विमुद्रीकरण और काला धन - बोधि १

प्रधानमंत्री मोदी और उनकी बड़ी घोषणा  मोदी सरकार द्वारा ०८ नवंबर २०१६  की शाम घोषित विमुद्रीकरण के निर्णय ने इस मुद्दे को केंद्र में ला...


प्रधानमंत्री मोदी और उनकी बड़ी घोषणा 


मोदी सरकार द्वारा ०८ नवंबर २०१६  की शाम घोषित विमुद्रीकरण के निर्णय ने इस मुद्दे को केंद्र में लाकर खड़ा कर दिया है। इस बोधि लेख से शुरू करते हुए अगले तीन बोधियों की श्रृंखला में हम काले धन के संपूर्ण मुद्दे का पूर्णता से विश्लेषण करेंगे, ताकि आपको इस तकनीकी विषय का वस्तुनिष्ठ दृष्टिकोण प्रस्तुत कर सकें।जैसे-जैसे परेशान नागरिकों की भीड़ देश भर में नई व्यवस्था से जूझ रही है, भविष्य को लेकर कई रोचक प्रश्न उठ खड़े हुए हैं।

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    • विमुद्रीकरण और काला धन - तीन भागों में बोधि बूस्टर विश्लेषण 
      • बोधि १ - काले धन की संकल्पना, विमुद्रीकरण का इतिहास, भारत - नकदी - भ्रष्टाचार, अपवित्र गठजोड़, वैश्विक स्थिति, श्री मोदी की चरणबद्ध रणनीति बोधि  - मौद्रिक व्यवस्था की संरचना, धन-शोधन, सकल घरेलू उत्पाद में कर, मुद्रास्फीति और विनिमय दरें, कानूनी प्रावधान, अनुत्तरित प्रश्न बोधि ३ - अपूर्ण कार्यसूची, विमुद्रीकरण के पश्चात क्या, नागरिकों की भूमिका, समग्र परिवर्तन आवश्यक
प्रस्तावना
किसी भी स्वस्थ अर्थव्यवस्था के लिए, वैध मुद्रा का प्रवाह सुनिश्चित करना आवश्यक है, ताकि इसका उपयोग नागरिकों द्वारा उनकी विविध दैनंदिन गतिविधियों के लिए किया जा सके। जैसे-जैसे साक्षरता और शिक्षा का स्तर बढ़ता जाता है, वैसे-वैसे अधिकांश नागरिक ऑनलाइन या प्लास्टिक लेनदेनों की ओर बढ़ सकते हैं जैसा कि हमनें यूरोप और अन्यत्र देशों में देखा है। वास्तव में संपूर्ण मौद्रिक व्यवस्था में चलनगत मुद्रा का हिस्सा बहुत ही अल्प होता है, परंतु एक सामान्य नागरिक के लिए यह एक सुचारू दैनंदिन जीवन के लिए महत्वपूर्ण होता है! [अंग्रेजी में पढ़ना है? यहाँ आएं!]

भारत जैसे विकासशील देशों में जहाँ बड़े पैमाने पर विविध निकायों के लिए नियमित रूप से होने वाले चुनावों के ईमानदार, और पारदर्शी वित्तपोषण जैसे प्रमुख मुद्दों पर कोई ठोस उपाय नहीं किये गए हैं, वहां बड़े करेंसी नोट स्वरुप में धन भ्रष्टाचार का सुव्यवस्थित और संस्थागत मार्ग होता है, जो संपूर्ण व्यवस्था को जड़ से खोखला कर देता है। इसकी विशालता और नियमितता के कारण यह सरकार के अंदर और दैनंदिन जीवन में शून्य-भ्रष्टाचार के अधिकांश अन्य उपायों को एक मजाक बना देता है। और चुनाव के वित्तपोषण में भ्रष्टाचार के विशाल द्वार खुले होने के कारण अन्य बुराइयाँ भी प्रवेश करती हैं जैसे कर अपवंचन, वित्तीय अपराध, आतंकवाद का वित्तपोषण, मादक पदार्थों का व्यापार, अंडरवर्ल्ड गतिविधियाँ, और अन्य।

सामाजिक मीडिया के माध्यम से ऑनलाइन जागरूकता और वर्ष २००५ के बाद संचार मीडिया के प्रसार के साथ अधिकांश भारतीय नागरिक, पारदर्शी शासन और उच्च गुणवत्ता का जीवन प्रदान करने के लिए निर्माण किये गए लगभग सभी संस्थागत तंत्रों की भारी गिरावट से बारीकी से वाकिफ हो गए हैं। राजनीतिक भ्रष्टाचार के माध्यम से मौद्रिक अवसरों को झपटने की प्रवृत्ति पर क्रोध काफी बढ़ा है। अब भारतीय नागरिक अपने   राजनीतिज्ञों को अपार धन एकत्रित करते हुए चुपचाप देखते रहना चाहते हैं, अनेकानेक न्यायालयीन निर्णय और आम आदमी पार्टी जैसी राजनीतिक विचारधारों का जन्म इसके प्रमाण हैं। दुर्भाग्य से, इस विषय पर होने वाली बहस इतनी ध्रुवीकृत हो गई है कि कोई भी गुट दूसरे के दृष्टिकोण को सुनने के लिए भी तैयार नहीं है, यह कोई स्वस्थ संकेत नहीं है। अतः काले धन को समाप्त करना एक राजनीतिक मुद्दा बन गया है, और किसी भी नेता के लिए जो इसे समाप्त कर देने हेतु प्रतिबद्ध दिखे, उसे बड़ा चुनावी इनाम मिलना तय है। और एक आधुनिकता का लबादा भी है - कैशलेस बनें, डिजिटल बनें, आधुनिक कहलाएं! और अब सितंबर २०१७ के पहले जीएसटी लागू करने की तैयारी भी है। जीएसटी पर हमारी बोधि यहाँ पढ़ें

धन, काला धन, विमुद्रीकरण 


अन्य किसी से भी पहले, धन (पैसा) ही एक जटिल समाज में रहने वाले लोगों के एक-दूसरों पर विश्वास की अभिव्यक्ति और कानून के राज के प्रति आस्था का परिचायक है। यह कायम करता है कि पैसा ही मूल्य का सामान्य संग्रह है, विनिमय का साधन है, और मापन का पैमाना है। पैसा, सब कुछ एक समान पैमाने पर लाकर अन्य बातों को आसान बना देता है। दार्शनिकों ने तो कहा भी है कि पैसा ही सभी बुराइयों की जड़ है - दरअसल इच्छाएं हैं!

कोई भी वित्तीय लेनदेन जो कर अपवंचन के उद्देश्य से अधिकारियों की परिधि से बाहर रखा गया है काला धन कहलाता है। इसका उपयोग केवल अधिक बचत के उद्देश्य से अपनी आय को छिपाना हो सकता है, या आतंकवाद, मानव तस्करी, मादक पदार्थों की तस्करी, भ्रष्टाचार और वित्तीय अपराधों के लिए किया जा सकता है। ये ही वे कारण हैं जो काले धन को खतरनाक बनाते हैं, और सबसे भ्रष्ट राजनेता भी इस बहुमुखी दानव का ये चेहरा पहचानता है। काला धन अनैतिक हो सकता है (सही तरीकों से कमाया गया पर सरकार से छुपाया गया) या फिर मलिन (गन्दा) हो सकता है (अपराधों से कमाया गया)। ध्यान रहे कि बहुत सा 'काला' धन अनैतिक न होते हुए आवश्यकता-आधारित होता है जैसा कि भारत भर की माताओं और पत्नियों के द्वारा एकत्रित नगदी के सूक्ष्म भण्डार सिद्ध करते हैं।

विमुद्रीकरण वह कानूनी प्रक्रिया है जिससे मौजूद किसी करेंसी नोट को अमान्य घोषित, उसी मूल्य के अथवा भिन्न के नोटों से प्रतिस्थापित किया जाता है। ये एक शॉक थेरेपी (झटके से किया इलाज) होती है जिसका लक्ष्य होता है अवैध मुद्रा का विनाश (जो वैध संपत्ति नहीं होती), और ईमानदार करदाता नागरिकों के भरोसे का पुनर्प्रतिस्थापन। भारत ने विमुद्रीकरण का अनुभव १९४६ में, फिर १९७८ में और फिर २०१६ में लिया है। किन्तु आज के १३२ करोड़ से ज्यादा आबादी वाले भारत में हुए विमुद्रीकरण के तुरंत बाद की स्थिति से स्पष्ट है कि एटीएम ऑपरेशन्स को योजनाबद्ध ढंग से प्रबंधित नहीं किया गया। किन्तु असली खतरा ये भी नहीं है - वो तो तब उभरेगा जब ये नए-जन्मे करोड़ों करदाता सफ़ेद अर्थव्यवस्था का अचानक से हिस्सा बनेंगे - अपनी गाढ़ी खून-पसीने की कमाई से कर अदा करने के बाद - और फिर है से सभी सरकारी मंत्रालयों और विभागों से, केंद्रीय और राज्य-स्तरीय, अच्छी सेवाओं की अपेक्षा लगा बैठेंगे। क्या हम किसी भी दृष्टि से, सरकारी कार्यों में ऐसी कार्य-कुशलता क्रांति के समीप भी हैं? 

भारत सहित अधिकांश देशों में नकदी का महत्त्व कम हो रहा है, परंतु यह अत्यंत धीमी गति से हो रहा है और एक विशिष्ट आय के स्तर के नीचे रहने वाले अधिकांश भारतीयों के लिए ऐसा नहीं हो रहा है, और निम्न या मध्यम आय समाज में रहने वाली महिलाओं के लिए तो ऐसा निश्चित रूप से नहीं हो रहा है।

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    • भारत में विमुद्रीकरण का इतिहास
      • ##chevron-right## पहला दौर ये १२ जनवरी १९४६ को हुआ था - रु.१००० के नोटों के लिए - और इसे उच्च मूल्य बैंक नोट (विमुद्रीकरण) अध्यादेश (ordinance) के द्वारा किया गया था, जिसका लक्ष्य था द्वितीय विश्व युद्ध के दौरान एकत्रित की गयी अवैध संपत्ति को नष्ट करना   ##chevron-right## दूसरा दौर ये १६ जनवरी १९७८ को किया गया था - रु.१०० से बड़े सभी नोटों हेतु अर्थात रु. १०००, रु.५००० और रु.१०,००० के नोटों के लिए - और इसे उच्च मूल्य बैंक नोट (विमुद्रीकरण) अधिनियम के द्वारा किया गया था, जिसका लक्ष्य था तस्करों और माफिया द्वारा एकत्रित किये काले धन को नष्ट करना (रु.१००० के नोट २०००-०१ से पुनः आ गए)  ##chevron-right## तीसरा दौर ये ०८ नवम्बर २०१६ की देर शाम लाया गया - रु. ५०० और रु.१००० के नोटों के लिए - और इसे स्वयं प्रधानमन्त्री मोदी ने दूरदर्शन पर प्रसारित सन्देश से लागू किया, और इसका घोषित लक्ष्य है भ्रष्टाचार, अवैध चुनावी फंडिंग, आतंकी फंडिंग आदि को नष्ट करना
अधिकांश वैध सौदों - लेनदेनों में, बड़े मूल्य के मौद्रिक नोटों का उपयोग कभी-कभी ही किया जाता है। आधिकारिक माध्यमों – बैंकों, वित्तीय संस्थाओं, ऑनलाइन इत्यादि से भुगतान किये और प्राप्त किये जाते हैं। नगदी तो दैनंदिन जीवन हेतु नागरिकों के लिए महत्वपूर्ण होती है। मौद्रिक नोट और सिक्के समग्र मुद्रा आपूर्ति का एक छोटा हिस्सा होते हैं। अमेरिका में ये एम-3 (स्थूल मुद्रा) का 10 प्रतिशत हैं, जबकि भारत में 12 प्रतिशत हैं और यूके में लगभग 3 प्रतिशत हैं। मुद्रा (धन) की अवधारणा एक तकनीकी विषय है, और उसे गहराई से समझने हेतु विस्तृत व्याख्यान आप यहाँ देख सकते हैं। 

धन की अवधारणा (पूर्ण व्याख्यान)



भारत और नकदी 


भारत सहित अधिकांश देशों में नकद का महत्व कम होता जा रहा है, किन्तु यहाँ बेहद धीरे-धीरे, और एक निश्चित आय-स्तर के नीचे रह रहे भारतीयों हेतु नहीं, और निम्न और मध्यम वर्ग महिलाओं हेतु तो बिल्कुल नहीं

अधिकांश भारतीयों को नकद राशि क्यों पसंद है? इसके चार प्रमुख कारण हैं - (क) अनौपचारिक ढांचों की सर्वविद्यमानता (omnipresence), (ख) मुख्यधारा व्यवस्था (बैंकें / वित्तीय संस्थाएं / वित्तीय बाजार) में विश्वास का अभाव, (ग) भारतीय समाज में महिलाओं की भेद्य (vulnerable) स्थिति, और (घ) उम्मीदवारों द्वारा लगभग प्रत्येक चुनाव में मुक्त रूप से वितरित होने वाली नकद धनराशि।

(क) इसलिए है क्योंकि बड़े स्तर पर औपचारिक नियोजन व नौकरियों के अभाव से बने ताने-बाने में बैंकें और वित्तीय संस्थाएं सभी सामाजिक स्तरों में पैठ बनाने में असफल रही हैं। छोटे व्यापारी/उद्यमी ख़ुशी से औपचारिक अर्थव्यवस्था से बाहर रहते हैं, जिसके कारण एक अन्य बीमारी पैदा हो जाती है - व्यवस्था से गुणवत्ता की अपेक्षा का अभाव। केवल मजबूत राजनीतिक इच्छाशक्ति और बड़े निर्णय (पहल) ही इन्हें औपचारिक बना सकती हैं। एक उदाहरण के रूप में जन-धन योजना, जो आधार कार्ड और मोबाइल के साथ आने वाले दशकों में चमत्कार कर सकती है।
(ख) इसलिए है क्योंकि लोगों का अपना पैसा औपचारिक व्यवस्था तंत्र में रखने से कहीं अधिक अपने हाथ में रखने में ही विश्वास है, साथ ही निरक्षरता और जागरूकता का अभाव परिवर्तन के विरुद्ध उदासीनता को और अधिक दृढ़ करते हैं।
(ग) इसलिए है क्योंकि 'स्वतंत्रता' के सात दशकों के बाद महिलाऐं आज भी समाज का सबसे भेद्य वर्ग (vulnerable section) बनी हुई हैं। अतः लगभग सभी माताओं और पत्नियों में आपात और नाजुक स्थितियों के लिए जीवन भर थोड़ी-थोड़ी रकम बचाने की आवश्यकता की स्वयं-प्रवृत्ति (instinct) होती है। वास्तव में इसके लिए वे बधाई की पात्र हैं, न कि निंदा की। मुख्यधारा की व्यवस्था ने जिस निर्लज्जतापूर्ण ढंग से हमारी महिलाओं की उपेक्षा की है उसके कारण उनके पास अन्य कोई चारा नहीं रहा है।
(घ) वह अम्ल है जिसने किसी अन्य से अधिक हमारे राष्ट्रीय चरित्र का अपक्षय किया है। लोकतांत्रिक सुधार परिसंघ (एडीआर) ने इस बीमारी कि व्यापकता को बार-बार इंगित किया है।

 पृष्ठ २ पर जारी 

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 पृष्ठ २ (३ में से) 

भारत पूरी तरह से नकद धनराशि की दलदल में डूबा हुआ समाज है, और इसका अर्थ यह है कि कोई भी राजनेता जो इस गतिकी को बदलने की इच्छाशक्ति दिखाता है उसे लंबे समय तक अति कटु आलोचना सहन करने के लिए तैयार रहना होगा।  

आरबीआई के डेटाबेस से हम ये आंकड़े निकाल कर लाये हैं। स्वाभाविक रूप से, पूरे देश में असुविधा फैल गयी है, और इस प्रक्रिया के आकार से ही ये समझ जा सकता है। 

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इन्हीं आंकड़ों को एक प्रभावी ढंग से द इकोनॉमिस्ट पत्रिका ने बताया, यहाँ

 



भ्रष्टाचार - नकदी की जननी 


१९४७ के बाद, जब ब्रिटिश यहाँ से चले गए थे, तब एक सामान्य भय यह था कि गोरे साहबों के स्थान पर भूरे साहब आ जायेंगे, और अन्य कोई परिवर्तन नहीं होगा। हालांकि ऐसा नहीं है, परंतु फिर भी अधिकांश भारतीयों के लिए भी एक अच्छे जीवन का वादा हकीकत नहीं बन पाया है। भ्रष्टाचार के दृश्य तरीके निम्नानुसार हैं :
  1. चुनाव लड़ने के लिए बड़े पैमाने पर नकद भ्रष्टाचार, जो खतरनाक नियमितता से होते हैं (एकसाथ चुनाव कराने की व्यवस्था के अभाव में, जो १९६७ के पश्चात टूट गयी थी - हल निकलना अभी बाकी
  2. सरकारी कार्यालयों में सभी प्रकार, श्रेणी और क्षेत्र के अधिकारियों द्वारा किया जाने वाला दैनंदिन छुटपुट भ्रष्टाचार (यह  छुटपुट राशि वर्ष भर में विशाल हो जाती है!) - यह आज का अपूर्ण एजेंडा है 
  3. संसाधनों के अधिकार (खनन, दूरसंचार, अन्य संसाधन) अवैध रूप से प्राप्त करने व उनका भारी दोहन करने के माध्यम से होने वाला भ्रष्टाचार - आंशिक रूप से काबू में 
  4. खातों में हेराफेरी के माध्यम से आय को छिपाना (इसके अनेक मार्ग हैं) - अति व्यापक
  5. अनेक क्षेत्रों में शुद्ध नकद का निर्माण (या तो कानून द्वारा कर कर से माफ़ी-प्राप्त, या अन्यथा) - अति व्यापक
  6. अनेक प्रकार का आपराधिक भ्रष्टाचार, जिसमें जाली मुद्रा बनाना भी शामिल है - अति व्यापक
  7. अनेक मार्गों से धन-शोधन, जिसमें प्रत्यक्ष विदेशी निवेश प्रपत्र में राउंड ट्रिपिंग शामिल है - विशाल है 


जो यह कह कर हमारे नोटबंदी निर्णय की आलोचना कर रहे हैं कि इससे तकलीफें हो गयी हैं, वे देश को बताएं की इतने दशकों तक सत्तासुख भोगते हुए उन्होंने क्या किया   - अमित शाह, भाजपा राष्ट्रीय अध्यक्ष 

भारतीय राजनीति, चुनाव और काला धन

- अपवित्र गठबंधन - विस्तृत चित्र

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जैसा कि दिख रहा है, दशकों की उदासीनता, भ्रष्टाचार और निकृष्ट गुणवत्ता ने हमारे राष्ट्रीय चरित्र के अनेक पहलुओं को खोखला कर दिया है। अधिकांश भारतीयों को सरकार से निकृष्ट सेवाओं के अतिरिक्त अन्य कोई उम्मीद नहीं है, और वे दब्बूपन से व्यवस्था के नकारात्मक आवेग में स्थापित हो जाते हैं, जैसा इस चित्र में दर्शाया गया है। अनेक लोग केवल इस बात से संतुष्ट और खुश होंगे कि उनका जीवन बिना किसी बाधा के चल रहा है, फिर चाहे बड़े स्तर पर कुछ भी क्यों न हो रहा हो। इस प्रवृत्ति से राजनेताओं को बेहद प्रसन्नता होती होगी! [अंग्रेजी में पढ़ना है? यहाँ आएं!]
  • १९५० के दशक से ही भारत में भ्रष्टाचार, काले धन और आतंकवाद का नापाक गठजोड़ बना है जो हमारी लोकतांत्रिक व्यवस्था पर सीधे कुठाराघात करता है।
  • मुक्त और निष्पक्ष चुनाव विश्व के सबसे बड़े लोकतंत्र का आधारस्तंभ हैं। 
  • बीते दशकों में भारत में चुनावों ने सभी शुद्धता और प्रासंगिकताओं को खो दिया है। जहाँ एक ओर अत्यंत शक्तिशाली और स्वतंत्र (और ईमानदार) निर्वाचन आयोग है - जिसे न्याय व्यवस्था का समर्थन प्राप्त है - जो कानून तोड़ने पर कार्रवाई करता है, फिर भी हम सभी जानते हैं कि कितनी भारी मात्रा में काले धन ने लोकतांत्रिक चुनावों के संपूर्ण ताने-बाने को दूषित कर दिया है। 
  • वर्ष २०१४ में आरबीआई ने वर्ष २००५ से पूर्व छपे सभी मूल्यों के नोटों को चरणबद्ध रूप से हटाने की घोषणा की थी, और पुराने नोटों को नए से बदलने के लिए ३ महीने का समय दिया था। उस समय अधिकांश जाली नोट वर्ष २००५ से पूर्व के थे। जानकारों के अनुसार, आरबीआई पर भारी राजनीतिक दबाव रहा होगा जिसके कारण उसे मई २०१४ के बाद भी राहत देनी पड़ी।
  • उम्मीदवार निर्धारित सीमा से कहीं अधिक खर्च करते हैं। वर्ष २०१४ के प्रारंभ में स्वर्गीय श्री गोपीनाथ मुंडे (एक विश्लेषण यहाँ उपलब्ध है) ने घोषणा की थी कि वर्ष २००९ के उनके चुनाव प्रचार पर उन्होंने नौ करोड़ रुपये खर्च किये थे, जो निर्धारित ४० लाख की सीमा से कहीं अधिक थे ! बाद में उन्होंने कहा था कि उनके शब्दों को तोड़-मरोड़ कर पेश किया गया था। एक सड़ चुकी व्यवस्था में यह एक दुर्लभ स्वीकृति थी।
  • चुनाव पर किया गया सभी अतिरिक्त व्यय = काला धन  
  • मुद्रा का मूल्य जितना उच्च, वह उतनी ही अधिक सुविधाजनक
 पृष्ठ ३ पर जारी 
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 पृष्ठ ३ (३ में से) 

(बोधि प्रबोधन लेक्चर की लिंक इस भाग में दी गयी है)

नकदी नहीं तो क्या


नकद को क्या प्रतिस्थापित कर रहा है?  प्लास्टिक और इलेक्ट्रॉनिक मुद्रा (धन) जो अनेक रूपों में है जैसे
क्रेडिट और डेबिट कार्ड, पूर्व भुगतान कार्ड, डिजिटल वॉलेट और ऑनलाइन धन हस्तांतरण। इसके कुछ संकेतक हैं -

  • आरबीआई का कहना है - इलेक्ट्रॉनिक माध्यम से निष्पादित लेनदेनों का मूल्य ९० % से अधिक है 
  • भारतीय रेल का ऑनलाइन टिकट पोर्टल वर्ष भर में ३० करोड़ से अधिक यात्रियों के ऑनलाइन लेनदेनों को संभालता है
  • भारत के लगभग सभी महामार्गों के टोल बूथ शीघ्र ही इलेक्ट्रॉनिक हो जाएंगे
  • भुगतान बैंकों की लाइसेंस प्रक्रिया हाल ही में शुरू हुई, और इन्टरनेट के प्रसार के साथ ही इनके द्वारा भारी मात्रा में डिजिटल और मोबाइल भुगतान का फैलाव होने की उम्मीद है
  • 20 करोड़ से अधिक बैंक खातों के साथ जन-धन योजना आने वाली बदलावों की नींव है। यह प्रधानमंत्री मोदी की पसंदीदा योजना है जो उनकी दूरदर्शिता की मिसाल पेश करती है
  • प्रत्यक्ष लाभ हस्तांतरण (Direct Benefit Transfers) नकद को बेकार बनाते जा रहे हैं
  • एक बार जीएसटी प्रारम्भ हो जाने से जीएसटी नेटवर्क पर लेनदेन ऑनलाइन हो जायेंगे। जीएसटी पर हमारी बोधि यहाँ पढ़ें 
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वर्ष 2005 से, लेखक अपने विद्यार्थियों को बता रहा है कि वह दिन अधिक दूर नहीं, जब सभी व्यवहार या तो प्लास्टिक कार्ड के माध्यम से, या ऑनलाइन, या मोबाइल के माध्यम से होंगे - यहाँ तक कि दैनंदिन सब्जी की खरीदारी भी। अब यह होता हुआ प्रतीत हो रहा है।

काले धन पर नियंत्रण हेतु वैश्विक उपाय 


अत्यंत भयावह और विविध तरीकों से बढ़ते अंतर्राष्ट्रीय अपराधिक संगठनों ने हमेशा अनेक सरकारों को नकद के निर्माण और उपयोग के विरुद्ध कार्रवाई करने हेतु प्रेरित किया है।

  • जी-२०  देशों द्वारा धन-शोधन-विरोधी उपायों को दिए गए वैश्विक बढ़ावे और लेनदेन निगरानी तंत्रों के बावजूद, विश्व भर में 1 प्रतिशत से भी कम अवैध वित्तीय प्रवाह पकडे जा सके हैं। काला धन पैर पसारता जा रहा है।
  • २०१६ में हुए पनामा पेपर लीक इस बात का जीता जागता सबूत हैं कि अघोषित आय को कर के जाल में लाने के लिए अभी कितना लंबा मार्ग बचा है
  • ईसीबी ने 500 यूरो ( €  ) की मुद्रा के विमुद्रीकरण का निर्णय लिया। ०४ मई २०१६ को यूरोपीय केंद्रीय बैंक (ECB) ने स्थाई रूप से € 500 की मुद्रा की छपाई बंद करने और उसे यूरोपा श्रृंखला से हटाने का निर्णय लिया, ताकि उसके द्वारा होने वाले अवैध फंडिंग को रोका जा सके। इसका जारी होना २०१८ के अंत तक बंद हो जाएगा, जब १०० और २०० यूरो के नोट यूरोपा श्रृंखला में शामिल किये जाएंगे। यूरो के अन्य मूल्यों के नोट - ५ यूरो से २०० यूरो - बने रहेंगे।
  • वर्ष 2016 में, स्टैण्डर्ड चार्टर्ड बैंक के भूतपूर्व सीईओ ने हार्वर्ड कैनेडी स्कूल में एक लेख प्रकाशित किया जिसमें उच्च मूल्य के नोटों को चलन से बाहर करने का प्रस्ताव किया गया
  • हार्वर्ड विश्वविद्यालय के केनेथ रोगोफ़ कहते हैं कि नकद का ५० % या अधिक उपयोग, कर अधिकारियों से छिपाने के लिए किया जाता है। इसे रोकने का पहला कदम उच्च मूल्य के नोटों की आपूर्ति समाप्त करना है – और यही प्रधानमंत्री मोदी ने किया है। छोटी-छोटी खरीदियों हेतु कितने भारतीय प्रतिदिन 1000 रुपये के नोट का उपयोग करते हैं?
  • एक भविष्यदृषि लेख में अर्थशास्त्री अजित रानाडे ने फरवरी 2016 में तर्क दिया था – "सामान्य अमेरिकी नागरिक कभी-कभी ही 100 डॉलर के नोट का उपयोग करते हैं। यह अंकित मूल्य अमेरिका की प्रति व्यक्ति आय का लगभग ०.२५ प्रतिशत है। इसे सामान्य नियम मानते हुए और क्रय शक्ति समता से समायोजित करते हुए भारत की सबसे उच्च मुद्रा का मूल्य २५० रुपये होना चाहिए। इस प्रकार, प्रथम दृष्टया हमारे यहाँ ५०० और १०००, दोनों मूल्यों के नोटों को चरणबद्ध तरीके से बाहर करने का मामला बनता है। चूंकि रूपया अभी अंतर्राष्ट्रीय मुद्रा नहीं है अतः १००० रुपये के नोट को समाप्त करने के अनेक लाभ हैं, यह व्यवहार्य है, और यह काले धन के भंडार पर निश्चित प्रभाव डालेगा। बड़े नोटों को समाप्त करने का समय आ गया है। और हमें आशा है कि इस बार आरबीआई पीछे नहीं हटेगी (जैसा 2014 में चुनाव के पूर्व हुआ था)"

मोदी की चरणबद्ध नीति 


०८ नवंबर की शाम को प्रधानमंत्री मोदी ने इस नापाक गठजोड़ को तोड़ने के लिए रीबूट बटन दबा दिया। जहाँ कुछ लोग उनपर अच्छे दिन नहीं ला पाने के लिए प्रश्न उठा सकते हैं, परंतु उन्होंने काले धन के बुरे दिन ला दिए हैं यह निश्चित है। पश्च दृष्टि के लाभ के साथ अब हम संपूर्ण चित्र देख सकते हैं।

वर्तमान विमुद्रीकरण हेतु मोदीजी की तैयारियां – चरणबद्ध –

पहला कदम. अवैध विदेशी बैंक खातों का पता लगाने के लिए विशेष जांच दल (एसआईटी) का गठन
दूसरा कदम. बैंक खातों के सार्वभौमिकरण का प्रोजेक्ट (जन-धन खाते)
तीसरा कदम. लेनदेन के लिए आधार कार्ड का आग्रह और जैम त्रयी (JAM Trinity) का निर्माण
चौथा कदम. नकदविहीन अर्थव्यवस्था की पैरवी, भुगतान बैंकों के लिए नए लाइसेंस
पांचवा कदम. एकीकृत भुगतान अंतराफलक (यूपीआइ - Unified Payment Interface) जिसका निर्माण भारतीय प्रौद्योगिकी स्टैक पर किया गया है, उसे गंभीरता से बढ़ावा
छठा कदम. काला धन धारकों को स्वच्छ होने के लिए दो प्रस्ताव, जिसके साथ चेतावनी भी शामिल थी।पहला प्रस्ताव तो वर्ष २०१४ में ही दिया गया था - विदेशी काला धन धारकों को ९० दिन की माफ़ी अवधि जैसी योजना प्रस्तावित जिसमें ६० प्रतिशत कर का भुगतान करना थाए और इस योजना से ४,१४७ करोड़ की अघोषित आय सामने आई। सरकार को २५०० करोड़ रुपये की प्राप्ति हुई। ३० सितंबर २०१६ को जब सरकार की दूसरी काला धन अवधि बंद हुई तब ६४,२७५ घोषणाओ में ६५,२५० करोड़ रुपये का मामूली मात्रा में काला धन घोषित हुआ।
सातवाँ कदम. ०८ नवम्बर २०१६ को मोदी सरकार ने विमुद्रीकरण की घोषणा की

एक अपेक्षाकृत कम जानी-पहचानी संस्था "अर्थ क्रांति" ने दावा किया है कि प्रधानमंत्री का विमुद्रीकरण का निर्णय, २०१३ में उन्हें दिया गए एक प्रस्तुतीकरण (प्रेजेंटेशन) से प्रेरित था, जब मोदीजी गुजरात के मुख्यमंत्री थे। किन्तु अर्थक्रांति को दुःख है कि उनके दिए पाँचों सुझाव नहीं माने गए। उनके विचारों पर हम इस विषय की तीसरी और अंतिम बोधि में विस्तार से चर्चा करेंगे।

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    • चीनी मीडिया ने मोदी के विमुद्रीकरण पर कहा
      • भारत द्वारा विमुद्रीकरण का निर्णय "कड़ा और निर्णायक" तो था किन्तु इस "खतरनाक" कदम से भ्रष्टाचार-मुक्त भारत शायद ही बने - ये कहना है चीन के ग्लोबल टाइम्स का। उसने आगे कहा कि "सच बात ये है कि भ्रष्ट और धोखेबाज़ केवल नकदी से काम नहीं करते, वरन सोना, अचल संपत्ति और देश के बाहर संपत्ति बनाते हैं"। २०१२ में राष्ट्रपति बनने के पश्चात से ही श्री शी जिनपिंग ने एक बड़ा-भारी भ्रष्टाचार-विरोधी आंदोलन छेड़ रखा हैखबर की लिंक यहाँ

विमुद्रीकरण पर हमारे व्याख्यान का आनंद लें! पूर्ण व्याख्यान प्रीमियम में उपलब्ध।


इस विषय पर दूसरी बोधि में, हम मौद्रिक प्रणाली की संरचना, धन-शोषण की अवधारणा, कर-जीडीपी अनुपात, कर-अपवंचन रोकने के कानूनी प्रावधान और विमुद्रीकरण के मुद्रास्फीति और विनिमय दरों पर होने वाले प्रभावों को समझने के लिए गहराई तक जाएंगे। और इस विषय पर तीसरी और अंतिम बोधि में हम अति-महत्वपूर्ण पहलुओं का विचार करेंगे - अपूर्ण एजेंडा, विमुद्रीकरण के पश्चात क्या, नागरिकों की भूमिका, और आवश्यक समग्र परिवर्तन।

नीचे दी गई कमैंट्स थ्रेड में अपने विचार ज़रूर लिखियेगा (आप आसानी से हिंदी में भी लिख सकते हैं)। इससे हमें ये प्रोत्साहन मिलता है कि हमारी मेहनत आपके काम आ रही है, और इस बोधि में मूल्य संवर्धन भी होता रहता है।

शीघ्र उपलब्ध - इसी विषय पर दूसरी और तीसरी बोधियाँ

[बोधि प्रश्न हल करें ##pencil##]

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    • बोधि कडियां (गहन अध्ययन हेतु; सावधान: कुछ लिंक्स बाहरी हैं, कुछ बड़े पीडीएफ)
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    Hindi Bodhi Booster: विमुद्रीकरण और काला धन - बोधि १
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