वैश्विक उदारवादी ढांचे में बड़ा बदलाव आने वाला है। उथल-पुथल के लिए तैयार हो जाएं
इतिहास ने तीव्र मोड़ लिया
यह कोई रोजमर्रा की बात नहीं है जब हम इतिहास को एक आकस्मिक और तीव्र मोड़ लेता देखते हैं। यह भी कोई सामान्य बात नहीं है कि वैश्विक व्यापार और वित्त के सावधानीपूर्वक पोषित किये गए प्रारूपों को एक नवोदय बाह्य व्यक्ति द्वारा अपने दर्शन से चकनाचूर करके टुकड़े-टुकड़े कर दिया जाता है। और मजबूत लॉबियों (गुटों) के लिए भी यह बहुत दुर्लभ घटना है कि उन्हें किसी ऐसे व्यक्ति द्वारा नाटकीय ढंग से अलग-थलग कर दिया जाता है जो मानता है कि उनका संपूर्ण अस्तित्व ही धोखे और ठगी पर निर्मित है।
डॉनल्ड ट्रम्प के राष्ट्रपति कार्यकाल में आपका स्वागत है। आधुनिक इतिहास का एक अत्यंत नया युग अब आरंभ होता है।
[इस बोधि को अंग्रेजी में पढ़ें]
इससे पहले कि हम एक अप्रत्याशित भविष्य के बारे अनुमान लगाएं, हम पिछले १५० वर्षों की कुछ महत्वपूर्ण अवधारणाओं पर नजर डालते हैं जो हमें यह समझने में सहायक होंगी कि मानवता को वास्तव में हुआ क्या है। इस बात को समझने के लिए कि यह काल हमारे जीवन में कितना महत्वपूर्ण है, इस मोड़ की तीव्रता को समझने के लिए इन घटनाओं पर नजर डालें।
इससे पहले कि हम एक अप्रत्याशित भविष्य के बारे अनुमान लगाएं, हम पिछले १५० वर्षों की कुछ महत्वपूर्ण अवधारणाओं पर नजर डालते हैं जो हमें यह समझने में सहायक होंगी कि मानवता को वास्तव में हुआ क्या है। इस बात को समझने के लिए कि यह काल हमारे जीवन में कितना महत्वपूर्ण है, इस मोड़ की तीव्रता को समझने के लिए इन घटनाओं पर नजर डालें।
१. १८ वीं सदी (१७०१ - १८००)
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- यूरोप में वैश्विक औपनिवेशीकरण की होड़ शुरू हुई, जिसे वणिकवाद और शून्य-जमा खेल (Zero Sum Game) की अग्नि ने प्रज्वलित किया। पहले वे एक-दूसरे को मारते हैं और फिर वे जहाँ कहीं भी जाते हैं वहां के स्थानीय लोगों को मारते हैं और उसके बाद असभ्य लोगों को सभ्य बनाने के नाम पर लूट और विध्वसं के नृशंस युग की शुरुआत करते हैं। राजतंत्र के आवरण और शासन को विद्रोह से छोड़कर अमेरिका अपने आपको फिर से गढ़ता है और स्वयं की आवाज के साथ स्वयं को एक स्वतंत्र राष्ट्र के रूप में घोषित करता है। जापान विश्व के लिए पूर्ण रूप से बंद रहता है, और उसी प्रकार से चीन भी। भारत उपनिवेश बनने की कगार पर है, जहाँ इसके अधिकांश भाग पर मराठा साम्राज्य का नियंत्रण है और जो १७६१ के पानीपत के युद्ध में मैदान में सेना-तैनाती में भूलों के पश्चात तेजी से पतन की कगार पर है।
- फ्रांस अपने कैथोलिक पादरियों और राजवंश की निर्मम हत्या करता है और चर्च की विशाल संपत्तियों को जब्त कर लेता है और “स्वतंत्रता, समता, भाईचारे” (Liberty, Equality, Fraternity) के मानवतावादी आदर्श की स्थापना करता है, किन्तु एक नए सम्राट, नेपोलियन बोनापार्त द्वारा कब्जे में ले लिया जाता है। रूस अपने राजतंत्र के साथ चलता रहता है और एक सदी के बाद होने वाली साम्यवादी क्रांति के लिए धीरे-धीरे तैयार होता है। ब्रिटिश उद्यमी काम के परिवर्तन के माध्यम खामोशी से क्रांति का नेतृत्व करते हैं जिसे बाद में औद्योगिक क्रांति कहा जाता है। इस विषय पर एक पूर्ण व्याख्यान यहाँ देखें प्रमुख आर्थिक दर्शन – वणिकवाद, उपनिवेशवाद, औद्योगिक क्रांति का परिपक्व होना।
[भारत के लिए कैसे २५ वर्षों में चक्र पूरा हो गया, पढ़ें अंग्रेजी में]
२. १९ वीं सदी (१८०१ - १९००)
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- यूरोप बहुत शक्तिशाली हो जाता है। वे संपूर्ण दक्षिण एशिया में अपने उपनिवेश स्थापित करते हैं और इसे कच्चे माल के आपूर्ति केंद्र में परिवर्तित कर देते, हैं जहाँ प्रत्येक पुरुष, महिला और बच्चे को उनकी समृद्धि के लिए काम पर लगा दिया जाता है। समरूप साम्राज्य का प्रबंधन करने के लिए वे ऐतिहासिक रूप से स्वीकृत शिक्षा प्रणाली को लगभग उलट कर 'असभ्य' दक्षिण एशियाई लोगों (इसे भारतीय पढ़ें) को 'सभ्य' बनाने की शुरुआत करते हैं और यह सुनिश्चित करते हैं कि उन्हें शिक्षित लिपिकों की आपूर्ति निरंतर रूप से होती रहे जो गुलाम और आज्ञाकारी हों। अमेरिकियों का आपस में खूनी संघर्ष होता है जिसमें उत्तर का एक व्यक्ति गुलामी की संपूर्ण अवधारणा का विरोध करता है और दक्षिण पर प्रहार करता है और इस दौरान लोकतंत्र की एक नई अवधारणा स्थापित करता है। उदारवादी लोकतंत्र का वह प्रारूप वक़्त के साथ बना रहा है, और सत्ता का शांतिपूर्ण हस्तांतरण इसकी पहचान है अमेरिकी गृह-युद्ध विषय पर एक पूर्ण व्याख्यान यहाँ देखें
- शीघ्र ही वे भी साम्राज्यवादी हो जाते हैं जहाँ कमोडोर मैथ्यू पैरी बलपूर्वक जापान को खुलने के लिए मजबूर करते हैं और जापान के साम्राज्य के अति-तीव्र गति से आधुनिकीकरण की शुरुआत हो जाती है, जिसका परिणाम पर्ल हार्बर घटना और अंततः वर्ष १९४५ की परमाणु बमबारी में होता है। औद्योगिक क्रांति बीसवीं सदी के व्यापक उपभोक्तावाद को संभव बनाती है। साथ ही यह देशों को स्पष्ट रूप से दो गुटों में विभाजित करती है – औद्योगिक और ऐसे देश जिनका औद्योगिकीकरण होना शेष है (रुसी साम्राज्य)। कार्ल मार्क्स विश्व के श्रमिकों को उनकी जंजीरों की जानकारी देने की शुरुआत करते हैं और अगली सदी में होने वाली साम्यवादी क्रांति की नींव रखते हैं। प्रमुख आर्थिक दर्शन – साम्राज्यवाद, उपनिवेशवाद, औद्योगिक क्रांति का परिपक्व होना
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३. २० वी सदी पूर्वार्ध (१९०१ से १९५०)
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- गैर-औद्योगीकृत रूस तेजी से अपनी आवश्यकता को समझता है। परंतु तब तक काफी देर हो चुकी होती है, और आतंरिक कलह उसे टुकड़े-टुकड़े कर देती है। लेनिन (Lenin) के नेतृत्व में साम्यवादी प्रथम विश्व युद्ध तक अपना वर्चस्व स्थापित कर लेते हैं जिस दौरान वे रोमानोव शाही परिवार की हत्या कर देते हैं। बाद के सोवियत संघ के जन्म की नींव इसी दौरान रखी जाती है और इसपर एक व्यक्ति, स्टालिन, का कब्ज़ा हो जाता है, साथ ही इस दौरान शीत युद्ध की भी नींव रखी जाती है जो बीसवीं सदी के उत्तरार्ध को परिभाषित करने वाली थी। यूरोप पहले प्रथम विश्व युद्ध (जो अभिमानी शाही जर्मनी को आत्मसमर्पण के लिए पराजित करता है) से क्षत-विक्षत होता है और बाद में द्वितीय विश्व युद्ध (जो एक बार फिर से उभरे हुए नाज़ी जर्मनी को आत्मसमर्पण के लिए मजबूर करता है) से क्षत-विक्षत होता है। उनकी अनिच्छा के बावजूद अमेरिकियों को द्वितीय विश्व युद्ध में हिस्सा लेना पड़ता है क्योंकि जापानी साम्राज्य का और अधिक ठिकानों पर आक्रमण का खतरा लगातार बना होता है। परमाणु वैज्ञानिक कुछ खतरनाक तत्वों के नाभिक में छिपी ऊर्जा को उत्सर्जित करने में सफल होते हैं, और यह घातक शक्ति सेना को सौंप देते हैं, जो इसका उपयोग जापानी साम्राज्य को घुटनों के बल लाने के लिए करती है। द्वितीय विश्व युद्ध विषय पर एक पूर्ण व्याख्यान यहाँ देखें
- भारत अपनी राजनीतिक तंद्रा से जागा है और उसका नेतृत्व एक करिश्माई महात्मा द्वारा किया जाता है जो अहिंसा की पूजा करता है, और अंततः वह दो कारणों से राक्षसी ब्रिटिश राज से स्वतंत्र होता है : एक, द्वितीय विश्व युद्ध द्वारा लाया गया दिवालियापन और दूसरा, भारत में उसकी अपनी सेना में विद्रोह के डर के कारण। अचानक एक वैश्विक शक्ति, अमेरिका, का विश्व पटल पर उदय होता है और वह एक "पैक्स अमेरिकाना" (Pax Americana) – जो सैन्य गठबंधनों और मित्र देशों के माध्यम से और मुक्त व्यापार और प्रौद्योगिकी के माध्यम से शांति और स्थिरता की युद्ध पश्चात की व्यवस्था है – के निर्माण की शुरुआत करता है। चीन अचानक साम्यवादियों के कब्जे में आ जाता है – राष्ट्रवादी (लोकतांत्रिक) कुओमिन्तांग पार्टी गृह युद्ध में पराजित हो जाती है और एक द्वीप में पलायन कर जाती है, जिसे आज हम ताइवान के नाम से जानते हैं। वर्ष १९४९ में माओ बागडोर संभालते हैं। मुख्य आर्थिक दर्शन – प्रतिस्पर्धी मौद्रिक युद्ध, महान मंदी, मार्शल योजना के माध्यम से पुनर्निर्माण, समाजवाद और साम्यवाद, मौद्रिक पर वित्तीय नीतियां हावी, निश्चित विनिमय दरें
४. २० वी सदी उत्तरार्ध (१९५१ से २०००)
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- इस कालखंड का पहला भाग वर्ष १९४५ से शुरू होकर १९७० के दशक के प्रारंभ तक जारी रहता है। अमेरिका विश्व का नेतृत्व स्वीकारता है और “संस्थागत संरचनाओं के माध्यम से समृद्धि” की वैश्विक व्यवस्था को गतिशील करता है। अंतर्राष्ट्रीय मुद्राकोष (IMF) और विश्व बैंक (WB) का जन्म होता है। संयुक्त राष्ट्र संघ का जन्म होता है, जिसमें इस महान संगठन के पांच सदस्यों को वीटो का अधिकार प्राप्त होता है (एक ऐसी मान्यता जो आज पूरी तरह से अप्रासंगिक है) । साम्यवादी सोवियत गुट पूंजीवादी लोकतांत्रिक पश्चिम के सीधे विरोध में आता है, जहाँ वॉरसॉ संधि और नाटो आमने-सामने खड़े हो जाते हैं। पहले अंतरिक्ष की दौड़ में सोवियत संघ चमत्कार करता है, परंतु बाद में ढीला पड़ जाता है जब अमेरिका चन्द्रमा पर पहले मनुष्य को भेजने, और उसे वापस लाने में, अपनी ऊर्जा सफलतापूर्वक लगाता है। भारत धीरे-धीरे अपने पुनर्निर्माण के काम को शुरू करता है, जिसमें इसके नेता पंडित नेहरु परिश्रम करते हुए एक तीसरी धुरी पर काम करते हैं – गुटनिरपेक्ष आंदोलन – एक महान विचार जो सदी के अंत तक लगभग नष्ट हो जाता है। चीन तिब्बत में अपना खेल दिखाता है, और इस पूरे क्षेत्र पर कब्ज़ा कर लेता है, १९६२ में भारत पर आक्रमण करता है और नेहरु के भाईचारे के मंसूबों पर पानी फेर देता है, और एक बार फिर से २१ वी सदी के संघर्ष की नींव रखता है।
- १९७० के दशक में विश्व द्वितीय-विश्वयुद्ध पश्चात की पहली आर्थिक व्यवस्था के अंत को देखता है क्योंकि अरब देश इजराइल से युद्ध के चलते तेल निर्यात पर प्रतिबंध लगा देते हैं। एक दूसरे कालखंड (युद्ध-पश्चात) का उदय होता है। स्थिर विनिमय दर शासन का पतन होता है, और आर्थिक विस्तार के मौद्रिक ज़ोर की शुरुआत १९८० के दशक में होती है। वैश्वीकरण के युग का उदय हो चुका है। वर्ष १९९१ आते-आते सोवियत संघ में साम्यवादियों का पतन होता है, और सीमाओं के पार मुक्त वित्तीय-प्रवाह फ्रांसिस फुकुयामा जैसे विचारकों को "इतिहास के अंत" की भविष्यवाणी करने के लिए प्रेरित करते हैं। ऐसे विचारक वही गलती करते हैं जो उनके पूर्ववर्तियों द्वारा की गई थी – इस तथ्य को नजरंदाज करना कि इतिहास और समय चक्रीय है, और जो गोल घूमता है वह वापस उसी स्थान पर आता है। सभी लोग प्रसन्न प्रतीत होते हैं क्योंकि उदारवादी वैश्वीकरण प्रारंभ में समृद्धि लाता है। चीन एक अखंड राज्य-चालित औद्योगिकीकरण और निर्यात मॉडल के माध्यम से करोड़ों लोगों को गरीबी से ऊपर उठाता है और इस प्रक्रिया के दौरान अनेक खरब डॉलर अर्जित करता है, जिससे वह एशिया में नायक की आने का प्रयास करने लगता है। ऐसा प्रतीत होता है कि समानता आश्चर्यजनक रूप से काफी दूर-दूर तक फ़ैल गई है। मुख्य आर्थिक दर्शन – उदारीकरण, व्यापार वैश्वीकरण, वित्तीय वैश्वीकरण, राज्य पूंजीवाद (चीन), विश्व व्यापार संगठन
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- प्रौद्योगिकी एक उत्कृष्ट चीज है। यह लोगों को सशक्त बनाती है, और इसीके साथ उनसे उनके समतावादी भविष्य को चुरा भी लेती है। यह उन्हें सामाजिक मीडिया के माध्यम से जुड़ने में सहायता प्रदान करती है और फिर वे उसी शक्ति का उपयोग करते हैं और उन विद्यमान शासनों को उखाड़ फेंकते हैं जो अप्रचलित व्यवस्थाओं के संरक्षक होते हैं। दिसंबर २०१० से शुरू हुए अरब स्प्रिंग (क्रांतियों की श्रृंखला) ने इस प्रभाव को पूर्ण रूप से अनुभव किया। परंतु इससे काफी पहले कट्टरपंथी इस्लाम के उदय (अल कायदा, तालिबान और अमेरिका में हुए 9 / 11 हमले) ने वैश्विक सुरक्षा व्यवस्था को पूर्णतः परिवर्तित कर दिया था। विश्व अचानक ही एक खतरनाक स्थान बन गया था। पश्चिम में प्रौद्योगिकी कंपनियों के उदय ने उन सभी संदेहों को समाप्त कर दिया था कि २१ वी सदी में पूँजी का स्वरुप क्या होगा। पिकेटी हमें एक मौलिक कार्य में इसकी याद दिलाते हैं। और जिस समय वर्ष २००७ आया, तब तक पिछले दशकों के मौद्रिक प्रसार, साथ ही चरम पूंजीवाद (निवेश बैंकर जोखिम वाली आवास परिसंपत्तियों का विश्व स्तर पर प्रसार कर रहे थे) ने अपने असली रंग दिखाने शुरू कर दिए। वर्ष २००७ के वित्तीय महासंकट ने द्वितीय विश्व युद्ध पश्चात की आर्थिक व्यवस्थाओं को भी समाप्त कर दिया। अमेरिकी आर्थिक संकट विषय पर एक पूर्ण व्याख्यान यहाँ देखें उदार आर्थिक मॉडल्स की संपूर्ण अवधारणा अब संदिग्ध है। संपूर्ण आर्थिक सिद्धांत उलट-पुलट हो गए हैं, जहाँ ब्याज दरें शून्य के निकट जा रही हैं और संख्यात्मक तरलता - QE (और हेलिकॉप्टर धन!) आज का मानदंड बन गया है
- लोग इस बात से नाराज हैं कि बिना किसी गलती के भी उन्हें अपनी नौकरियों से हाथ धोना पड़ रहा है। सुशिक्षित और विनीत उदारवादी कष्ट और पीड़ा को समझने के बजाय बौद्धिक हल सुझा रहे हैं और शेष कार्य सामाजिक मीडिया की अग्नि द्वारा किया जा रहा है जिसका उपयोग बेदखल लोगों द्वारा सभी प्रमुख देशों में लोकलुभावन कार्यसूची के समर्थन के लिए प्रभावी रूप से किया जा रहा है। बढती असमानताओं और संपत्ति के कुछ हाथों में (वास्तव में) संकेंद्रण ने सभी वैश्विक मॉडल्स को एक कोने में धकेल दिया है और लोकलुभावनवादी (और लोकप्रिय) नेता एक विशाल रूप से असमान आर्थिक और सामाजिक व्यवस्था में परिवर्तन का भरोसा दिलाते हैं, पहले भारत में, उसके बाद ब्रिटेन और यूरोप में और अब अमेरिका में। इसने वैश्वीकरण और मुक्त व्यापार के सबसे बड़े लाभार्थी – समाजवादी चीन! – को पूंजीवादी विचारधारा की मक्का दावोस में मुक्त व्यापार के लाभों का प्रचार करने को मजबूर किया है। संभवतः इसमें काफी देर हो गई प्रतीत होती है। डॉनल्ड ट्रम्प का आगमन हो चुका है। एक नए युग का आरंभ हुआ है। मुख्य आर्थिक दर्शन – निर्यात-चालित वृद्धि, महान अमेरिकी मंदी, प्रौद्योगिकी और “तटीय कुलीनों” के हाथों में संपत्ति का संकेंद्रण, असमानता में वृद्धि, उदार व्यापार व्यवस्था पर उठने वाले प्रश्न
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यदि हमें वास्तव में यह समझना है कि वे कौन से बल थे जिन्होंने एक अरबपति व्यक्ति, ट्रम्प, जो मुक्त व्यापार और आप्रवासन की निंदा करते रहे हैं, को विश्व के पूंजीवाद की मक्का, अमेरिका के राष्ट्रपति के पद तक पहुँचाया, तो हमें ऊपर दिए गए रुझानों को समझना।
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- ##book## विभिन्न कारण, सारांश में
- अमेरिकी जनता का एक बड़ा वर्ग उस गति से चिंतित और भयभीत है जिससे प्रौद्योगिकी पारंपरिक नौकरियों को खाती जा रही थी। यह परिवर्तन अत्यंत डरावना है। पारंपरिक औद्योगिक क्षेत्र निष्क्रिय हो गए हैं क्योंकि सस्ते विनिर्माण विकल्पों ने कंपनियों को अपने ठिकाने को बदलने के लिए मजबूर कर दिया है। पीछे जो बचा था वह भुतहा शहरों जैसा वातावरण था। किसी ने कल्पना भी नहीं की थी कि इसके ऐसे राजनीतिक प्रभाव होंगे। विदेशों में सस्ते कर्मचारी – भारतीय बाह्य स्रोत (आउटसोर्स) अभिकरण या चीनी विनिर्माण कंपनियां – सीधे और आसान लक्ष्य बनते हैं। अमेरिकियों के हाथों से नौकरियां निकलती जा रही हैं क्योंकि ये लोग सस्ते में उन्हें लेते जा रहे हैं। कंपनियों के वित्तीय तर्क छोड़िये, अगर मेरे नागरिकों को कष्ट हो रहा है तो बहुत हो गया, अब ऐसा नहीं होगा
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परंपरावादी प्रतिक्रिया?
स्वाभाविक है कि वैश्वीकरण के समर्थक अचंभित हैं। एक ऐसा प्रारूप जो खूबसूरती से अर्थव्यवस्था और इतिहास को राजनीती से जोड़ता था, इतनी जल्दी कैसे टूट सकता है? ये रहे कुछ बिंदु जो चुनावी अभियान के दौरान लगातार उभरते रहे।- [message]
- ##heart-o## उदारवादी आत्म-चिंतन हेतु कुछ संकेतक - परंपरावादी की सोच
- ##chevron-right## १. विश्व में हर व्यक्ति नास्तिक, उदारवादी या एलजीबीटी (LGBT) अधिकारों का समर्थक होना नहीं चाहता। बहुत लोग परंपरावादी बने रहना चाहते हैं, और यदि आप उन्हें कोने में धकेल, अनुदारवादी रंगों में रंग देंगे, तो परिणाम गंभीर होंगे। इसे हम उदारवादियों का अनुदारवाद कह सकते हैं। ##chevron-right## २. “इतिहास के अंत” की तो जाने दें, कोई भी एक बात सत्य नहीं है। इस प्रकार के उच्च स्वर वाली उद्घोषणाएँ न केवल अहंकारी हैं वरन वे इतिहास की समझ के प्रति काफी अनभिज्ञता के भी द्योतक हैं। समय चक्रीय होता है। ##chevron-right## ३. क्रियाओं से प्रतिक्रियाएं उभरेंगी। अति उदारवादी, वैश्वीकरण के प्रतिपादक इस शाश्वत सत्य को कैसे भूल जाते हैं? ##chevron-right## ४. जब केवल १० या २०व्यक्ति अरबों लोगों के बराबर की संपत्ति को संग्रहित कर लेंगे, और करोड़ों लोग अपनी नौकरियों को लुप्त होते और सामाजिक सुरक्षा को खतरे में देखते हैं तो यह मान लेना चाहिए कि “क्रांतियों के लिए मंच तैयार” है। यही कुछ तो फ़्रांसिसी क्रांति में हुआ जिसने कैथोलिक पादरियों को पदच्युत कर दिया था, अमेरिकी क्रांति में हुआ था जिसने ब्रिटिश वर्चस्व का तख्तापलट कर दिया था, साम्यवादी क्रांति में हुआ था जिसने रोमानोव राजवंश को उखाड़ फेंका था और नाज़ी क्रांति में भी यही हुआ था जिसने जर्मनी में उदारवादी व्यवस्था को उखाड़ दिया था जिसपर शत्रुओं के समक्ष आत्मसमर्पण करने का आरोप था। यह समय भी उससे अलग नहीं है केवल यह अधिक भयानक है क्योंकि मीडिया हमें पल-पल की जानकारी देता है और क्रांति के प्रभाव बढ़ाता है। ##chevron-right## ५. बहुराष्ट्रीय कंपनियों – जिसमें प्रौद्योगिकी कंपनियां भी शामिल हैं – को काफी आत्ममंथन करने की आवश्यकता है। जब आप आधार अपक्षरण और लाभ स्थानांतरण (Base Erosion and Profit Shifting) में जुटते हैं तो तब क्या आपको कल्पना नहीं थी?
[भारत के लिए कैसे २५ वर्षों में चक्र पूरा हो गया, पढ़ें अंग्रेजी में]
ट्रम्प के विरुद्ध कुछ आरोप
श्री डॉनल्ड ट्रम्प के खिलाफ उनके प्रतिद्वंदियों ने अनेकों आरोप लगाए हैं. एक सूची:
- वे एक कॉर्पोरेट-समर्थक राष्ट्रपति हैं (ट्रम्प के व्यक्तव्य दर्शाते हैं कि वे जनता के हितैषी रहेंगे)
- वे सस्ती स्वास्थ्य-सेवा व्यवस्था वापस ले लेंगे (उनका कहना है कि ओबामा-केयर महँगी थी
- वे अल्पसंख्यकों, स्त्रियों और आप्रवासियों के प्रति असंवेदनशील हैं (उनका कहना है कि अप्रवासी उन सेवाओं का लाभ लेते हैं जो असल नागरिकों हेतु हैं)
- वे नागरिकों में समतापरक लाभ-वितरण नहीं सुनिश्चित कर पाएंगे (उनका कहना है कि कर पाएंगे)
- उनका विरोध करना होगा चूंकि दक्षिणपंथ अमेरिका हेतु दीर्घावधि में खतरनाक होगा (उनका कहना है कि अमेरिका को कट्टरपंथी इस्लाम और आप्रवासियों से बचाना ही होगा)
- उनकी सोच अतिरेकी है, और हालाँकि हिलेरी क्लिंटन इतनी "बुरी" नहीं हैं हालाँकि वे कॉर्पोरेट-समर्थक दिखती हैं, अतः हमें वास्तविक जान-समर्थक आंदोलन लेन होंगे (एक उदाहरण : क्षमा सावंत, जो एक समाजवादी हैं, और कुछ स्थानीय चुनाव जीतती आ रही हैं)
- उनकी टीम के कुछ लोग अतिरेकी विचारों के हैं (स्वास्थ्य सेवाओं आदि पर) और कॉर्पोरेट हितों का प्रतिनिधित्व करते हैं
- वे बहुत सारा अच्छा कार्य जो जलवायु परिवर्तन पर हुआ है उसे नकार देंगे (वे कहते हैं कि ये एक धोखा है)
- उनकी चुनाव में मदद रूस की एक साइबर-युद्धक टीम ने की थी जिसने हिलेरी के ईमेल लीक करवा दिए थे (जो उन्होंने एक निजी कंप्यूटर सर्वर पर रखे थे जब वे विदेश मंत्री (सेक्रेटरी ऑफ़ स्टेट) थीं)
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आगे क्या हो सकता है?
इसका उत्तर है संरक्षणवाद मुक्त व्यापार विरोधी नीतियां। नाटो-विरोधी नीतियां। चीन-विरोधी नीतियां। यदि ट्रम्प और ब्रेक्सिट सही और पूर्ण परिणाम देते हैं तो भयंकर उथल-पुथल और परिवर्तन। ये है एक विस्तृत सूची :
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- चीन
- चीन को उस मुक्त बाजार मॉडल में काफी समस्याएं सहनीं पड़ेंगी जो उसकी भूराजनीतिक महत्वाकांक्षा को हवा देता है। उसे एशिया में पहले से ही शुरू की गई विशाल परियोजनाओं पर अरबों डॉलर खर्च करना जारी रखना पड़ेगा, और यदि संभवतः अमेरिका उसके लिए अपने दरवाजे बंद कर देता है तो निविष्टियां नाटकीय ढंग से धीमी हो सकती हैं। इसके उसकी आतंरिक राजनीति पर भारी और गंभीर प्रभाव पड़ सकते हैं। आगे-आगे देखिये, होता है। और यदि ट्रम्प ने रूस से मित्रता कर ली, तो चीन के प्रयास फीके पड़ सकते हैं और भारत-रूस की पुरानी मित्रता काम आ सकती है भारत के लिए बढ़िया
- अमेरिकी
- अल्पकाल में, अमेरिकी (विशेष रूप से ट्रम्प के मतदाता) सकारात्मक परिवर्तन का अनुभव करेंगे क्योंकि कार्यकारी आदेश नीतियों की दिशा में परिवर्तन लाते दिखेंगे। अगले कुछ वर्षों में यह कौन सी दिशा लेंगे यह देखना होगा भारत के लिए तटस्थ
- भारत में विनिर्माण
- बड़ी संख्या में बहुराष्ट्रीय कंपनियों को अपने व्यवसाय मॉडल्स के बारे में पुनर्विचार करने को मजबूर होना पड़ेगा जो वर्तमान में सीमा-पार श्रम के मुक्त आवागमन पर आधारित हैं। मेक इन अमेरिका सीधे मेक इन इंडिया से टकराएगा भारत के लिए बुरा
- प्रबंधन शिक्षा
- आइ.आइ.एम. सहित सभी संस्थान, उस ढांचे को छिन्न-भिन्न होते हुए देखेंगे जिसपर उसकी महिमा निर्मित है (मुक्त व्यापार, वैश्वीकरण, सीमा-पार (विदेशी) नौकरियां)। अभी तक विश्व राजनीति में आये इस धरती को हिला देने वाले विवर्तनिकी परिवर्तन पर किसी भी प्रबंधन शिक्षा के नेता की कोई प्रतिक्रिया नहीं आई है। यदि आधुनिक मुक्त व्यापार का यह मंदिर गिरता है तो क्या आइ.आइ.एम. मॉडल समृद्ध रह सकेगा? स्थानीय स्तर पर पतंजलि की निखरती कांति को वैसे उनके उत्पादों की कोई आवश्यकता नहीं है! भारत के लिए बुरा (या अच्छा)?
- सूचना प्रौद्योगिकी क्षेत्र और फार्मा क्षेत्र
- भारत को कुछ क्षेत्रों में लाभ होगा तो कुछ क्षेत्रों में हानि होगी। यदि आपके पास किसी ऐसी सूचना प्रौद्योगिकी कंपनी के शेयर हैं जो श्रम लागत अंतरपणन पर फलती-फूलती है (जो लगभग सभी कंपनियां हैं!) तो आपके लिए बुरी खबर है। जैसे ही वीजा निर्बंध आयेंगे, इनका मूल्यांकन तेजी से गिर सकता है। (यदि ट्रम्प ने उच्च कौशल H1B वीसा हेतु अलग से ढील दे दी तो बात अलग है)। अल्प अवधि में भारतीय दवाई निर्माताओं पर भी गाज गिर सकती है भारत के लिए बुरा
- भारतीय रक्षा क्षेत्र
- यदि आप भारत की भूराजनीति और रक्षा के किसी भाग का प्रबंधन करते हैं तो आपके लिए अच्छी खबर हो सकती है क्योंकि कट्टरपंथी इस्लाम पर अमेरिकियों का कठोर डंडा चलेगा और चूंकि दक्षिण चीन सागर के द्वीप अमेरिका की जांच के घेरे में आयेंगे। अमेरिका भारत को रक्षा उपकरण तो बेचेगा, किन्तु शायद प्रौद्योगिकी हस्तांतरण न करे भारत के लिए बढ़िया से तटस्थ
- ईरान
- ट्रम्प शायद ओबामा द्वारा किये गए ईरान परमाणु अनुबंध को ठुकरा दें. भारत पर अधिक प्रभाव नहीं पड़ेगा भारत के लिए तटस्थ
- कट्टरपंथी इस्लाम
- कट्टरपंथी इस्लामिक संगठनों पर खतरा है। संभव है कि ट्रम्प बुरी तरह से संपूर्ण विश्व में उनके पीछे पड़ सकते हैं। यदि शपथ-ग्रहण समारोह के दौरान उनके भाषण को सही माना जाए तो यह लगता है कि वे सच्चे अर्थों में उनसे घृणा करते हैं। वास्तव में यह संभावना भी असंभव नहीं लगती कि वे अमेरिका में संपूर्ण मुस्लिमों के प्रवेश को पूरी तरह से प्रतिबंधित कर दें भारत के लिए बढ़िया
- विश्व व्यापार संगठन (WTO)
- ऐसा लगता है कि यदि ट्रम्प अपनी धमकियों (वादों) पर कार्यवाही करते हैं तो विश्व व्यापार संगठन बिखर जाएगा। विश्व व्यापार संगठन के अध्यक्ष रोबर्टो एज़ेवेदो अभी तक इस मामले पर खामोश हैं। टीपीपी (ट्रांस-प्रशांत भागीदारी) मृत समान ही है। टीटीआईपी शीत गृह में है। उनके व्यापार प्रतिनिधि नियुक्त हुए रोबर्ट लाइटहिज़र ने पहले ही कहा है कि चीन के साथ व्यापार घाटा एक बड़ा खतरा है। स्वैच्छिक व्यापार निर्बंध वापस आ सकते हैं (जो विश्व व्यापार संगठन के आने से ख़त्म हुए थे)। नाफ्टा पहले ही काफी दबाव में है (मेक्सिको द्वारा नौकरियां हड़पने के आरोपों के चलते) भारत के लिए बुरा
- जलवायु परिवर्तन
- ट्रम्प इसे लेकर उत्साहित नहीं हैं। इससे भारत को प्रत्यक्ष तो कोई हानि नहीं पहुचेगी, किन्तु जलवायु परिवर्तन से लड़ने के प्रयासों को चोट पहुचेगी भारत के लिए तटस्थ
भारत पर ट्रम्प के बयान
मैं हिंदुओं का बहुत बड़ा प्रशंसक हूँ। मैं भारत का बहुत बड़ा प्रशंसक हूँ
यदि मैं राष्ट्रपति चुन लिया गया, भारतीय और हिंदू समुदाय का व्हाइट हाउस में एक सच्चा मित्र होगा। यह बात में आपको निश्चित आश्वासन दे सकता हूँ
नरेंद्र मोदी एक महान व्यक्ति हैं। मैं उनकी सराहना करता हूँ। उन्होंने उर्जावान तरीके से भारतीय नौकरशाही को बदल दिया है
भारतीयों और हिंदुओं की पीढ़ियों ने हमारे देश (अमेरिका) को समृद्धि प्रदान की है
आप ऐसी नीतियों की अनुमति नहीं दे सकते जो उन व्यापारों (भारत, जापान, वियतनाम, चीन, मेक्सिको से) को अमेरिकियों के व्यापारों को छीनने की अनुमति देते हैं, जैसे किसी बच्चे से कैंडी छीन ली जाए
इस बीच, राष्ट्रपति ट्रम्प पहले की ही तरह आक्रामक बने हुए हैं। उनके समर्थक कहते हैं वे वही कर रहे हैं जो उनके वादे थे, और विरोधी कह रहे हैं उनके सभी निर्णय गलत हो रहे हैं।
Don't believe the main stream (fake news) media.The White House is running VERY WELL. I inherited a MESS and am in the process of fixing it.— Donald J. Trump (@realDonaldTrump) February 18, 2017
The FAKE NEWS media (failing @nytimes, @NBCNews, @ABC, @CBS, @CNN) is not my enemy, it is the enemy of the American People!— Donald J. Trump (@realDonaldTrump) February 17, 2017
Crimea was TAKEN by Russia during the Obama Administration. Was Obama too soft on Russia?— Donald J. Trump (@realDonaldTrump) February 15, 2017
I am so proud of my daughter Ivanka. To be abused and treated so badly by the media, and to still hold her head so high, is truly wonderful!— Donald J. Trump (@realDonaldTrump) February 11, 2017
और ये रहा इस विषय पर हमारा विस्तृत व्याख्यान। सीखें और आनंद लें!
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[बोधि प्रश्न हल करें ##question-circle##]
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