भूमंडलीकरण और विश्व अर्थव्यवस्था

वैश्वीकरण की आगे बढ़ती निरंतर दौड़ हाल के वर्षों में धीमी हो चली है, भले ही थम न गयी हो

एक आर्थिक दर्शन के रूप में भूमंडलीकरण (वैश्वीकरण) को आमतौर पर संरक्षणवाद के विपरीत माना जाता है। हालांकि यह एक सटीक परिभाषा नहीं है फिर भी वैश्वीकरण का एक लंबा इतिहास रहा है। वैश्वीकरण के जन्म को लेकर एक विशिष्ट समयावधि पर सहमत होने में विद्वानों और विचारकों को कठिनाई महसूस होती है। कुछ का मत है कि वैश्वीकरण की शुरुआत प्रारंभिक मानवी घुमंतू मार्गों के समय से हुई, जबकि अन्य कुछ विद्वानों का मत है कि यह एक अधिक समकालीन घटना है जिसका जन्म उपनिवेशवाद के आवेगों के कारण हुआ। कुछ ऐसे भी अन्य विद्वान हैं जो इन दोनों ही समयावधियों को नकारते हैं और इसे शुद्ध रूप से एक आधुनिक घटना मानते हैं।

ऐतिहासिक अध्ययन दर्शाते हैं कि विश्व के विभिन्न भागों ने हमेशा से अन्य वियोजित (संचार से कटे हुए) भागों को प्रभावित किया है, जिसमें जिस प्रकार के भी संचार के साधन उपलब्ध थे उनके माध्यम से यह करने का प्रयास किया गया, और वर्तमान वैश्वीकरण की स्थिति पूर्व में हुई उन्नति और प्रगति मात्र है। हम अफ्रीका से प्रारंभिक काल में  आदिम मनुष्यों के प्रवासन को देख सकते हैं, साथ ही इस यात्रा की कडियों के रूप में हम भारतीय और चीनी रेशम व्यापार मार्गों की स्थापना को भी देख सकते हैं।

हालांकि अपने आधुनिक स्वरुप में वैश्वीकरण की शुरुआत द्वितीय विश्व युद्ध के बाद 1940 के दशक के उत्तरार्ध काल में हुई, जब अमेरिका ने स्वयं को एक निर्विवाद वैश्विक महाशक्ति के रूप में स्थापित किया। केवल कुछ समय के लिए ही, 1980 के दशक तक, इसे सोवियत संघ से चुनौती प्राप्त हुई। आज का वैश्वीकरण शक्तिशाली बहुराष्ट्रीय निगमों का कार्य है, जिन्होंने विशाल संसाधनों और पहुँच के बल पर  वैश्विक स्तर पर विशाल सांस्कृतिक और भौतिक प्रभाव डाला है। एक सामान्य नागरिक के लिए वैश्विक स्तर पर यात्रा और आधुनिक संचार के साधनों की सरल उपलब्धता ने जीवन और व्यापार को काफी सरल बना दिया है।
 

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बीसवीं सदी के अंतिम दो दशकों के दौरान वैश्वीकरण अपने चरम शिखर पर था, जब वैश्विक आर्थिक गतिविधियों में असाधारण रूप से वृद्धि हुई, जिसने आधुनिक विश्व के अधिकांश भागों को एकीकृत किया। व्यापार, वित्तीय और सांस्कृतिक वैश्वीकरण अजेय हैं, ऐसा प्रतीत  होने लगा। 

वैश्वीकरण के अपने दोष और मंदी के दौर के अनुभव भी हैं जिन्हें "हम 99 प्रतिशत हैं" (We are the 99%) जैसे विरोध प्रदर्शनों से हम समाचारों में देखते हैं। परंतु इसके लाभों में ऑनलाइन पोर्टल्स के उपयोग से सीमापार प्रतिभाओं और अवसरों के निर्बाध एकीकरण के माध्यम से, रोजगार के बढे हुए अवसर शामिल हैं। वस्तु व्यापार भी और अधिक प्रतिस्पर्धात्मक हो गया है जिसका परिणाम वस्तुओं और सेवाओं की बेहतर गुणवत्ता, और अपेक्षाकृत कम कीमतों में हुआ है। अब उपभोक्ताओं को पसंद के अनुसार विकल्प उपलब्ध हैं। सामाजिक और सांस्कृतिक रूप से लोग दूसरों के प्रति अधिक सहिष्णु और खुले हुए हैं।
 

ध्यान भटकाने वाले - आलोचक - तर्क देते हैं कि वैश्वीकरण ने समृद्ध लोगों को असंभव रूप से और अधिक समृद्ध किया है और सामाजिक असमानताओं की खाई को बेतहाशा रूप से और अधिक चौडा किया है। संसाधनों का दोहन समृद्ध जनसंख्या के कुछ मुट्ठी भर अमीरों द्वारा ही किया जाता है। बहुराष्ट्रीय कंपनियों पर अनुचित कार्य परिस्थितियों, व्यापक पर्यावरणीय प्रदूषण, पारिस्थितिकी तंत्र की क्षति और प्राकृतिक संसाधनों के कुप्रबंधन के आरोप लगते हैं।

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वैश्वीकरण की प्रक्रिया के दौरान व्यापार संघों और समझौतों में नाटकीय रूप से परिवर्तन हुए हैं। विश्व आर्थिक परिदृश्य पर बहुविध क्षेत्रीय आर्थिक खंड (Regional Trade Blocs) उभरे 
हैं, जिनमें आर्थिक संघ, क्षेत्रीय मुक्त-व्यापार क्षेत्र और व्यापार खंड शामिल हैं। परंतु इनमें से सभी सफल नहीं हो पाए हैं। यूरोपीय संघ धीरे-धीरे विघटित होता प्रतीत होता है, हालांकि यह भी विवादस्पद है। वैश्वीकरण के औचित्य को साबित करने के लिए, पर्याप्त मुक्त अवसरों की निर्मिति हेतु विश्व व्यापार संगठन (WTO) तेजी से बढता हुआ प्रतीत नहीं होता। नई वैश्विक व्यापार मंडलियों की निर्मिति के माध्यम से - मसलन टीपीपी और टीटीआईपी जैसे समझौते - मुक्त व्यापार के लिए खतरा निर्माण कर रहे हैं। 
 
यह अशांत यात्रा विश्व को कहाँ ले जा रही है? मानवजाति के भविष्व की ही तरह यह भी एक खुला प्रश्न बना हुआ है। आने वाले महीनों में इस रोचक विषयवस्तु पर हम और अनेक बोधियाँ निर्मित करेंगे। पढते रहिये।  

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Hindi Bodhi Booster: भूमंडलीकरण और विश्व अर्थव्यवस्था
भूमंडलीकरण और विश्व अर्थव्यवस्था
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