इस विषय पर पहले बोधि लेख में हमने देखा कि धन - काला धन - विमुद्रीकरण का क्या अर्थ है, काला धन भारत में भ्रष्टाचार को किस प्रकार बढ़ावा...
इस विषय पर पहले बोधि लेख में हमने देखा कि धन - काला धन - विमुद्रीकरण का क्या अर्थ है, काला धन भारत में भ्रष्टाचार को किस प्रकार बढ़ावा देता है, आज जिस बुरी अवस्था में भारत की चुनावी राजनीति है, भारतीय बाजार में मुद्रा का आकार कितना है, काले धन पर वैश्विक कार्रवाई और विमुद्रीकरण, और मोदीजी की चरणबद्ध रणनीति।
इस दूसरे बोधि लेख में हम भारतीय अर्थव्यवस्था और नकदी समझेंगे, धन-शोधन किस प्रकार किया जाता है, भारत में बेनामी संपत्ति की स्थिति, भारतीय कर अपवंचन क्यों करते हैं, करों का सकल घरेलू उत्पाद से अनुपात, मुद्रास्फीति - वित्तीय बाजारों - विनिमय दरों पर प्रभाव, कानूनी प्रावधान और अन्य अनुत्तरित प्रश्न।
इस दूसरे बोधि लेख में हम भारतीय अर्थव्यवस्था और नकदी समझेंगे, धन-शोधन किस प्रकार किया जाता है, भारत में बेनामी संपत्ति की स्थिति, भारतीय कर अपवंचन क्यों करते हैं, करों का सकल घरेलू उत्पाद से अनुपात, मुद्रास्फीति - वित्तीय बाजारों - विनिमय दरों पर प्रभाव, कानूनी प्रावधान और अन्य अनुत्तरित प्रश्न।
नकदी, काले धन और बेनामी की व्यापकता को समझना
पिछले १५ वर्षों के दौरान जीडीपी की कुल व्यापकता और आकार की दृष्टि से भारत ने एक लंबी छलांग लगाई है। हमारी कमजोर प्रति व्यक्ति आय के बावजूद, हमारा सकल आकार अति विशाल है जो हमें विश्व के शीर्ष देशों में से एक बनाता है। हमने पहली बोधि में देखा था कैसे अवैध मुद्रा पूरी व्यवस्था में बहती है। उसपर बेनामी संपत्ति की एक परत चढ़ा दें तो जटिलता स्पष्ट हो जाएगी।चलिए, व्यवस्था की बारीकियों में जाएँ।
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- भारत - महत्वपूर्ण तथ्य, आंकड़े और संख्याएं
- जनसँख्या - १३३ करोड़ (१ .३३ बिलियन), जीडीपी सांकेतिक - $ २.२५ ५ ट्रिलियन - विश्व में सांतवा, जीडीपी पीपीपी - $ ८.७ ट्रिलियन - विश्व में तीसरा, जीडीपी वृद्धि दर - ७.६ %, प्रति व्यक्ति जीडीपी सांकेतिक - $ १७१८ (विश्व में १४० वां), प्रति व्यक्ति जीडीपी पीपीपी - $ ६६५८ (विश्व में १२२ वां), जीडीपी का ढांचा - सेवा क्षेत्र ५० % से अधिक, शेष उद्योग व कृषि, व्यापार सुगमता सूचकांक (Ease of Doing Business) - १३०, निर्यात - $ २७३ बिलियन, आयात - $ ४१० बिलियन, विदेशी मुद्रा भंडार - $ ३७० बिलियन (विश्व में आंठवा) अर्थव्यवस्था में नकद - १७.५४ लाख करोड़ रुपये, जिसमें से ८४ % ५०० रुपये और १००० रुपये के नोटों में (= रु.१५ लाख करोड़), मूल्य से अन्य सभी नोट १६% परंतु परिमाण से ५३%, संभावित गैर-कानूनी नकद - ८० % या अधिक
तो सरल शब्दों में क्या कहेंगे?
वर्ष २०१६ में भारत की जीडीपी = २.३ खरब डॉलर = २३०० अरब डॉलर। हम जानते हैं कि १ अरब डॉलर ६५०० करोड़ रुपये के बराबर हैं (वर्तमान में थोड़े ज़्यादा)। विभिन्न अध्ययन दिखाते हैं कि काले धन की अर्थव्यवस्था हमारी जीडीपी के लगभग २० प्रतिशत है (अधिक भी हो सकता है)। अतः, भारत में काले धन की अर्थव्यवस्था = ४६० अरब डॉलर (= ३० लाख करोड़ रुपये)। इतनी धनराशि ऐसे सौदों और लेनदेनों में घूम रही है जिसपर किसी प्रकार का कर नहीं दिया जाता है। यह वही धनराशि है जिसपर सरकार कर लगाना चाहती है और उसे अर्थव्यवस्था की मुख्यधारा में लाना चाहती है। और अब सितंबर २०१७ के पहले जीएसटी लागू करने की तैयारी भी है। जीएसटी पर हमारी विस्तृत बोधि यहाँ पढ़ें
इसमें से अधिकांश काला धन नकद के रूप में नहीं है। यह अचल संपत्ति (रियल एस्टेट) और स्वर्ण जैसी भौतिक परिसंपत्तियों में है। काले धन के धारक या तो परिसंपत्ति का स्वामित्व काल्पनिक नाम से दर्ज करा करेंगे या ऐसे व्यक्ति के नाम पर करेंगे जो परिसंपत्ति का वास्तविक स्वामी नहीं है। इसे बेनामी संपत्ति कहते हैं। वह प्रक्रिया जिससे अवैध धन जो विदेशों में भेजा जाता है, साफ-सुथरा कर आधिकारिक माध्यमों से वापस लाया जाता है, उसे धन-शोधन कहते हैं। बेनामी संपत्ति और स्वर्ण के सभी घरेलू धारक धन-शोधन के उदाहरण नहीं हैं। धन-शोधन वह गतिविधि है जिसके माध्यम से काले धन को वैध मुद्रा में परिवर्तित किया जाता है जिसके लिए लेयरिंग (परतें बनाना - काले धन के निर्माता और सरकार के बीच अनेक संस्थाओं को रखना), प्लेसमेंट (स्थानन - पहली बार अवैध मुद्रा को बैंक में रखना) और इंटीग्रेशन (समाकलन - साफ धन वापस मूल स्वामी के पास लाना) का उपयोग किया जाता है।
बेनामी संपत्ति विषय में
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- परिभाषा
- बेनामी, एक फारसी शब्द, जिसका अर्थ है ऐसी संपत्ति जिसका कोई नाम नहीं है। इस प्रकार के लेनदेन में जो व्यक्ति संपत्ति खरीदता है वह इसे अपने नाम पर नहीं खरीदता। जिस व्यक्ति के नाम पर संपत्ति खरीदी जाती है उसे बेनामदार कहते हैं, और इस प्रकार से खरीदी गई संपत्ति को बेनामी संपत्ति कहते हैं। जो व्यक्ति ऐसे सौदे का वित्तपोषण करता है वही इसका वास्तविक स्वामी होता है। यह संपत्ति धनराशि देने वाले व्यक्ति के प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष लाभ के लिए धारण की जाती है। अन्य शीर्षकों को क्लिक कर जानकारी पाएं
- बेनामी के लिए मानदंड
- जो संपत्ति निम्न मानदंडों पर खरी नहीं उतरती वह बेनामी है (क) जीवनसाथी या संतान के नाम पर धारण की गई संपत्ति जिसके लिए धनराशि का भुगतान आय के ज्ञात स्रोतों से किया गया है (ख) भाई, बहन या अन्य संबंधियों के साथ धारण की गई संयुक्त संपत्ति जिसके लिए धनराशि का भुगतान आय के ज्ञात स्त्रोतों से किया गया है (ग) न्यायिक या प्रत्ययी हैसियत से धारण की गई संपत्ति
- कानूनी प्रावधान (१९८८ और २०१६ के अधिनियम)
- बेनामी लेनदेन (निषेध अधिनियम) १९८८ का अधिनियमन संसद द्वारा किया गया था और यह १९ मई १९८८ से प्रभावशाली हुआ। इस अधिनियम में विद्यमान अनेक कमियों के कारणए अधिनियम को परिचालनात्मक बनाने के लिए आवश्यक नियम नहीं बनाए जा सके। इन कमियों को संबोधित करने के लिए, कई वर्षों बाद वर्ष २०११ में भारत सरकार ने बेनामी लेनदेन (निषेध विधेयक) 2011 लागू किया। जुलाई २०१६ में मोदी सरकार ने १९८८ के मूल अधिनियम को संशोधित करने का निर्णय लिया, जिसे संसद द्वारा बेनामी लेनदेन (निषेध संशोधन अधिनियम) 2016 रूप में पारित किया गया। यह अधिनियम १ नवंबर २०१६ से प्रभावशाली हो गया।
- प्रावधान
- नवीनतम बेनामी लेनदेन निषेध अधिनियम २०१६ के तहत, वित्तमंत्री द्वारा आश्वासन दिया गया था कि विशुद्ध धार्मिक न्यासों को शामिल नहीं किया जाएगा। नया कानून तीन वर्ष के कारावास या जुर्माना या दोनों की जगह सात वर्ष के कारावास और जुर्माने का प्रावधान करता है। परिसंपत्ति के निष्पक्ष मूल्य पर २५ प्रतिशत जुर्माना अधिरोपित किया जा सकता है। संपत्ति के संयुक्त स्वामित्व के मामले में करदाता को वित्तपोषण के स्रोत बताना अनिवार्य होगा। मूल अधिनियम यहाँ देख सकते हैं
- अधिनियम विवरण
- बेनामी लेनदेन वह होता है जिसमें संपत्ति किसी एक व्यक्ति के नाम से धारण की जाती है जबकि उसके क्रय के लिए धनराशि का भुगतान किसी अन्य व्यक्ति द्वारा किया जाता है। अतः कौन सा लेनदेन बेनामी नहीं है? मानदंड में उल्लिखित क, ख और ग का संदर्भ लें। किसी भी प्रकार की परिसंपत्तियां बेनामी लेनदेन की परिधि में शामिल की जा सकती हैं - चल / अचल संपत्ति, मूर्त या अमूर्त संपत्ति, कोई भी अधिकार या हित, या कानूनी दस्तावेज, स्वर्ण, वित्तीय प्रतिभूतियां इत्यादि।
- प्रभाव
- काले धन पर रोक लगाने के लिए कानून लाया गया। जिन लोगों के पास बेहिसाब आय है उन्हें अपना धन रखने के लिए कोई स्थान उपलब्ध नहीं होगा। यदि इसका क्रियान्वयन सफलतापूर्वक किया जाता है तो नकद के बाद सरकार द्वारा किया गया यह अंतिम आक्रमण होगा। यह ज्ञात तथ्य है की भारी संख्या में राजनेताओं और नौकरशाहों ने सभी प्रकार की बेनामी संपत्तियों में अपना काला धन रखा हुआ है।
- दस्तावेजी निशान
- काला धन वित्तीय बाजारों में निवेश क्यों नहीं किया जा सकता, इसका उत्तर सरल है।क्योंकि यह दस्तावेजी निशान छोड़ता है और व्यक्ति पकड़ा जा सकता है। विशेषज्ञों का सुझाव है कि भारत के रियल एस्टेट क्षेत्र का ३० प्रतिशत निधीयन काले धन के माध्यम से किया जाता है। परंतु शेष वैध है। प्राथमिक सौदे वैध धनराशि में हो सकते हैं जबकि द्वितीयक सौदे आमतौर पर वैध धनराशि के माध्यम से नहीं किये जाते हैं। इसीलिए प्रधानमंत्री ने बेनामी संपत्ति पर कार्रवाई करने की घोषणा की।
- नकद बनाम बेनामी
- विशेषज्ञों ने पहले ही कहा था कि यदि सिर्फ उच्च मूल्य के नोटों का विमुद्रीकरण ही में किया गया तो यह बेकार होगा। लोगों को तब राहत महसूस हुई होगी जब १३ नवंबर के अपने भाषण में प्रधानमंत्री ने काले धन के विरुद्ध अपनी लड़ाई के अगले चरण की घोषणा की, जब उन्होंने जानकारी २०१७ से बेनामी संपत्तियों पर आक्रमण करने की घोषणा की। अब यह काफी प्रभावशाली प्रतीत हो रहा है।
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काले धन पर जोरदार हमले के कुछ "अनभिप्रेत परिणाम" थे। अब लोग राशि को नकद रूप में रखना अधिक पसंद करते हैं और इसीलिए उन्होंने बैंकों पर अपनी निर्भरता को कम कर दिया है, जैसा कि रिकॉर्ड स्तर की न्यून जमा वृद्धि से दर्शाया गया है। यह अत्यंत हानिकारक है और यह सीधे जीडीपी वृद्धि दर को प्रभावित करेगा। वर्ष २०१४ के बाद भूमि और रियल एस्टेट की कीमतों में स्पष्ट गिरावट हुई है। स्वर्ण के प्रति आकर्षण बढ़ा है, साथ ही बैंकों की जमाराशियों और डेबिट कार्डों के उपयोग में गिरावट हुई है।
वर्ष २०१४ पश्चात अर्थव्यवस्था गतिकी
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- वर्ष २०१४ के बाद, काले धन पर बड़ी कार्रवाई शुरू हुई। इसके कारण लोगों को डर लगने लगा। लोग = औपचारिक क्षेत्र के साफ़-सुथरे नागरिक + भ्रष्ट नौकरशाह + भ्रष्ट राजनेता। नकद के प्रति इन लोगों की रूचि बढ़ी। साथ ही बैंकों की जमा बढाने के प्रति उनकी रूचि कम हुई। घटती जमा राशियों के कारण बैंकों को चलनिधि की कमी की समस्या का सामना करना पड़ा। उसी समय, रियल एस्टेट और जमीन की कीमतें कम होने लगीं। बैंकों को गैर-निष्पादित ऋणों की पुरानी समस्या थी, अतः वे सबसे बढ़िया ऋणग्रहिताओं (borrowers) के अतिरिक्त अन्य लोगों को ऋण देने से कतराने लगीं। इसके कारण लोगों को ऋण के लिए काले धन की अर्थव्यवस्था की ओर मुड़ना पड़ा। इसके कारण काले धन के बाजार में ब्याज दरों में काफी वृद्धि हुई। आरबीआई द्वारा नीतिगत दरों में १०० आधार अंकों (basis points) तक कमी करने के बावजूद भारत में ऋण पूँजी की औसत लागत में ३० आधार अंकों तक की वृद्धि हुई।
- इस प्रकार, विनिर्माण वृद्धि की दर, रोजगार वृद्धि इत्यादि सभी प्रभावित हुआ। सरकार को लगा होगा कि छोटे-मोटे इलाज के बजे महत्वपूर्ण शल्यचिकित्सा का यही उचित समय है। संपूर्ण परिदृश्य को समझने के लिए विमुद्रीकरण और बेनामी पर हमले को इसी परिप्रेक्ष्य में देखना चाहिए। दूसरी स्व-घोषणा योजना की 30 सितंबर को समाप्त हुई समय सीमा के बाद अब दो कानून एकसाथ काम करेंगे - बेनामी लेनदेन (निषेध) संशोधन अधिनियम, २०१६ और काला धन (अघोषित विदेशी आय एवं परिसंपत्ति) और कर अधिरोपण अधिनियम, २०१५। हलके-फुल्के तरीके से देखें, तो इस हलचल के बाद सरकारी नौकरियों का आकर्षण कम हो जाएगा! लाखों उम्मीदवार सरकारी नौकरी के लिए परीक्षा लिखने के बजाय निजी क्षेत्र के उद्यमी बनने की कतार में लग सकते हैं।
हम अक्सर सरकार की यह दुखभरी गाथा सुनते आये हैं कि किस प्रकार वास्तविक करदाताओं में से महज 5% प्रतिशत करदाता ही ईमानदारी से करों का भुगतान करते हैं। और किस प्रकार इसके कारण राजकोषीय स्वतंत्रता में बाधाएं उत्पन्न होती हैं।
लोग करों का भुगतान क्यों नहीं करते हैं - भारत बनाम पश्चिमी देश
एक समय रघुराम राजन नाम के एक आरबीआई गवर्नर हुआ करते थे। वर्ष २०१४ में उनसे विमुद्रीकरण पर प्रश्न पूछे गए थे।
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- वर्ष २०१४ में विमुद्रीकरण पर रघुराम राजन का रुख : "पूर्व में काले धन को चलन से बाहर करने के लिए विमुद्रीकरण के उपाय पर विचार किया गया था। दुर्भाग्य से, चालाक लोग इसमें से मार्ग निकाल लेते हैं। वे अपने धन संग्रह को छोटे-छोटे टुकड़ों में विभाजित करने जैसे उपाय कर लेते हैं। हमें ऐसे लोग भी मिलते हैं जो यदि अपने काले धन को सफ़ेद करने के कोई मार्ग नहीं ढूंढ पाते है तो उसे किसी मंदिर के दानपात्र में फेंक देते हैं। निश्चित रूप से इसमें से काफी मात्रा स्वर्ण के रूप में हो सकती है, अतः उन्हें पकड़ना और भी अधिक कठिन हो जाता है। मैं काला धन निर्मित करने और उसे बनाये रखने के उत्प्रेरकों पर अधिक ध्यान केंद्रित करूंगा। इनमें से अनेक रियायतें करों में ही हैं। वर्तमान में देश की कर दरें यथोचित हैं।
- उच्च आय पर अधिकतम कर की दर ३३ प्रतिशत है, जबकि अमेरिका में यह पहले से ही 39 प्रतिशत और राज्य के कर इत्यादि है, जो इसे ५० प्रतिशत के स्तर तक ले जाती हैं। वास्तव में हम अनेक औद्योगिक देशों से न्यून स्तर पर हैं। यह देखते हुए कि ऐसा कोई कारण नहीं है कि जिन्हें कर का भुगतान करना चाहिए वे भुगतान नहीं कर रहे हैं। कौन सा धन घोषित नहीं हो रहा है, उसकी तह तक पहुँचने के लिए मैं आंकड़ों को खंगालने और बेहतर कर प्रशासन पर अपना ध्यान अधिक केंद्रित करूंगा। मेरा मानना है कि इस आधुनिक अर्थव्यवस्था में अपने धन को आसानी से छिपाना काफी कठिन काम है।"
अतः बहस इस बात पर है कि विमुद्रीकरण के बजाय मजबूत कर प्रशासन होना आवश्यक है। यहाँ तीन महत्वपूर्ण अवलोकन हैं :
- आय के अतिरिक्त अन्य सभी चीजों पर भारत में अधिक कर अधिरोपित किया जाता है, कई बार तो 50 प्रतिशत से भी अधिक। पेट्रोल और डीजल पर १५० प्रतिशत से अधिक कर है (केन्द्रीय और राज्य के कर)। एक सामान्य मध्यम-वर्गीय परिवार यदि कोई विलासितापूर्ण वस्तुएं प्राप्त करना चाहता है तो उसका बहिर्वाह आय से ५० प्रतिशत से भी अधिक है!
- दुर्भाग्य से, सार्वजनिक सेवाओं की भयावह स्थिति (स्वच्छ उद्यान, पुलिस सहायता, आपातकालीन सेवाएँ, निःशुल्क चिकित्सा सुविधा, अच्छी शिक्षा, सडकों की स्वच्छता, नागरिकों और महिलाओं की सुरक्षा इत्यादि) किसी भी ईमानदार नागरिक की दृष्टि से उपयुक्त नहीं है। भारत में ईमानदार होने का यही सबसे दुर्भाग्यपूर्ण सत्य है। साथ ही इसीलिए अधिकांश लोग जो करों का भुगतान नहीं करते हैं वे शिकायत भी नहीं करते हैं (जब कुछ बदलने वाला नहीं है तो शिकायत करने से क्या लाभ, और हमें परवाह नहीं है तो शिकायत किस बात की)
- कर देने के बाद आपकी बचत पर प्राप्त होने वाले प्रतिफल पर पुनः कर लगाया जाता है!
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- निष्कर्ष : भारत और पश्चिनी देशों के कर की सीधी तुलना त्रुटिपूर्ण है
- पश्चिमी देशों में सार्वजनिक उपयोगिताओंए सेवाओं और वस्तुओं का स्तर और उनकी गुणवत्ता हमसे कहीं अधिक श्रेष्ठ है, जो कर की दरों की किसी भी तुलना को बेकार बना देती है। एक ईमानदार भारतीय करदाता के लिए यह दोहरी मार है - कर का भुगतान करो और अपनी अधिकांश आय से हाथ धो बैठो - और फिर उस बची हुई आय से गुणवत्तापूर्ण वस्तुओं और सेवाओं के लिए भुगतान करो, जिसके परिणामस्वरूप अंत में आपके हाथ में कुछ भी शेष नहीं बचता। इस दुश्चक्र ने विशेष रूप से सरकार के प्रति, और सामान्य रूप से देश के प्रति, लोगों के विश्वास को प्रभावित कर दिया है
किन्तु सरकार सकल घरेलू उत्पाद (जी.डी.पी.) और करों के अनुपात से नाखुश है और ये तो २०१५-१६ के आर्थिक सर्वेक्षण में इस विषय पर एक पूर्ण खंड होने से साफ़ था। इस तालिका से साफ़ है कि ये भारत में सार्वजनिक सेवाओं और वस्तुओं की गुणवत्ता सुधारनी है, तो अधिक लोगों को कर देना ही होगा। सरकार अब कटिबद्ध दिख रही है।
इस बोधि में आगे, और अंतिम बोधि में विस्तार से, हम आर.बी.आई. के भण्डार में वृद्धि - जो कई लाख करोड़ रुपयों (काले धन) के बैंकों में पुनः नहीं आने से होगी - पर चर्चा करेंगे। ये बढे हुए भण्डार लाभांश के ज़रिये सरकार को वापस दिए जा सकते हैं, और बड़े जनहित कार्यक्रम चलाये जा सकते हैं।
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विमुद्रीकरण का अर्थव्यवस्था के विभिन्न वर्गों पर होने वाला प्रभाव
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- प्रत्यक्ष नकद अर्थव्यवस्था
- तत्काल सबसे अधिक प्रभावित ! लोगों की पैसा पास में रखने की सहजप्रवृत्ति में भारी कमी होगी। इस आदत पर निर्भर सभी क्षेत्रों में भी गतिविधि में कमी दिखाई देगी। रियल एस्टेट, भूमि क्रय, सोना खरीदने में कटौती होगी, यह जाहिर है। अधिक दुष्प्रभाव साहूकारों पर भी होगा, जिनमें से अधिकांश को स्थानीय नेताओं द्वारा निधीयन किया जाता है, जो ब्याज की बेतहाशा दरें वसूल करते हैं। रु.५०० और रु.१००० के विमुद्रीकरण से, कुल रु.१४.२ लाख करोड़ की चल मुद्रा प्रभावित हो गयी है। अन्य शीर्षकों को क्लिक कर जानकारी पाएं
- बैंकों की जमा दरें
- भारत के सार्वजनिक क्षेत्र की बैंकों की एक समस्या है ऊंची दरों पर उधार लेना (जमाकर्ताओं को जमा करने के लिए आकर्षित करने के लिए)। बैंकिंग व्यवस्था में आने वाले इस अप्रत्याशित लाखों करोड़ों के धन प्रवाह के साथ ही हमारी बैंकों से अधिक खुश और कोई नहीं होगा - हालाँकि आज की यह भारी भीड़ छंट जाने के बाद। जैसे ही उच्च लागत के उधार कम हो जाएंगे, बैंकें जमा पर कम दरें देने लगेंगी। हालाँकि अनेक विशेषज्ञ इस तर्क से असहमत हैं।
- शेयर बाजार (इक्विटी)
- जैसे ही बैंकों की जमा की दरें कम होंगी तो अब लोग शेयर बाजार में निवेश करना चाहेंगे (इक्विटी में और संभवतः ऋण में भी)। ऐसा इसलिए है क्योंकि काले धन की अर्थव्यवस्था के स्रोत नाटकीय ढंग से बंद हो रहे हैं (और अधिक तब जब २०१७ में बेनामी पर हमला होगा)। प्रारंभ में कुछ हद तक गिरने के बाद शीघ्र ही शेयर की कीमतों में उछाल देखा जा सकता है।
- बैंकों की ऋण प्रदाय गतिविधि
- अल्पकाल में, जब लोग अपने व्यक्तिगत नकद प्रवाह में परिवर्तन से जूझ रहे हैं, उनकी खरीदारी और व्यय की प्रवृत्ति का सभी खुदरा कंपनियों, सेवा प्रदाता कंपनियों और गैर-बैंकिंग वित्तीय संस्थाओं पर सीधा प्रभाव पड़ेगा। तब जबकि बैंकें इन क्षेत्रों को अधिक ऋण देने के लिए तैयार होंगी (उनके पास आने वाली इस विशाल चलनिधि के कारण) तब संभवतः ऋण चाहने वालों की पर्याप्त संख्या नहीं होगी! अतः जीडीपी वृद्धि दरें प्रभावित होंगी। कैंसर का इलाज कभी भी आसान कहाँ होता है।
- मौजूदा अव्यवहार्य (unviable) परियोजनाएं
- ब्याज दरों में इस कमी के कारण जो परियोजनाएं अब तक अव्यवहार्य होने के कारण रुकी पड़ी हैं, वे अचानक व्यवहार्य हो जाएंगी (ऐसा मानते हुए कि अन्य बातें भी साथ-साथ होंगी)। इसके कारण अगले एक या दो वर्षों में व्यवस्था में सकारात्मक भावनाएं निर्मित होंगी। यह घटना उपरोल्लिखित के विपरीत है (बैंकों की ऋण प्रदाय गतिविधि)।
- जीडीपी वृद्धि दरें
- निश्चित ही अल्पकाल में (अगली २ या ३ तिमाहियों में) लोगों की व्यय की प्रवृत्ति में होने वाले परिवर्तन और उसके परिणामो के कारण औपचारिक जीडीपी वृद्धि दरों पर विपरीत प्रभाव पड़ेगा। परंतु सरकार शासकीय परियोजना में निवेश के स्तरों में वृद्धि करके इसे संतुलित कर सकती है। सागरमाला जैसी विशाल योजनाओं को इसके लिए प्रभावी रूप से इस्तेमाल किया जा सकता है। ये पूँजी आर.बी.आई. से आ सकती है। आगे पढ़ें कैसे
- आर.बी.आई. की नीतिगत दरें
- आरबीआई इस घटे हुए विमुद्रीकरण को अपनी नीतिगत दरों में और अधिक कटौती के लिए उपयोग कर सकती है। अतः ब्याज की दरें कम होने की संभावना है। ये सभी अनुमान धरे रह गए जब मौद्रिक नीति समिति (Monetary Policy Committee) ने ०७ दिसंबर २०१६ को अपनी समीक्षा के बाद नीतिगत दरों को ६.२५ % पर यथावत रखने की घोषणा की। अतः, अब नकदी बाजार से गायब हो गयी है चूंकि पुनर्मुद्रीकरण धीमी गति से चल रहा है, और नीतिगत दरें (रेपो रेट्स) कम नहीं की गयी हैं।
- आर.बी.आई. की देयताएं
- आज ५०० और १००० के नोटों से मिलकर बना कुल रु.१५ लाख करोड़ का एक हिस्सा कभी बैंकों में वापस नहीं आने वाला (काला धन जो ठहरा!)। अतः, आर.बी.आई. की देयताएं उतने से घट जाएंगी ("मैं धारक को ... आदि")। उसके भंडार बढ़ जायेंगे। उसका क्या होगा? उसे लाभांश आदि के ज़रिये केंद्र सरकार को पुनः वापिस दिया जा सकेगा। सरकार इस भारी रकम से बड़े प्रोजेक्ट्स ला सकती है। ये श्री मोदी के लिए लंबे समय तक लाभकारी हो सकता है। ०७ दिसंबर २०१६ को, नोटबंदी फैसले के ठीक एक महीने बाद, रिज़र्व बैंक गवर्नर ने इस धारणा को ख़ारिज करते हुए साफ़ कर दिया कि चाहे जितने ही नोट वापस आएं या न आएं, "आर.बी.आई. की देयताओं पर फर्क नहीं पड़ने वाला"!
- सरकार का कर राजस्व
- करोड़ों नए करदाताओं के अचानक प्रवेश के साथ सरकार के कर राजस्व में नाटकीय रूप से वृद्धि हो सकती है ! इसे जीएसटी के साथ जोड़कर देखें; ऐसा लगेगा कि हम एक नए भारत को देख रहे हैं, जो बीते कल के भारत से बहुत अलग प्रतीत होगा।
- राजनीतिक निधीयन और चुनाव
- इसपर फ़िलहाल एक बड़ा प्रश्नचिन्ह है। इस क्षेत्र में प्रमुख सुधार किये जाते हैं तो वे आने वाले वर्षों में भारतीय सार्वजनिक जीवन को पूरी तरह से परिवर्तित कर देंगे। परंतु यह मार्ग चुनना सबसे कठिन काम होगा। टी.एम.सी. या बी.एस.पी. को आइना दिखने के अलावा, भाजपा के पास एक ऐतिहासिक मौका है कि पारदर्शी चेक-आधारित फंडिंग या राज्य द्वारा फंडिंग हेतु कदम उठाये जाएं। भ्रष्टाचार के ताबूत में इस आखिरी कील के साथ ही भारत माता चैन की सांस ले सकेंगी।
तो अब पीछे मुड़कर देखें तो लगता है कि क्या मोदीजी ने अंतिम कदम तक की योजना तैयार कर रखी है? यदि नहीं, तो इस कड़वी दवाई से उत्पन्न झटकों के प्रभाव से पार्टी को उभरने में बेहद कठिनाई हो सकती है। यदि हाँ, और व्यवस्था ने यदि उसे सही ढंग से क्रियान्वयित कर दिया, तो एक परिवर्तनकारी नेता के रूप में वे इतिहास में जाने जायेंगे।
मोदी के विमुद्रीकरण कदम की आलोचना
आपकी आलोचना का स्वर, तीव्रता और रंग इस बात पर निर्भर होगी कि आप किस राजनीतिक दल से संबंध रखते हैं और जब इस सुनामी (या परमाणु विस्फोट) का आक्रमण हुआ तब आप कहाँ खड़े थे। परंतु व्यापक दृष्टि से देखा जाये तो आलोचक इस बात पर एकमत हैं कि मोदी को केवल विमुद्रिकरण का झटका देकर छोड़ना नहीं चाहिए। क्योंकि यदि ऐसा होता है तो नागरिक जिस कष्ट का सामना कर रहे हैं वह सब बेकार हो जाएगा। ये रही अनेकों आलोचनाओं की एक सूची
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- तकनीकी आलोचना
- आलोचकों का कहना है कि मोदी ने आर्थिक रुख अपनाने के बजाय राष्ट्र भक्ति का रुख अपनाया है "देश के विकास के इतिहास में एक समय ऐसा आता है जब एक अधिक कठोर और निर्णायक कदम उठाना आवश्यक हो जाता है।" मोदी ने सामान्य जनता से कुछ दिन तक परेशानी झेलने का अनुरोध किया है। आलोचकों का कहना है कि यदि यही उनकी योजना है तो वे गलत हो सकते हैं। क्यों? दिसंबर १९९८ में यशवंत सिन्हा (भाजपा की वाजपेयी सरकार के वित्तमंत्री) जनवरी १९७८ के कानून में संशोधन के लिए उच्च मूल्य बैंक नोट (विमुद्रीकरण) संशोधन विधेयक, १९९८ लेकर आये थे। यह वही अधिनियम था जिसके तहत जनता पार्टी सरकार (मोरारजी देसाई की) ने १००० रु, ५००० रु और १०००० रु के नोटों का विमुद्रीकरण किया था ! सिन्हा आर.बी.आई. द्वारा १९९४ में की गई सिफारिश के अनुसार १००० रुपये के नोट पुनः शुरू करना चाहते थे। उस समय सिन्हा ने कहा था नरसिंहराव के नेतृत्व में कांग्रेस पार्टी ने १९९४ में निर्णय लिया था कि १००० रुपये के नोट फिर से छापे जाएं परंतु वे इस प्रक्रिया को पूर्ण नहीं कर पाए। इस विचार को अगली यूनाइटेड फ्रंट सरकार ने पुनर्जीवित कियाए परंतु वे भी ऐसा नहीं कर सके। सबसे महत्वपूर्ण यह है कि सिन्हा ने कहा था उन्हें विश्वास था कि अवैध लेनदेन की जड़ उच्च मूल्य के नोटों में नहीं है बल्कि यह अन्यत्र कहीं है। अन्य शीर्षकों को क्लिक कर जानकारी पाएं
- अपूर्ण कदम
- आलोचक याद दिलाते हैं कि सिन्हा ने कहा था उन्हें विश्वास था कि अवैध लेनदेन की जड़ उच्च मूल्य के नोटों में नहीं है बल्कि यह अन्यत्र कहीं है। १३ नवंबर २०१६ के रविवार को प्रधानमंत्री मोदी ने संक्षेप में यही घोषणा की, जिसके कारण उन लोगों को राहत महसूस हुई जिन्हें लगता था कि उन्हें गलत सलाह दी गई थी और यह वर्तमान परेशानी पूरी तरह से बेकार है। कुछ राजनीतिक दल उन्हें सीधे तौर पर नकद अर्थव्यवस्था को पूरी तरह से ठप्प कर आमजन, किसान और दिहाड़ी मजदूरों को त्रस्त कर दिया है। चूंकि वक्त रहते सारे ए.टी.एम. कॉन्फ़िगर नहीं हो सके, समस्या बहुत विकराल दिखने लगी। भारत में कुल १,०३,२८२ ऑन-साइट और ९८,५७९ ऑफ-साइट ए.टी.एम. मशीनें, अर्थात कुल २,०१,८६१ ए.टी.एम. मशीनें हैं (आर.बी.आई. जुलाई २०१६)। हर ए.टी.एम. में तीन कार्ट्रिज होते हैं, रु.१००, रु.५०० और रु.१००० के लिए एक एक।
- नई काली अर्थव्यवस्था का जन्म?
- मीडिया समूह www.thewire.in ने रोचक निष्कर्ष निकाला है कि "जाने - अनजाने में मोदी सरकार ने देश को सोवियत युग में धकेल दिया है। कुछ हज़ार रुपयों के लिए पूरा देश एटीएम के सामने खड़ा है। भारतीय बैंकिंग की कमियां तैयारी के अभाव से खुलकर सामने आ गयी हैं। २१७ अरब डॉलरों की मुद्रा (कुल चलन में मुद्रा का ८६%) के बाहर हो जाने से, बाजार सूने पड़े हैं और आर्थिक गतिविधियां न्यून हो चुकी हैं। यदि ये सब कुछ समय और चलता रहा, तो एक समानान्तर काली अर्थव्यवस्था जो विमुद्रित नोटों पर टिकी होगी, उठ खड़ी होगी। ये तो वर्तमान काली अर्थव्यवस्था से अधिक गंभीर स्थिति होगी। लोग आपस में बंद पड़ चुके नोटों की अदला-बदली करते रहे, तो वो एक स्थायी चरित्र बन सकता है।" स्रोत यहाँ
- नागरिक शिकायतें
- सरकार ने कोई वैकल्पिक व्यवस्था किये बिना हमारी नकद धनराशि को बेकार बना दिया है। डर के कारण दुकानदार या वस्तुएं और सेवाएँ प्रदान करने वाले चेक स्वीकार नहीं कर रहे हैं। क्रेडिट कार्ड्स का वार्षिक शुल्क होता है, और अधिकांश बैंकें विवरण-पत्र समय से नहीं भेजती हैं और क्रेडिट कार्ड धारकों को विलंबित भुगतान के लिए २४ प्रतिशत के ब्याज का भुगतान करना पड़ता है। यहाँ तक कि क्रेडिट कार्ड स्वीकार करने के लिए दुकानदार भी २४ प्रतिशत अतिरिक्त वसूल करते हैं। यदि डेबिट कार्ड का उपयोग किया जाता है तो प्रत्येक लेनदेन के लिए शुल्क देना पड़ता है। भुगतान करने के अन्य पोर्टल भी हैं परंतु वे भी सेवा शुल्क लेते हैं। इस प्रकार, वैकल्पिक साधन ऐसे हैं जिसके लिए अधिक पैसा देना पड़ता है और अनावश्यक खर्चा करना पड़ता है।
- स्थानीय धन-शोधन बदस्तूर जारी?
- लगातार शिकायतें मिल रही हैं कि काले धन के कुबेर अपने अब व्यर्थ हो चुके बंडलों को सक्रियता से जन-धन अकाउन्टों में भोले-भाले गरीबों (अथवा उनके अपने सहयोगियों) के जरिये जमा करवा रहे हैं, और सहकारी साख संस्थाओं सहित अनेक तरीकों से घरेलू स्तर पर ही सफ़ेद बनाने में जुटे हैं। इससे शुरूआती झटके का असर बहुत कम हो जायेगा। म.प्र. से एक चौंकाने वाली की खबर आगे है
- पी.चिदंबरम ने २००५ में प्रयास किया था
- ये तो सच है कि केवल वर्तमान सरकार ने ही इस दिशा में नहीं सोचा है। पूर्व वित्तमंत्री पी.चिदंबरम ने २००५ में दो क्रांतिकारी कदम सुझाये थे - प्रतिदिन रु.१०,००० या अधिक पर निकासी कर (withdrawal tax), और स्त्रोत पर कर से मुक्त ब्याजधारक खातों की जानकारी बैंकों द्वारा सरकार को देना। एक कमज़ोर प्रधानमंत्री, और बुद्धिजीवियों, मीडिया और राजनीतिक दलों द्वारा भीषण विरोध के चलते ये दोनों लागू नहीं किये जा सके। कई लोग कहते हैं कि यदि तब कर-अपवंचन पर लगाम कस दी गयी होती, तो आज ये करने की आवश्यकता नहीं पड़ती! कई इसे बिलकुल गलत ठहराते है।
- भटकाने की नीति
- और अंत में, सबसे कटु आलोचक एक आश्चर्यजनक दावा कर रहे हैं कि सरकार के पास इस नाटकीय हमले को करने के अलावा कोई चारा नहीं था। इससे वह एक तीर से अनेक शिकार करने चली है, क्योंकि जनता को किये वादे पूरे होते दिख नहीं रहे थे, और न ही अच्छे दिन आते दिख रहे हैं क्योंकि नौकरियां, नियोजन और विनिर्माण की वृद्धि दर कम है।
ऐसा नहीं है कि सरकार बैठ कर सिर्फ देख रही है - लगातार प्रक्रियात्मक परिवर्तन किये जा रहे हैं।१७-११-२०१६ को घोषित ये रहे कुछ नए सकारात्मक नियम जो तनाव कम करेंगे
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- रबी मौसम में किसान
- १. रबी मौसम में किसानों की मदद हेतु अब प्रति सप्ताह रु.२५,००० तक निकाले जा सकेंगे, किन्तु कृषि उत्पाद का भुगतान उन्हें चेक या आर.टी.जी.एस. से लेना होगा।
- फसल बीमा प्रीमियम अवधि
- २. फसल बीमा प्रीमियम चुकाने की सीमा १५ दिनों से और बढ़ा दी गयी है।
- मंडी व्यापारियों की सीमा बढ़ी
- ३. अपनी श्रमिक लागत चुकाने हेतु मंडियों में पंजीकृत ब्रोकर्स (आढ़तिये) प्रति सप्ताह रु.५०,००० निकाल सकेंगे। किन्तु किसानों और ब्रोकर्स के अकाउंट के.वाय.सी. होने चाहिए।
- सुखी विवाह
- ४. किसी शादी समारोह वाले परिवार में पिता या माता एक बार में रु.२.५ लाख निकाल पाएंगे। शादी मुबारक!
- बदलाव मात्रा घाटी
- ५. इस अतिरिक्त प्रवाह को संतुलित करने हेतु, अब काउंटर पर पुराने ५००/१००० के नोटों को बदलने की सीमा केवल रु.२००० कर दी गयी है।
और उसके पश्चात आई देशभर में बैंक शाखाओं, कुछ आरबीआई अफसरों, निजी व्यवसायों, वकीलों, कर लेखाकारों आदि पर एक छापेमारी की लहर जो आयकर विभाग (IT) और प्रवर्तन निदेशालय (ED) ने चलायी। सरकार का प्रयास रहा कि लोगों के उस भय को कम किया जाये कि एक बड़े फैसले को काले धन के कुबेरों ने प्रभावहीन कर दिया है.
हमें वर्तमान सरकार की संपूर्ण योजना को एक बार फिर से देखने की आवश्यकता है - अवैध विदेशी बैंक खातों को खोजने के लिए विशेष जाँच दल (एसआईटी) का गठन, बैंक खातों के सार्वभौमिकीकरण को विशाल पैमाने पर बढ़ावा देना (जन-धन खाता), लेनदेन में आधार के उपयोग को बढ़ावा देना और जैम त्रयी (JAM Trinity) का निर्माण, नकद-विहीन अर्थव्यवस्था के विचार को आगे बढ़ाना, भुगतान बैंकों के लिए नए लाइसेंस, इंडिया स्टैक (प्रौद्योगिकी) पर निर्मित एकीकृत भुगतान अंतराफलक (यूपीआई) को गंभीरता से आगे बढ़ाया, काला धन रखने वालों को साफ होने के लिए दिए गए दो अनुकूल अवसर, जिसके साथ चेतावनी भी दी गई थी (वर्ष २०१४ और सितंबर २०१६), ८ नवंबर २०१६ को उच्च मूल्य के नोटों का विमुद्रीकरण।
अभी ऐसा लगता है कि प्रधानमंत्री ने यह कदम पार्टी से ऊपर उठकर देश हित में उठाया है। इसे तार्किक अंत तक ले जाना अनिवार्य है।
समय बीतता जा रहा है। विमुद्रीकरण के एक महीने पश्चात, विपक्षी दलों ने संसद में ०८ दिसंबर को एक काला दिवस मनाया।
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वाक् युद्ध
विमुद्रीकरण के आलोचक क्रोधित हैं क्योंकि उन्हें तैयारी करने (काले को सफ़ेद करने) के लिए वक़्त नहीं मिला! - नरेंद्र मोदी, प्रधानमंत्री
नोटबंदी से अर्थव्यवस्था पर निकट भविष्य में असर पड़ेगा - कॉर्पोरेट जगत, भारत
नोटबंदी ने मुम्बई में अपराध दर कम कर दी है - रक्षामंत्री मनोहर पर्रिकर
काले धन और भ्रष्टाचार को खत्म करने हेतु ये साहसिक कदम है। मुझे गर्व है मेरे प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी हैं - अमर सिंह, समाजवादी पार्टी
विमुद्रीकरण संगठित लूट है - मनमोहन सिंह, पूर्व प्रधानमंत्री
आर्थिक नीति ऐसे बनाएं कि वृद्धि दर पर असर न पड़े - मनमोहन सिंह, पूर्व प्रधानमंत्री
जिनके रहते सबसे बड़े घोटाले हुए वे हमें हमारी ज़िम्मेदारी न बताएं - वित्तमंत्री अरुण जेटली
ये जीवन में एक बार होने वाली घटना है. इसे गुप्त बनाये रखने हेतु हम पूरी तैयारी नहीं कर सके किन्तु हमारा प्रयास है कि सभी ईमानदार नागरिकों की तकलीफ हम दूर कर सकें - उर्जित पटेल, गवर्नर, भारतीय रिज़र्व बैंक
ये तकनीकी रूप से विमुद्रीकरण नहीं बल्कि "गैर-वैधीकरण" है. इसका दीर्घावधि में तो अच्छा असर रहेगा, किन्तु अल्पावधि में पीड़ा हो सकती है - डी. सुब्बाराव, भूतपूर्व आर.बी.आई. गवर्नर
मोदी की विमुद्रीकरण नीति एक बेहद साहसिक कदम है - चीनी मीडिया
भारतीय नोटबंदी एक बेहद अधिक अतिरेकी कदम है - अशरफ वाथरा, गवर्नर, पाकिस्तान केंद्रीय बैंक
हम लोगों को हम तक न्याय पाने हेतु आने से नहीं रोक सकते - उच्चतम न्यायालय ने सरकार को कहा (जब सरकार ने नोटबंदी-विरोधी याचिकाओं को एक साथ बंच करने की गुज़ारिश की)
लोगों को झिझक तो हो रही है किन्तु प्लास्टिक मनी सुरक्षित है - राज्यवर्धन सिंह राठौर
एक डिजिटल अर्थव्यवस्था भ्रष्टाचार, नकली नोट और आतंकवाद का पोषण समाप्त कर सकती है - अमिताभ कान्त, सी.इ.ओ., नीति आयोग
सरकार कृपया दूरस्थ इलाकों के लोगों की चिकित्सा आवश्यकताओं के प्रति संवेदनशील रहे और प्राकृतिक आपदाओं जैसे प्रबंध करवाये - रतन टाटा, टाटा समूह
विमुद्रीकरण भारत के इतिहास का तीसरा सबसे बड़ा सुधार है - पहला था आर्थिक उदारीकरण और दूसरा वस्तु और सेवा कर अधिनियम - रतन टाटा, टाटा समूह
इस कदम से देश में वित्तीय आपातकाल और बर्बादी आ गयी है - ममता बनर्जी, तृणमूल कांग्रेस
ये नोटबंदी एक बड़ा ८ लाख करोड़ रुपयों का घोटाला है जो प्रधानमंत्री मोदी जी ने अपने रईस दोस्तों के बैंक कर्ज (एन.पी.ए.) माफ़ करवाने के लिए किया है; हम सारे दावे ख़ारिज करते हैं और जांच की मांग करते हैं - अरविन्द केजरीवाल, आम आदमी पार्टी
यदि इन्होने १० महीनों से तैयारी की थी, तो वे आज जनता को हो रही तकलीफों के लिए तैयार होते - मायावती, बसपा प्रमुख
जो प्रधानमंत्री मोदी के साथ उनके विमानों में चलते हैं, कार्यवाही उनके खिलाफ हो - राहुल गाँधी, कांग्रेस
ये एक कड़ा नहीं वरन मूर्खतापूर्ण निर्णय है. प्रधानमंत्री हंस रहे हैं, बढ़िया समय बिता रहे हैं, और जनता पीड़ा में है, मर रही है। पे टीएम का अर्थ हो गया है पे टू पी एम. उनके तर्क लगातार बदलते जा रहे हैं - राहुल गाँधी, कांग्रेस
किसी के राष्ट्रवाद को परखने का पैमाना हो गया है कि क्या आप सरकार से प्रश्न करते हैं? उनके नाम बताएं जिनके ऋण आपने माफ़ कर दिए हैं - आनंद शर्मा, कांग्रेस
इस बोधि को समाप्त करने से पहले, और इस विषय पर आपको तीसरे और अंतिम मुकाम पर लाते हुए, अतीत पर एक दृष्टिक्षेप :
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- भारत में विमुद्रीकरण का इतिहास
- ##chevron-right## पहला दौर ये १२ जनवरी १९४६ को हुआ था - रु.१००० के नोटों के लिए - और इसे उच्च मूल्य बैंक नोट (विमुद्रीकरण) अध्यादेश (ordinance) के द्वारा किया गया था, जिसका लक्ष्य था द्वितीय विश्व युद्ध के दौरान एकत्रित की गयी अवैध संपत्ति को नष्ट करना ##chevron-right## दूसरा दौर ये १६ जनवरी १९७८ को किया गया था - रु.१०० से बड़े सभी नोटों हेतु अर्थात रु. १०००, रु.५००० और रु.१०,००० के नोटों के लिए - और इसे उच्च मूल्य बैंक नोट (विमुद्रीकरण) अधिनियम के द्वारा किया गया था, जिसका लक्ष्य था तस्करों और माफिया द्वारा एकत्रित किये काले धन को नष्ट करना (रु.१००० के नोट २०००-०१ से पुनः आ गए) ##chevron-right## तीसरा दौर ये ०८ नवम्बर २०१६ की देर शाम लाया गया - रु. ५०० और रु.१००० के नोटों के लिए - और इसे स्वयं प्रधानमन्त्री मोदी ने दूरदर्शन पर प्रसारित सन्देश से लागू किया, और इसका घोषित लक्ष्य है भ्रष्टाचार, अवैध चुनावी फंडिंग, आतंकी फंडिंग आदि को नष्ट करना
१५-११-२०१६ को छपी मुखपृष्ठ की यह खबर वस्तु-स्थिति साफ़ तौर पर दिखाती है - सात दशकों का गणतंत्र ज़िंदाबाद! तो आप अपनी उँगलियों पर अमिट स्याही लगवाएं, तब इस खबर को देखें!
नीचे दी गई कमैंट्स थ्रेड में अपने विचार ज़रूर लिखियेगा (आप आसानी से हिंदी में भी लिख सकते हैं)। इससे हमें ये प्रोत्साहन मिलता है कि हमारी मेहनत आपके काम आ रही है, और इस बोधि में मूल्य संवर्धन भी होता रहता है।
[बोधि प्रश्न हल करें ##pencil##]
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- बोधि कडियां (गहन अध्ययन हेतु; सावधान: कुछ लिंक्स बाहरी हैं, कुछ बड़े पीडीएफ)
- ##chevron-right## कृषि आय पर एक चौंकाने-वाला दावा यहाँ ##chevron-right## पिछली सरकारों की विमुद्रीकरण से मिले सबक यहाँ ##chevron-right## सरकार ने नकदी वितरण हेतु कार्य दल बनाया यहाँ ##chevron-right## विमुद्रीकरण का असर यहाँ ##chevron-right## २००५ में वित्तमंत्री पी.चिदंबरम भी दूरदृष्टा थे यहाँ ##chevron-right## एक नई काली अर्थव्यवस्था बनने का खतरा? यहाँ ##chevron-right## सभी कर समाप्त करें, अर्थक्रांति की मांग यहाँ ##chevron-right## ममता बनर्जी ने धरना आयोजित किया यहाँ ##chevron-right## जनधन योजना में अचानक बढ़ी जमा राशि पर सरकार की नजर यहाँ ##chevron-right## पूर्व प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह ने आलोचना की यहाँ ##chevron-right## रतन टाटा ने मोदी सरकार को विमुद्रीकरण पर चेताया यहाँ ##chevron-right## उच्चतम न्यायालय ने कहा - मोदी के खिलाफ घूस के सबूत शून्य हैं यहाँ ##chevron-right## मौद्रिक नीति में नहीं मिली कोई राहत यहाँ
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