मानवता ने इतनी ऊष्मा बनायी है जो उसकी अभिलाषाएं भस्म कर दे। हमारा ग्रह विनाश की कगार पर है।
मनुष्य को मिली चुनौती
वैश्विक ऊष्मन, ग्रीन हाउस गैसों का उत्सर्जन, जैव विविधता का संरक्षण, ओजोन परत में कमी और पर्यावरणीय अपक्षरण ऐसे शब्द हैं जो आज के पूंजीवाद और औद्योगिक उत्पादन के दृढ संकल्प दिग्गजों के उत्साह को ठंडा कर सकते हैं।
पिछले वर्ष की समाप्ति पर यह घोषणा की गई थी कि वर्ष २०१५ पृथ्वी पर अब तक का सबसे गर्म वर्ष था। वर्ष २०१६ ने भी कोई राहत नहीं दी है और यह अनुमान लगाया जा रहा है कि यह वर्ष २०१५ से भी अधिक गर्म होगा। क्या इसका अर्थ यह है कि आने वाला प्रत्येक वर्ष पिछले वर्ष की तुलना में अधिक बुरा होगा? इस प्रश्न का उत्तर संभवतः सकारात्मक होगाऔर यह तभी रुक सकता है यदि हम अब तक किये गए उपायों से कहीं अधिक तेज गति से इसे रोकने के लिए कदम नहीं उठाते हैं। विश्व अपरिवर्तनीय रूप से खतरे की ओर बढ रहा है, और अब कार्रवाई नितांत आवश्यक है।
अब एक सरल किन्तु असुविधाजनक सत्य -
जलवायु परिवर्तन का निर्माण होता है विश्व के सबसे समृद्ध लोगों द्वारा, और इसकी कीमत चुकाते हैं विश्व के सबसे गरीब लोग व देश। विश्व के ७ सबसे अमीर देशों ने - जिसमें अमेरिका सबसे आगे रहा - आज के वैश्विक उष्मन हेतु जिम्मेदार जीवाश्म ईंधन का ६३% जलाया है।
जलवायु परिवर्तन निश्चित ही अनेकों आपदाओं का पैमाना बढ़ाने में अपनी भूमिका निभा रहा है - भारत की बात करें, तो हम ये कुछ बता सकते हैं (क) सियाचिन भूस्खलन २०१६, (ख) उत्तराखंड और हिमाचल में वनों की आग, (ग) वरदा तूफ़ान (चेन्नई), (घ) उत्तरी फलोदी (राजस्थान) में अब तक का सबसे अधिक तापमान (५१ अंश सेल्सियस)!
[इस बोधि को अंग्रेजी में पढ़ें]
यदि हम स्थिति को किसी सामान्य व्यक्ति को समझाना चाहें तो सामान्य कारण और परिणाम संभवतः इस प्रकार दिखेंगे -
अत्यधिक भौतिक उपभोग के लिए उत्पादन आवश्यक है ग्रीनहाउस गैस उत्सर्जन वैश्विक ऊष्मन हिम शिखरों का पिघलना विश्व स्तर पर तटीय क्षेत्रों में बाढ की स्थिति व्यापक पैमाने पर विनाश
मैं नहीं, मैं नहीं!
वर्तमान स्थिति के लिए कौन जिम्मेदार है इस मासूम प्रश्न के लिए हमें उतना ही मासूम उत्तर मिलता है - हम स्वयं। क्या हम यह साबित करना चाहते हैं कि विकास का अर्थ है विनाश? इस प्रश्न का उत्तर हम निश्चित रूप से नहीं में ही देंगे। परंतु पिछले 100 वर्षों के दौरान बेहतर भौतिक जीवन की चाह में हमनें यही किया है। जान-बूझ कर या अनजाने में हमने प्रकृति को नष्ट करने का कोई अवसर नहीं गँवाया है। विभिन्न रिपोर्टें दर्शाती हैं कि औद्योगीकरण के नाम पर विकसित विश्व -जो ऊर्जा का सर्वाधिक विशाल उपभोक्ता है - ही सर्वाधिक ग्रीनहाउस गैस उत्सर्जनों और इसके परिणामस्वरूप हुई हानि के लिए जिम्मेदार है।
चेतावनी लगातार जारी की जा रही है कि हिमनद और हिमशिखर तेजी से पिघल रहे हैं। आर्कटिक और अंटार्कटिक क्षेत्र तेजी से सिकुडते जा रहे हैं जिसका परिणाम समुद्रों के जलस्तर में तेज वृद्धि में हो रहा है। अमेरिकी राष्ट्रीय विज्ञान अकादमी ने वैश्विक ऊष्मन से विश्व के तटवर्ती शहरों पर पडने वाले प्रभावों का अनुमान लगाया है। अपने इस अध्ययन में उन्होंने विश्व तापमानों में 2 से 4 अंश की वृद्धि को शामिल किया है। यदि हम केवल मुंबई पर ध्यान केंद्रित करें तो अध्ययन में कहा गया है कि यदि वैश्विक तापमानों में 2 अंश की वृद्धि जारी रहती है तो मुंबई का गेट वे ऑफ इंडिया चारों ओर से पानी से घिर जाएगा। और यदि वैश्विक तापमानों में 4 अंश की वृद्धि होती है तो आधी मुंबई अरब सागर का हिस्सा बन जाएगी। विश्व के अन्य महत्वपूर्ण तटवर्ती शहरों की स्थिति भी इससे अलग नहीं है।
राष्ट्रीय समुद्री और वायुमंडलीय प्रशासन (National Oceanic and Atmospheric Administration - NOAA) ने "२०१६ आर्कटिक रिपोर्ट कार्ड" जारी किया - जिसमें कुछ भयानक सत्य हैं - (१) २०१६ आर्कटिक का सबसे गर्म वर्ष रहा, (२) १९०० के बाद, ये क्षेत्र ३.५ अंश से गर्म हुआ है, जो विश्व का दोगुना है, (३) बर्फ की कमी अब साफ़ दिखती है, (४) रिकॉर्ड स्तर का कम बर्फ-आच्छादन है, (५) रिकॉर्ड स्तर की कम समुद्री बर्फ है।
नॉर्वे के वैज्ञानिकों ने बताया कि उन्होने बेहद पतली बर्फ बनती देखी (केवल ३ - ४ फ़ीट मोटी) और वो टूटती भी जल्दी है - इसी प्रकार की बर्फ की कमी अंटार्टिक पर भी है. ये निश्चित सबूत हैं कि जलवायु परिवर्तन हो रहा है।
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राष्ट्रीय समुद्री और वायुमंडलीय प्रशासन (National Oceanic and Atmospheric Administration - NOAA) ने "२०१६ आर्कटिक रिपोर्ट कार्ड" जारी किया - जिसमें कुछ भयानक सत्य हैं - (१) २०१६ आर्कटिक का सबसे गर्म वर्ष रहा, (२) १९०० के बाद, ये क्षेत्र ३.५ अंश से गर्म हुआ है, जो विश्व का दोगुना है, (३) बर्फ की कमी अब साफ़ दिखती है, (४) रिकॉर्ड स्तर का कम बर्फ-आच्छादन है, (५) रिकॉर्ड स्तर की कम समुद्री बर्फ है।
नॉर्वे के वैज्ञानिकों ने बताया कि उन्होने बेहद पतली बर्फ बनती देखी (केवल ३ - ४ फ़ीट मोटी) और वो टूटती भी जल्दी है - इसी प्रकार की बर्फ की कमी अंटार्टिक पर भी है. ये निश्चित सबूत हैं कि जलवायु परिवर्तन हो रहा है।
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पेरिस सम्मेलन ट्रम्प की भेंट चढेगा?
पेरिस शिखर परिषद् ने पहले वैश्विक ऊष्मन को औद्योगीकरण-पूर्व के स्तर से 2 अंश सेलसियस कम रखने पर स्वीकृति दी थी और बाद में उसने निर्णय किया कि इसे 1.5 अंश सेलसियस से कम रखने का प्रयास किया जाए। यह सीमा निर्धारित की गई थी क्योंकि यह इस पृथ्वी ग्रह को ध्रुवीय बर्फ के पिघलने जैसी आपदाओं से दूर रखने के बेहतर अवसर प्रदान करेगी, जो सौर विकिरण और इससे भी अधिक वैश्विक ऊष्मन को विक्षेपित करने में सक्षम नहीं होगी। कई देशों ने अपने उत्सर्जनों को घटाने पर सहमति दिखाई, और इसकी मात्रा होगी हर राष्ट्र द्वारा स्वयं तय अर्थात - राष्ट्रीय निर्धारित योगदान (Nationally Determined Contributions - NDCs).
अप्रैल 2016 में आयोजित जलवायु परिवर्तन पर अंतर सरकारी पैनल (IPCC - Intergovernmental Panel on Climate Change) के 43 वें अधिवेशन में यह स्वीकार किया गया कि एआर 6 संश्लेषण की रिपोर्ट को 2022 तक अंतिम रूप दे दिया जाएगा जो पहले यूएनएफसीसी वैश्विक निर्दिष्टकालिक अभ्यास की दृष्टि से समय पर होगी।
डॉनल्ड ट्रम्प की अमेरिकी चुनाव में हुई विजय ने बड़ी चिंताएं फैला दीं, और इसके अनेक कारण हैं
- उन्होंने सार्वजानिक रूप से कहा था "जलवायु परिवर्तन असल में नहीं हो रहा, ये तो चीनियों द्वारा फैलाया झूठ है ताकि अमेरिकी विनिर्माण को रोक जा सके!" यदि उन्होंने अपनी बात पर अड़े रहने का निर्णय लिया, तो वैश्विक उष्मन चर्चा और कार्ययोजनाओं को बड़ा धक्का लग सकता है।
- उनकी टीम में, अभी तक, जलवायु परिवर्तन नकारने वाले आये हैं, और वे कॉर्पोरेट प्रमुख जो जीवाश्म ईंधन से प्रेम करते हैं। श्री स्कॉट पृइट अब उसी ई.पी.ए. के मुखिया बनेंगे जिसे उन्होंने मीथेन गैस उत्सर्जन मामले में २०१६ की शुरुआत में अदालत में घसीटा था, और श्री रेक्स टिलरसन होंगे (एस्सो मोबिल के प्रमुख) जो आर्कटिक, साइबेरिया और काला सागर में इसलिए तेल खनन नहीं कर पाए थे कि क्रिमीआ मामले के बाद रूस पर अमेरिका ने प्रतिबन्ध लगा दिए थे! ये बातें पर्यावरण हितैषियों को डराती हैं।
- किसी मीडिया स्तम्भकार ने यूँही श्री ट्रम्प को "एंथ्रोपोसीन (मानव-प्रभावित भूगर्भीय युग) का पहला प्रजानायक (डेमागोग)" नहीं कहा होगा!
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- COP, UNFCCC, IPCC - एक जटिल नामावली को सरल बनाएं
- COP का अर्थ है "कांफ्रेंस ऑफ़ द पार्टीज" अर्थात "दलों का सम्मलेन। ये संयुक्त राष्ट्र जलवायु परिवर्तन पर संस्थागत सम्मेलन (United Nations Framework Convention on Climate Change (UNFCCC)) का सर्वोच्च निर्णयकर्ता निकाय है, जिसे १९९२ में अर्थ समिट (Earth Summit) जो रियो द जनेरो में हुई थी, में हस्ताक्षर हेतु खोला गया था, और १९९४ में जो लागू हुई। उसके बाद इसका (UNFCCC का) सचिवालय जिनेवा में स्थापित हुआ। १९९५ में इसे जर्मनी के बॉन ले जाया गया, जब बर्लिन में "दलों का पहला सम्मेलन (First Conference of the Parties (COP 1)) आयोजित हुआ। तबसे आज तक, बावीस ऐसे सम्मेलन (COPs) हो चुके हैं, और पेरिस में दिसम्बर २०१५ का सम्मेलन काफी मशहूर हुआ। बावीसवां सम्मलेन (COP 22 ) मोरक्को के मर्राकेश (Marrakech) शहर में ७ से १८ नवम्बर २०१६ को आयोजित हुआ। इस सम्मलेन (COP) को इसलिए बनाया गया था ताकि सभी दलों (राष्ट्रों) के जलवायु परिवर्तन के प्रयासों को एक निश्चित दिशा दी जा सके। ये सम्मेलन हर वर्ष मिलता है और UNFCCC के क्रियान्वयन की, तथा ग्रीनहाउस गैसों और जलवायु परिवर्तन से लड़ने हेतु बने कानूनी यंत्रों समीक्षा करता है। जलवायु परिवर्तन पर अंतर-सरकारी पैनल (Intergovernmental Panel on Climate Change - IPCC) १९८८ में बना, और इसे विश्व मौसम-विज्ञान संगठन (World Meteorological Organization (WMO) ) और संयुक्त राष्ट्र पर्यावरण कार्यक्रम (United Nations Environment Programme UNEP ) ने मिलकर बनाया था। IPCC को एक ऐसे निकाय के रूप में मान्यता प्राप्त है जो सम्मेलन सचिवालय (Secretariat to the Convention) को वैज्ञानिक सहयोग देता है। १९९० से इस समूह ने हर पांच वर्षों में एक आंकलन रपट (Assessment Report) लाई है, जिसमे जलवायु विज्ञानं के प्रमुख विशेषज्ञ एक साथ कार्य करते हैं। हमारे गृह का पारिस्थिकी तंत्र खतरे में है। अनेकों वैज्ञानिक अध्ययनों ने ये सिद्ध किया है। वे प्राकृतिक प्रक्रियाएं जो इस गृह के जलवायु तंत्र को, और इसलिए सभी जीवित नस्लों को, थामे रखती हैं, वे अव्यवस्थित हो गयी हैं। २००५ का सम्मेलन COP 11 था, और इसे CMP 1 (Meeting of the Parties) भी कहते हैं, चूंकि ये क्योटो मसौदे (Kyoto Protocol) से जुड़े दलों का पहला सम्मेलन भी था जो १९९७ के अपने सम्मेलन के बाद पहली बार मिल रहे थे। अतः, २०१५ का सम्मेलन COP 21 था या CMP11 था। २०१६ के लिए, ये COP 22 / CMP 12 / CMA 1 था। COP 23 जर्मनी के बॉन में होने वाला है।
क्या हमारा गति का अभाव हमारे लिए चिंता का विषय नहीं होना चाहिए? बारीकियों पर बहस में हम बहुमूल्य समय व्यर्थ गंवां रहे हैं। हमने स्वयं को पारिस्थितिकी तंत्र और जैवविविधता के संपूर्ण विनाश के रास्ते के निकट लाकर खडा कर दिया है। वैश्विक स्तर पर त्वरित और संयुक्त कार्रवाई होनी चाहिए। आइये हम सभी 'पृथ्वी बचाओ' अभियान का हिस्सा बनें।
समय और ज्वार किसी के लिए इंतजार नहीं करते हैं। इस समय हमें स्वयं को ज्वार से बचाना है।
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