्रात्मक प्रदर्शन


संपूर्ण जीएसटी व्यवस्था कैसी दिखेगी यह नीचे दर्शाया गया है -

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जीएसटी संजाल (नेटवर्क) (जीएसटीएन) कैसा दिखेगा यह नीचे दर्शाया गया है -

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जीएसटी की तकनीकी बारीकियां

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किसे लाभ होगा - निगमों को या नागरिकों को?



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    • बड़ा प्रश्न है कि - क्या उपभोक्ता लाभान्वित होंगे? हाँ, यदि कॉरपोरेट्स उन्हें मिलने वाला लाभ आगे बढ़ा दें। मुनाफाखोरी-रोधी धारा (anti-profiteering clause) (नवम्बर २०१६ में प्रस्तावित) इसी डर के चलते आई। वस्तुओं के मामले में, अप्रत्यक्ष कर जैसे उत्पाद शुल्क, वैट और केंद्रीय विक्रय कर उन कीमतों में बने होते हैं जो उपभोक्ता चुकाते हैं। उदाहरणार्थ, टूथपेस्ट। यदि कीमत है रु.५२, तो इसका २५ - २७ प्रतिशत तो करों की कीमत है। अब, १८ - २० % जीएसटी हो जाने से (मान लें), कर का बोझ कम होना चाहिए। किन्तु क्या कंपनियां ये लाभ उपभोक्ताओं तक पहुचायेंगी? कंपनियां अनेक कारकों को देखते हुए, जिनमें प्रतिस्पर्धा आदि शामिल हैं, अपने निर्णय लेती हैं। 
    • हाँ, यदि निगम उन्हें मिलने वाले लाभ हस्तांतरित करें। वस्तुओं के मामले में उत्पादन शुल्क, मूल्य संवर्धित कर और केंद्रीय विक्रय कर जैसे अप्रत्यक्ष कर उपभोक्ता द्वारा भुगतान की जाने वाली कीमतों में अंतर्निहित हैं। उदाहरणार्थ, टूथपेस्ट। मान लीजिये इसका मूल्य 52 रुपये है, तो इसका 25-27 प्रतिशत वास्तव में कर लागत है। अब 18-20 प्रतिशत (मान लीजिये) जीएसटी के साथ, जो विभिन्न अप्रत्यक्ष करों को समाहित करता है, आदर्श रूप से कर लागत कम हो जाती है। हालांकि यह इस बात पर निर्भर करेगा कि कंपनी इस लाभ को हस्तांतरित करना चाहती है या नहीं !

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क्या निगम लाभान्वित होंगे? हाँ उन्हें इस प्रकार के लाभ होंगे।


  1. दोहरा कराधान समाप्त हो जाएगा। अतः प्रभावी अप्रत्यक्ष कर कम होने की संभावना है। वर्तमान व्यवस्था में निगम कर पर कर का भुगतान करते हैं, क्योंकि वर्तमान कर व्यवस्था में संपूर्ण मूल्य श्रृंखला में निविष्टि कर श्रेय का प्रावधान नहीं है। 
  2. राज्यों के बीच वस्तुओं का निर्बाध प्रवाह परिवहन खर्चों और इन्वेंटरी प्रबंधन लागतों को कम करेगा जो भारत में काफी ऊंची हैं। 
  3. अंतर्निहित स्व पुलिसिंग के माध्यम से असंगठित और संगठित प्रतिद्वंद्वियों के बीच संकीर्ण भिन्नताएं। चूंकि मूल्य श्रृंखला के पिछले सभी चरणों में भुगतान किये गए करों के श्रेय प्राप्त हो जाते हैं, अतः व्यतिरेक की मांग करने के लिए फर्मों को पिछली कडियों से अनुपालन की साक्ष्य प्राप्त होना आवश्यक है। इस प्रकार, सभी ईमानदार फर्मों के साथ व्यापार करना चाहेंगे जो अपने सभी दस्तावेजों का व्यवस्थित संधारण करती हों। इसके कारण बडे पैमाने पर असंगठित क्षेत्र के प्रतिद्वंद्वियों की कर संजाल में आने की संभावना है, जिसके कारण संगठित प्रतिद्वंद्वियों के समक्ष उनकी मूल्य प्रतिस्पर्धा कम हो जाएगी। 
  4. जैसे-जैसे निगमों को अधिकाधिक निविष्टि श्रेय प्राप्त होते जाएंगे वैसे-वैसे उनकी शुद्ध कर लागत कम होती जाएगी, और चूंकि अनेक कर एक ही कर में समाहित हो जाएंगे अतः उनकी अनुपालन की आवश्यकता भी कम हो जाएगी।


क्या अर्थव्यवस्था को लाभ होगा?

क्या अर्थव्यवस्था लाभांवित होगी? अर्थशास्त्रियों का अनुमान है कि जीएसटी के क्रियान्वयन के बाद अर्थव्यवस्था में 1.5 प्रतिशत से 2 प्रतिशत की वृद्धि होगी। यह करों को कम करेगा और अनुपालन में वृद्धि करेगा, जिसके कारण सरकार के लिए कर राजस्व में वृद्धि होगी। वस्तुओं का प्रवाह अधिक तेज गति से, आसानी से और सस्ता होगा। इसके कारण अर्थव्यवस्था को बढावा मिलने की संभावना है।


[इस बोधि को अंग्रेजी में पढ़ें ##link##]

जीएसटी, धोखाधडी में कमी, पारदर्शिता और आधार 

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जीएसटीएन में सरकार द्वारा लिए कदम 

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अतिरिक्त तकनीकी जानकारी

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    क्या जीएसटी अतिरंजित है?


    अर्थव्यवस्था पर अनेक विशेषज्ञों का मानना है कि प्रस्तावित कर सामग्री के कम परंतु प्रचार या सुर्खियों में अतिरंजित है। आइये हम ऐसे लोगों की प्रमुख चिंताओं पर विचार करें।


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      • पहली चिंता 
        • न्यून कीमतों के कारण क्या उपभोक्ता लाभान्वित होंगे? जिन लोगों को संदेह है उनका कहना है कि यदि जीएसटी क्रियान्वित होता है तो यह उन अनेक प्रश्नों में से एक है जो पूछा जाना चाहिए। कीमतों में कमी के बारे में दिया जाने वाला तर्क गलत है। यह सही है कि व्यवसायों और व्यापारों द्वारा सामना किये जा रहे कर प्रशासन का सरलीकरण होगा परंतु यह उतना नहीं होगा जितना कहा जा रहा है। देश में तीन कर होंगे - सीजीएसटी, जिसका संग्रहण केंद्र द्वारा किया जाएगा, एसजीएसटी, जिसका संग्रहण राज्यों द्वारा किया जाएग और अंतरराज्य आपूर्तियों पर लगने वाला आईजीएसटी, जिसका संग्रहण केंद्र द्वारा किया जाएगा। साथ ही, राज्यों के दबाव में मद्य, तंबाखू और पेट्रो उत्पादों को संभवतः जीएसटी के दायरे से बाहर रखा जाएगा। उसी प्रकार बिजली और रियल एस्टेट को भी जीएसटी के जाल से बाहर रखे जाने की संभावना है और इनके लिए स्वतंत्र कर होंगे जिसके कारण कुछ हद तक प्रपाती प्रभाव निश्चित रूप से होगा। सेवाओं को पूर्व में विक्रसि कर का भुगतान नहीं करना पडता था परंतु अब उन्हें राज्यों को एसजीएसटी का भुगतान करना होगा अतः उनके मूल्यों में वृद्धि होगी। उदाहरणार्थ, टेलीफोन कॉल्स, बीमा, परिवहन, रेस्त्रां इत्यादि महंगे हो जाएंगे। एक समान कर का निहितार्थ यह होगा कि सभी आधारभूत और अनिवार्य वदसतूओं के मूल्यों में वृद्धि होगी, और यदि कुछ अंतिम उपभोग वस्तुओं के मूल्यों में गिरावट भी होती है फिर भी मुद्रास्फीति की दर में वृद्धि होगी।
      • दूसरी चिंता 
        • राजकोषीय संघवाद पर आक्रमण सभी राज्यों के लिए समान कर दर राजकोषीय संघवाद को कमजोर करती है ; क्योंकि अलग-अलग राज्यों की आवश्यकताएं भिन्न-भिन्न हैं। भारत में जीएसटी के प्रारंभ के साथ वास्तविक समस्याओं को संबोधित नहीं किया गया है। भारत का असंगठित क्षेत्र लगभग 93 प्रतिशत तक श्रम शक्ति को रोजगार प्रदान करता है। एकीकृत बाजार के कारण स्थानीय स्तर पर उत्पादन और विक्रय करने वाली लघु और छोटी इकाइयों को नुकसान होगा जो बडे पैमाने पर उत्पादन करने वाले उत्पादकों के लिए लाभदायक होगा। यह प्रच्छन्न रोजगार की समस्या और कृषि क्षेत्र की कठिनाइयों में वृद्धि करेगा और यह गरीब राज्यों पर प्रतिकूल प्रभाव डालेगा। कोई आश्चर्य नहीं है कि बडे व्यवसाइयों - भारतीय और अंतर्राष्ट्रीय, दोनों - जीएसटी का पुरजोर समर्थन कर रहे हैं। केवल वैट के सौ से अधिक देशों में अस्तित्व में होने का यह अर्थ नहीं है कि भारत में यह सभी लोगों को समान रूप से लाभान्वित करेगा।
      • तीसरी चिंता 
        • क्या जीएसटी के कारण वृद्धि को वास्तव में उत्प्रेरणा मिलेगी? कुछ विशेषज्ञों का कहना है कि जीएसटी एक अत्यंत अतिरंजित परिकल्पना है। ऐसा प्रचार किया जा रहा है कि जीएसटी से निवेश और वृद्धि को भारी प्रोत्साहन मिलेगा, परंतु वास्तविकता यह है कि इसका प्रभाव अत्यंत नगण्य होगा। यह एक अत्यंत सुविधाजनक बहाना है कि जीएसटी अभी तक लागू नहीं हो पाया है इसीलिए वृद्धि नहीं हो पा रही है। जहाँ तक एक राष्ट्रीय बाजार के निर्माण का प्रश्न है, तो संपूर्ण देश में एक एकल एकसमान कर शासन के साथ अतिरिक्त केंद्रीकरण भारत के लिए कभी भी लाभदायक नहीं रहा है। जीएसटी के साथ भी यही है। यह दुनिया को यह दिखाने के लिए एक प्रसाधनीय सुधार है कि भारत आर्थिक सुधार कर रहा है। पिछले दो वर्षों में निवेश में वृद्धि असफल रही है। हमने सार्वजनिक क्षेत्र की बैंकों में बडे पैमाने पर गैर-निष्पादित परिसंपत्तियों का अनुभव किया है। विशेषज्ञों का मानना है कि चूंकि जीएसटी एक राजनीतिक मुद्दा है, अतः इसका अतिरंजन किया जा रहा है। जीएसटी का मूल उद्देश्य है कर संरचना का सरलीकरण और एकीकृत कराधान। परंतु यह देखना होगा कि इस उद्देश्य की पूर्ति हो रही है या नहीं।
      • चौथी चिंता 
        • भविष्य में क्या होगा? सामान्य करदाता के मन में प्रस्तावित अप्रत्यक्ष शासन के संबंध में संदेह है। पहला यह कि जीएसटी के लागू होने के बाद क्या भविष्य में नए कर जोडे जाएंगे? यदि अधिकतम सीमा 20 प्रतिशत है तो लोग नहीं चाहते कि भविष्य में इसमें अन्य कर जोडे जाएं। दूसरा, वर्तमान में कुल कर लगभग 33 प्रतिशत बनता है, जबकि जीएसटी केवल 18 से 20 प्रतिशत कर दर की बात करता है। तीसरा, वस्तुओं और सेवाओं के मूल्यों में वृद्धि होगी। चौथा, कर विभाग और उसके अधिकारियों की भूमिका - क्या वे करदाताओं को डराना जारी रखेंगे? सर्कार को इन मुद्दों पर स्पष्टीकरण देना चाहिए। सामान्य नागरिक को गंभीर चिंताएं हैं जैसे वर्तमान में सेवा कर लगभग 15 प्रतिशत अधिरोपित किया जाता है, परंतु जीएसटी के लागू होने के बाद यह 18 प्रतिशत हो जाएगा। इसके कारण कुछ सेवाएं महँगी हो जाएंगी। केंद्र सरकार चाहती है कि स्थिर उच्च दर का उल्लेख संविधान में करने के बजाय इसका उल्लेख जीएसटी कानून में किया जाए। यहीं सामान्य उपभोक्ता को संदेह है क्योंकि दीर्घकाल में कराधान की दरें कर प्रशासन और सरकार की मनमर्जी और सनक के अनुसार होंगी। यदि उनमें परिवर्तन किया जाता है तब क्या? सरकार को अपनी प्रतिबद्धता सुनिश्चित करनी होगी।

    अंतिम सारांश


    1. अप्रत्यक्ष करों की हमारी वर्तमान व्यवस्था अकुशलताओं का भंडार है, जिसके कारण व्यापार-व्यवसाय में अस्तित्व के लिए कर अपवंचन एक प्रकार का मानदंड सा बन गया है, जिसके कारण निहित स्वार्थ निर्माण हो रहे हैं। केंद्र और राज्य स्तर पर करों भंवरजाल उत्पाद के उसी मूल्य संवर्धन पर प्रपाती कर अधिरोपित करते रहते हैं जिसके कारण उपभोक्ता तक आते-आते वस्तु के मूल्य में काफी वृद्धि हो जाती है। 
    2. वर्तमान व्यवस्था के अंतर्गत पैरों का प्रपाती प्रभाव होता है, जिसके कारण समग्र कर अधिक उच्च हो जाते हैं। उदाहरणार्थ, एक विनिर्माता 100 रुपये में कच्चा माल खरीदता है जिसपर वर 10 रुपये का निविष्टि कर भुगतान करता है। यदि विनिर्माता उस वस्तु में 50 रुपये का मूल्य संवर्धन करता है, तो थोक विक्रेता के लिए विक्रय मूल्य 176 रुपये हो जाएगा (100 रुपये धन 10 रुपये (कर) धन 50 रुपये (मूल्य संवर्धन) धन 16 रुपये (160 रुपये पर 10 प्रतिशत कर) । यदि थोक विक्रेता उसमें 24 रुपये का मूल्य संवर्धन करता है, तो वस्तु का कर-पूर्व मूल्य 200 रुपये हो जाता है। अंतिम उपभोक्ता अंततः उस वस्तु के लिए 220 रुपये का भुगतान करेगा (200 रुपये धन 20 रुपये (200 रुपये पर 10 प्रतिशत कर) । प्रकार उस उत्पाद पर भुगतान किया गया कुल कर 46 रुपये हो जाता है (10 रुपये धन 16 रुपये धन 20 रुपये) जबकि वांछित कर 17.4 रुपये था (10 रुपये धन 5 रुपये धन 2.4 रुपये) । अतः प्रत्येक चरण पर किये गए मूल्य संवर्धन की तुलना में उपभोक्ता को 28.6 रुपये के अतिरिक्त कर का भुगतान करना पडता है। 
    3. प्रपाती कर पण्यावर्त कर (टर्नओवर टैक्स) होते हैं जो आपूर्ति श्रृंखला के प्रत्येक चरण पर अधिरोपित किये जाते हैं, जबकि पूर्व चरण पर भुगतान किये गए कर की किसी प्रकार की छूट नहीं मिलती। ऐसे कर इस दृष्टि से विकृत होते हैं कि वे अनुलंब एकीकरण के लिए कृत्रिम प्रोत्साहन का निर्माण करते हैं। यूरोप और अनेक अन्य अनेक स्थानों पर इन्हें मूल्य संवर्धित कर (वैट) द्वारा प्रतिस्थापित किया जा चुका है। 
    4. जीएसटी संपूर्ण आपूर्ति श्रृंखला पर एक मूल्य संवर्धित कर है जो करों के प्रपाती स्वरुप से बचता है। ऊपर के उदाहरण में जीएसटी की गणना 17.4 रुपये होती (10 रुपये धन 5 रुपये धन 2.4 रुपये) । अतः जीएसटी एक विशेष प्रकार का विक्रय कर है, जिसे आमतौर पर मूल्य संवर्धित विक्रय कर कहा जाता है। यह प्रकार इस दृष्टि से विशिष्ट होता है कि यह उत्पादन प्रक्रिया के विभिन्न चरणों पर उत्पाद के केवल मौद्रिक मूल्य संवर्धन पर ही कर अधिरोपित करता है।
    5. जीएसटी की निम्न दो विशेषताएं हैं : 
      1. उपभोग विक्रय कर: जीएसटी एक उपभोग विक्रय है। इसका अर्थ यह है कि उत्पाद का क्रय करने वाला पक्ष (उपभोक्ता) कर के भुगतान के लिए उत्तरदायी है न कि उत्पाद का विक्रेता। यदि आप एक कैंडी स्टोर से कैंडी खरीदते हैं तो उस विशिष्ट लेनदेन में आप (एक उपभोक्ता के रूप में) जीएसटी का भुगतान करते हैं। यह सिद्धांत उत्पादन और वितरण के प्रत्येक चरण पर कार्यरत होता है। जब भी कोई लेनदेन किया जाता है, फिर चाहे वह उत्पादन, विरतण या खुदरा स्तर जैसे किसी भी स्तर पर हो, वस्तु या सेवा खरीदने वाले पक्ष को ही जीएसटी का भुगतान करना आवश्यक है। 
      2. प्रतिशत उपभोग कर: इसका अर्थ है कि आप जितनी मात्रा में कर भुगतान करते हैं वह आपके द्वारा खरीदी गई वस्तु या सेवा की विक्रय लागत (कर-पूर्व) का एक निश्चित प्रतिशत हिस्सा होता है।
    6. भारत में जीएसटी केंद्रीय उत्पादन शुल्क, अतिरिक्त सीमा शुल्क, केंद्रीय विक्रय कर और सेनवैट जैसे केंद्रीय करों को समाहित करेगा साथ ही यह राज्य विक्रय कर, वैट जैसे राज्य स्तरीय करों और चुंगी, प्रवेश कर इत्यादि जैसे नगरपालिका करों को भी समाहित करेगा। साथ ही जीएसटी के अर्थव्यवस्था के विभिन्न क्षेत्रों पर प्रत्यक्ष लाभ होंगे।
    7. लंबित मुद्दे – 
      1. जीएसटी के अंतर्गत व्यापार के लिए प्रारंभिक सीमा : सेवा कर, केंद्रीय उत्पादन शुल्क और राज्य के वैट के अधिरोपण के लिए विभिन्न राज्यों और केंद्र की भिन्न-भिन्न प्रारंभिक सीमाएं हैं। वर्तमान में जीएसटी के लिए एक समान प्रारंभिक सीमा पर आम राय नहीं बन पाई है। 
      2. कर प्रशासन को प्रशिक्षण : जीएसटी के प्रभावी क्रियान्वयन के लिए कर नौकरशाही को प्रशिक्षित करना एक विशालकाय कार्य है। 
      3. मजबूत सूचना प्रौद्योगिकी संजाल :केंद्रीय और राज्य करों के संजाल का संयुक्तिकरण करना एक अत्यंत कठिन कार्य है जो जीएसटी की सफलता के लिए अत्यंत महत्वपूर्ण है।


    एक फिसलन भरी राह


    राष्ट्रपति द्वारा सितंबर २०१६ में अनुमति मिलने के बाद जीएसटी का आगे का रास्ता - भारत सरकार ने अंततः सभी राजनीतिक दलों को क्रांतिकारी जीएसटी विधेयक को राज्यसभा के माध्यम से पारित करने की अनुमति देने के लिए राजी कर ही लिया जिसे अंततः लोकसभा में भी पारित किया गया (राज्यसभा द्वारा सुझाए गए संशोधनों को)। राष्ट्रपति ने भी इसे अपना अनुमोदन प्रदान कर दिया है और यह कानून बन गया है। चूंकि अनेक मुद्दों को पहले ही सैद्धांतिक रूप से सुलझा लिया गया था, अतः अब इसके वास्तविक क्रियान्वयन की चुनौती है।  

    विमुद्रीकरण (नोटबंदी) ने ०८ नवम्बर २०१६ के बाद राष्ट्रीय चर्चा का रुख ही मोड़ दिया है। जीएसटी सितंबर २०१७ तक ही आ पायेगा, यदि और देरी न हुई तो।
    जीएसटी एक व्यवहार-आधारित कर है न कि आय कर, अतः इसे अप्रैल २०१७ से सितंबर २०१७ के बीच कभी भी लागू कर सकते हैं। चूंकि संविधान संशोधन १६ सितंबर २०१६ को अधिसूचित हुआ था, और वह पुरानी कर-व्यवस्था को एक वर्ष तक ही जारी रखने की अनुमति देता है, अतः १६ सितंबर २०१७ से पुरानी कर व्यवस्था बंद हो जाएगी   - अरुण जेटली, वित्त मंत्री, १७ दिसंबर २०१६ 


    सब कुछ ठीक रहने पर भी, मुख्य चुनौतियाँ ये रहेंगी 

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      • पहली चुनौती
        • जीएसटी परिषद (अनुच्छेद 279 ए के अनुसार एक संवैधानिक निकाय) को कार्यरत किया जाना आवश्यक है। यह जीएसटी के सफल क्रियान्वयन की दृष्टि से अत्यंत महत्वपूर्ण होगा, साथ ही एक राष्ट्रीय बाजार का निर्माण और अनवरत त्वरित वृद्धि भी महत्वपूर्ण होंगे। जीएसटी के मुद्दों को अब तक संयोजित करने वाली राज्यों के वित्तमंत्रियों की अधिकार प्राप्त समिति की तुलना में जीएसटी परिषद् संरचना और जिम्मेदारियों की दृष्टि से एक क्रांतिकारी परिवर्तन होगा। तेजी से चलने के लिए 33 सदस्यीय जीएसटी परिषद् को अब संभवतः एक समिति व्यवस्था (संसद की तरह) को अपनाने की आवश्यकता होगी।
      • दूसरी चुनौती
        • इसे पारदर्शी, उम्मीद के मुताबिक और निरंतर रूप से संचालित किया जाना आवश्यक है ताकि यह अपने सदस्यों और - विनिर्माताओं, व्यापारियों और सेवा प्रदाताओं से लेकर उपभोक्ताओं, नागरिक समाज, शिक्षाविदों और समग्र रूप से संपूर्ण राष्ट्र जैसे अपने सभी हितधारकों के सम्मान की पात्र बनी रहे। छूट प्राप्त वस्तुओं और सेवाओं की सिफारिश के माध्यम से, कराधान के लिए प्रारंभिक सीमा निर्धारित करने , राजस्व-तटस्थ दर निर्धारित करने और दर संरचना निर्धारित करने के लिए इसे कर आधार का निर्धारण करने के लिए नियमों और प्रक्रियाओं का निर्माण करना है। ये अत्यंत गहरे मुद्दे हैं और इनका प्रभाव केंद्र और सभी राज्यों पर पडने वाला है।
      • तीसरी चुनौती
        • क्षतिपूर्ति सूत्र सही बनाकर और प्रत्यायोजित विधि निर्माण के न्यूनीकरण के जरिये परिषद को इसके सभी सदस्यों के बीच प्रलोभनों के अभिसरण को सुनिश्चित करना होगा। इसके पश्चात ही संसद राज्य सरकारों की राजस्व हानि के लिए क्षतिपूर्ति प्रदान करने के लिए कानून बनाएगी। सभी राज्य चाहेंगे कि उन्हें पहले पांच वर्षों के दौरान होने वाली राजस्व हानि की 100 प्रतिशत क्षतिपूर्ति प्राप्त हो परंतु ऐसा करना असंभव होगा। ऐसी स्थिति में राज्य इस संपूर्ण अवधि के दौरान जीएसटी के तहत राजस्व संग्रहण करने के प्रति उदासीन होंगे। अतः जीएसटी की सफलता की सभी राज्यों की इच्छा को सुनिश्चित करने के लिए एक शिथिल क्षतिपूर्ति सूत्र की आवश्यकता होगी (ठीक उसी प्रकार जैसे वर्ष 2005 में वैट के संबंध में किया गया था) : पहले वर्ष के दौरान 100 प्रतिशत, दुसरे वर्ष 75 प्रतिशत, उर इस प्रकार धीरे-धीरे कम करते हुए अंतिम वर्ष में इसे 25 प्रतिशत तक नीचे लाना होगा।
      • चौथी चुनौती
        • अनुच्छेद 269 ए यह अधिदेश देता है कि (ए) प्राकृतिक आपदाओं से निपटने के लिए विशेष दरों के प्रावधान, (बी) उत्तर-पूर्वी राज्यों के लिए विशेष प्रावधान करने और (सी) उस तिथि का निधारण करने के लिए जब से पेट्रोलियम उत्पाद जीएसटी की परिधि में आएंगे, के लिए सिफारिशें की जानी हैं। अनिश्चितता से बचने के लिए परिषद् को यह इंगित करना होगा कि वह इन मुद्दों को किस प्रकार संबोधित करेगी। उदाहरणार्थ, वह यह प्रारंभ में ही सिफारिश कर सकती है (या कम से कम विचार तो कर सकती है) कि वह किस वर्ष से पेट्रोलियम उत्पादों को जीएसटी के दायरे में लाएगी। इस नई व्यवस्था को सही ढंग से स्थापित होने के लिए पर्याप्त समय प्रदान करने के लिए, वह इस बात का भी परीक्षण कर सकती है कि कितने समय बाद या किन परिस्थितियों में वह जीएसटी दरों पर की गई सिफारिशों की समीक्षा करेगी। जीएसटी को 1 अप्रैल 2017 से लागू करना चुनौतीपूर्ण हो सकता है। चूंकि परिषद् को विधायी, कार्यकारी और न्यायिक शक्तियां प्रदान की गई हैं (क्योंकि वह जीएसटी कानून की सिफारिश करेगी, देश में जीएसटी के क्रियान्वयन का निरीक्षण करेगी और विवादों के निराकरण के लिए निर्णयादेश तंत्र का गठन करेगी) अतः उसे अपनी शक्तियों का उपयोग अत्यंत समावेशकता के साथ करना होगा। उसे मसौदा सलाहकार दस्तावेज जनता के सूक्ष्म परीक्षण के लिए रखने होंगे, मुद्दों पर सभी के विचार शामिल करने होंगे और सभी के लिए एक संवाद योग्य पोर्टल स्थापित करना होगा।
      • पांचवी चुनौती 
        • केंद्रीय जीएसटी, अंतर-राज्य जीएसटी और जीएसटी कानूनों, राजस्व तटस्थ दर और दर संरचना की संरचना और विषय सामग्री के बारे में निर्णय करना होगा। जबकि केंद्रीय जीएसटी के लिए राजस्व-तटस्थ दर निर्धारित करना आसान होगा, परंतु प्रत्येक राज्य के लिए व्यक्तिगत रूप से इसका निर्धारण करना कठिन है। प्रत्येक राज्य के लिए सेवा कर के हिस्से के अनुमान लगाने में कठिनाइयां हैं, क्योंकि राज्यवार सेवा कर संग्रह के आंकडे उपलब्ध नहीं हैं। राज्यों की अप्रत्यक्ष कर राजस्व पर अत्यधिक (चरम) निर्भरता को देखते हुए इसमें सावधानी बरतना आवश्यक होगा। जब राजस्व-तटस्थ दर को संपूर्ण कर आधार पर लागू किया जाता है तो यह वर्तमान राजस्व का निर्माण करती है। राज्य सरकारें संभवतः बजट तटस्थ दर को देखना चाहेंगी, वह दर, जिसपर, उनके कम व्यय को देखते हुए, उनके व्यय बजट तटस्थ रहते हैं। यह राजस्व तटस्थ दर से कम होगी, अतः राज्य (और केंद्र) सरकारों को एक सुरक्षा की गुंजाईश प्रदान करेगी। तेरहवें वित्त आयोग ने एक व्यापक आधार पर और बहुत कम छूटों के साथ 12 प्रतिशत राजस्व तटस्थ दर की सिफारिश की थी। अरविंद सुब्रमण्यम पैनल ने 15 प्रतिशत की सिफारिश की थी। राजस्व तटस्थ दर को 12 से 15 प्रतिशत के बीच रखना वांछनीय होगा।


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      • ##fa-hand-pointer-o##  भारत को आशाएं वास्तविकता के धरातल पर रखनी चाहियें
        • उम्मीद है कि जीएसटी मुद्रास्फीति कम करने में सहायक होगा, किन्तु इसे बारीकी से समझना होगा। ये कर प्रपात को तो कम करेगा, किन्तु सरकारें कुल करों के संग्रहण में किसी भी कमी से नफरत करेंगी, जिस कारण से ही वे राजस्व तटस्थ दर (Revenue Neutral Rate RNR) की तलाश में गयीं, जिससे दरें ऊंची हो गयीं। दीर्घावधि में, जैसे-जैसे कर अपवंचन कम होता जायेगा, दरों के घटने की जगह बनते जाएगी, शायद उतनी जिससे उपभोक्ताओं को वास्तव में राहत मिले। अभी तो, सरकार को जल्द ही इसे लागू करने का सोचना होगा। इस लगातार बदलती परिस्थिति पर अपनी पकड़ बनाएं नोटबंदी पर हमारी बोधियों के साथ, यहाँ और यहाँ। साथ ही बोधि समाचार और विश्लेषण रोज़ाना पढ़ें


    अभी तक भारत की संघीय राजकोषीय संरचना काफी सुचारू रही है क्योंकि संविधान ने केंद्र और राज्यों को परस्पर अनन्य कर आधार प्रदान किये थे। जीएसटी इन दोनों पक्षों के बीच की उस दीवार को तोडेगा। अब वे एक समान अप्रत्यक्ष कर आधार साझा करेंगे और परिषद ऐसा करने की पद्धतियां प्रदान करेगी। यह सामंजस्यपूर्ण और धारणीय दोनों होना चाहिए। [ सहयोगी संघवाद पर हमारी विस्तृत बोधि पढ़ें यहाँ ]

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