अधोसंरचना किसी भी आधुनिक विकास की आधारशिला होती है। इसका संबंध किसी भी देश या क्षेत्र की अर्थव्यवस्था की उचित वृद्धि या विकास को सुविधाजनक...
अधोसंरचना किसी भी आधुनिक विकास की आधारशिला होती है। इसका संबंध किसी भी देश या क्षेत्र की अर्थव्यवस्था की उचित वृद्धि या विकास को सुविधाजनक बनाने के लिए आवश्यक व्यवस्थाओं, सुविधाओं और संरचनाओं से है। इसमें उपयुक्त सडकें और पुल, बिजली आपूर्ति, पर्याप्त मात्रा में स्वच्छ पेय जल, सिंचाई की सुविधाएं दूरसंचार एवं परिवहन, उर्वरक, बीज, सामाजिक अधोसंरचना इत्यादि शामिल हैं।
संक्षेप में कहा जाये तो, अधोसंरचना = अर्थव्यवस्था का ढांचा
अधोसंरचना की विभिन्न श्रेणियां औद्योगिक, परिवहन, वित्तीय, सामाजिक, प्रशासनिक, न्यायिक, शैक्षणिक इत्यादि हो सकती हैं। इस प्रकार के वर्गीकरण में हम एक विशिष्ट अंतिम उपयोग को मानकर चलते हैं और उस वर्ग या श्रेणी को परिभाषित करते हैं। इन सभी वर्गों या श्रेणियों में अनेक आतंरिक घटक होंगे। इस प्रकार, शैक्षणिक अधोसंरचना में विद्यालय, महाविद्यालय, विश्वविद्यालय, अनुसंधान संस्थान, नियामक निकाय इत्यादि शामिल होंगे।
एक आधुनिक समाज में प्रत्येक नागरिक को उत्तरजीविता के लिए अधोसंरचनात्मक सुविधाओं की आवश्यकता होती है। आज हम अपने दैनंदिन जीवन में जिन सुविधाओं का उपयोग कर रहे हैं, उनमें से कुछ या सभी सुविधाओं के बिना अपने जीवन की कल्पना कीजिये। यदि हमें इन सुविधाओं से थोडे समय के लिए भी वंचित किया जाता है तो जो दहशत निर्माण होती है वह हम सभी को अच्छी तरह से ज्ञात है ! उन क्षणों को याद कीजिये जब अचानक बिजली चली जाती है तो वह अपने पीछे एक गहरी खामोशी और अंधकार छोड जाती है। उन कुछ घंटों में हमें एक पूर्ण रूप से अलग प्रकार के जीवन का अनुभव होता है। क्या होता है जब शहर की सार्वजनिक व्यवस्था अचानक हडताल कर देती है, और हमें तत्काल रूप से किसी दूरस्थ स्थान पर पहुंचना आवश्यक है? अधोसंरचना सुविधाएं हमारे आधुनिक अस्तित्व की बुनियाद हैं। वे हमारे जीवन में एक प्रकार की प्रतिष्ठा लाती हैं जिसे हम अब प्रदत्त अधिकार के रूप में मानकर चलते हैं।
संक्षेप में कहा जाये तो, अधोसंरचना = अर्थव्यवस्था का ढांचा
अधोसंरचना की विभिन्न श्रेणियां औद्योगिक, परिवहन, वित्तीय, सामाजिक, प्रशासनिक, न्यायिक, शैक्षणिक इत्यादि हो सकती हैं। इस प्रकार के वर्गीकरण में हम एक विशिष्ट अंतिम उपयोग को मानकर चलते हैं और उस वर्ग या श्रेणी को परिभाषित करते हैं। इन सभी वर्गों या श्रेणियों में अनेक आतंरिक घटक होंगे। इस प्रकार, शैक्षणिक अधोसंरचना में विद्यालय, महाविद्यालय, विश्वविद्यालय, अनुसंधान संस्थान, नियामक निकाय इत्यादि शामिल होंगे।
एक आधुनिक समाज में प्रत्येक नागरिक को उत्तरजीविता के लिए अधोसंरचनात्मक सुविधाओं की आवश्यकता होती है। आज हम अपने दैनंदिन जीवन में जिन सुविधाओं का उपयोग कर रहे हैं, उनमें से कुछ या सभी सुविधाओं के बिना अपने जीवन की कल्पना कीजिये। यदि हमें इन सुविधाओं से थोडे समय के लिए भी वंचित किया जाता है तो जो दहशत निर्माण होती है वह हम सभी को अच्छी तरह से ज्ञात है ! उन क्षणों को याद कीजिये जब अचानक बिजली चली जाती है तो वह अपने पीछे एक गहरी खामोशी और अंधकार छोड जाती है। उन कुछ घंटों में हमें एक पूर्ण रूप से अलग प्रकार के जीवन का अनुभव होता है। क्या होता है जब शहर की सार्वजनिक व्यवस्था अचानक हडताल कर देती है, और हमें तत्काल रूप से किसी दूरस्थ स्थान पर पहुंचना आवश्यक है? अधोसंरचना सुविधाएं हमारे आधुनिक अस्तित्व की बुनियाद हैं। वे हमारे जीवन में एक प्रकार की प्रतिष्ठा लाती हैं जिसे हम अब प्रदत्त अधिकार के रूप में मानकर चलते हैं।
दुर्भाग्य से अधोसंरचना विकसित करना आसान काम नहीं है। न ही यह सस्ता है, और न ही यह त्वरित उपाय के रूप में है। इसके लिए बडे पैमाने पर कठोर मानवी प्रयास, नियोजन और निवेश की आवश्यकता होती है। इसके लिए दूरदृष्टि के साथ-साथ धैर्य की भी आवश्यकता होती है। इसके लिए एक एकीकृत कार्ययोजना और दृष्टिकोण की आवश्यकता होती है।
पिछले सात दशकों के दौरान इस मोर्चे पर भारत ने काफी प्रगति की है। आज हम विश्व की सबसे तेजी से बढने वाली अर्थव्यवस्था हैं (जीडीपी वृद्धि दर के अनुसार), और साथ ही हम सर्वाधिक आकर्षक निवेश गन्तव्य भी हैं। परंतु इसीके साथ यह भी वास्तविकता है कि हम उस प्रकार का निवेश आकर्षित कर पाने में सफल नहीं हुए हैं जो हमारे लिए आवश्यक है। 1979 के बाद चीन ने इस दृष्टि से काफी आक्रामक रुख अपनाया है जिसके माध्यम से उसने विशाल मात्रा में अमेरिकी निवेश आकर्षित किया और अपने विनिर्माण आधार को अत्यंत उच्च स्तर पर लाकर रख दिया। विगत दशकों के दौरान इस प्रकार के विदेशी प्रत्यक्ष निवेश के निर्बाध प्रवाह की दृष्टि से हमारी नीतियों में निरंतरता का अभाव रहा है, हालांकि इस दौरान कुछ अत्यंत आशावादी अवधियां भी रही हैं।
हमने हमारे प्रमुख शहरों और नगरों में अधोसंरचना की स्थिति का अनुभव किया है। मानसून के दौरान यहाँ का जीवन कई दिनों के लिए लगभग थम जाता है। यहाँ तक कि हमारी राष्ट्रीय राजधानी दिल्ली, हमारी वाणिज्यिक राजधानी मुंबई, और बेंगलुरु, चेन्नई और हैदराबाद जैसे महत्वपूर्ण दक्षिणी शहरों में स्थिति अधिक उत्साहजनक नहीं है। ग्रामीण और अर्ध -शहरी क्षेत्रों में तो स्थितियां और भी अधिक चुनौतीपूर्ण हैं।
तेजी से विकसित की जाने वाली अधोसंरचना के महत्त्व के विषय में कोई संदेह नहीं है, परंतु इससे भी अधिक महत्वपूर्ण है कि भविष्य को दृष्टि में रखते हुए हम अपने अधोसंरचना विकास का किस प्रकार से नियोजन करते हैं। देह में ऐसे उदाहरणों की कमी नहीं है जब विभिन्न अधोसंरचना परियोजनाएं पहले शुरू की गई और बाद में किसी नए विचार को स्थान देने के लिए उन्हें निरस्त करना पडा। यह भारी राष्ट्रीय अपव्यय से कम नहीं है। रचना से लेकर क्रियान्वयन तक हमें एक निर्बाध दृष्टिकोण अपनाने की आवश्यकता है, हालाँकि आवश्यकता के अनुसार इसमें कुछ मामूली फेर-बदल किये जा सकते हैं।
भारत भविष्य में छलांग लगाने के लिए तैयार है। राष्ट्र के इस कायाकल्प का एक बडा हिस्सा निर्विवाद रूप से अधोसंरचना विकास पर अधिक जोर होगा। प्रत्येक बडे विचार पर, चाहे वह अमृत (AMRUT) हो, या सभी के लिए आवास (Housing for All) हो, उजाला योजना हो या सागरमाला योजना हो, समग्र रूप से विचार-मंथन आवश्यक है ताकि किये गए निवेश के सर्वश्रेष्ठ प्रतिफल प्राप्त हो सके।
भारत की कुछ अति.महत्वाकांक्षी अधोसंरचना परियोजनाएं निम्नानुसार हैं ; एक संक्षिप्त सूची:- आगरा-लखनऊ द्रुतगति मार्ग (2.2 अरब डॉलर)
- ये द्रुतगति मार्ग एक रु.१५,००० करोड़ ($ २.२ बिलियन) की लागत से बना एक्सप्रेसवे है, जिसके अनेक उद्देश्यों में शामिल हैं आवागमन समय में कटौती करना, प्रदूषण घटाना और कार्बन उत्सर्जन कम करना। ये भारत का सबसे लंबा ६-लेन द्रुतगति मार्ग है और इसका औपचारिक उद्घाटन नवम्बर २०१६ में किया गया।
- दिल्ली - मुंबई आर्थिक गलियारा (90 अरब डॉलर)
- इसका लक्ष्य राजधानी दिल्ली और मुंबई के बीच समर्पित गलियारे के आसपास सात स्मार्ट शहर निर्मित करने का है। यह गलियारा विनिर्माण और प्रसंस्करण क्षेत्रों में लगभग 30,00,000 रोजगार के अवसर निर्मित करेगा।
- नवी मुंबई अंतर्राष्ट्रीय हवाईअड्डा (2.4 अरब डॉलर)
- हवाई अड्डे की सार्वजनिक.निजी भागीदारी परियोजना भूमि अधिग्रहण और पर्यावरणीय मुद्दों के कारण पहले ही काफी विलंबित हो गई है, परंतु फिर भी इसका विकास-पूर्व का कार्य मार्च 2015 में शुरू हो चुका है। यह परियोजना वर्ष 2019 तक पूरी होने की संभावना है।
- मुंबई का पूर्वी मुक्त-मार्ग (22 करोड़ डॉलर)
- इसका निर्माण दक्षिण मुंबई और पूर्वी उपनगरों के बीच का यात्रा समय कम करने के लिए किया गया है। यह पूर्वी मुक्तमार्ग घाटकोपर में पी मेलो मार्ग को पूर्वी द्रुतगति मार्ग से जोड़ता है। मुंबई महानगर क्षेत्र विकास प्राधिकरण (एमएमआरडीए) द्वारा निर्मित यह 16.8 कि मी लंबी दूरी का है।
- नेताजी सुभाष चंद्र बोस अंतर्राष्ट्रीय हवाई अड्डा (36.4 करोड़ डॉलर)
- यह एकीकृत टर्मिनल वार्षिक 2.5 करोड़ यात्रियों को सुविधा प्रदान कर सकता है, जो इसकी पूर्व-क्षमता प्रति वर्ष 48 लाख यात्रियों से काफी अधिक है। 195,000 वर्ग मीटर पांच-स्तरीय टर्मिनल भवन के अतिरिक्त नई व्यवस्था आधुनिक टैक्सी मार्ग और रनवे के विस्तार की सुविधा भी प्रदान करती है।
- बनिहाल-काज़ीगुंद सुरंग (28.2 करोड़ डॉलर)
- बनिहाल-काज़ीगुंद खंड में 11.2 कि.मी. लंबी पीर पंजाल सुरंग शामिल है और यह इन दोनों शहरों के बीच के यात्रा समय में कमी करता है जो कि वर्तमान में सड़क मार्ग से 35 कि.मी. है। यह खंड जम्मू क्षेत्र को काज़ीगुंद, श्रीनगर और बारामूला के बीच 119 कि मी लंबी कश्मीर घाटी रेखा से जोड़ता है
- यमुना द्रुतगति मार्ग (1.9 अरब डॉलर)
- 165 कि मी लंबा यह नियंत्रित-पहुँच द्रुतगति मार्ग, जो 6-लेन मार्ग है (जिसे 8 लेन में विस्तारित किया जा सकता है) उत्तरप्रदेश के आगरा शहर को ग्रेटर नॉएडा से जोड़ता है।यह भारत का सबसे लंबा छह-लेन नियंत्रित.पहुँच द्रुतगति मार्ग पट्टा है!
- चारनका सौर उद्यान (28 करोड़ डॉलर)
- पाटन जिले (गुजरात) के चारनका गाँव के निकट 2,000 हेक्टेयर जमीन विभिन्न विकासकर्ताओं की 19 विभिन्न परियोजनाओं का गृहक्षेत्र है। विश्व का दूसरा सबसे बड़ा फोटोवोल्टेक विद्युत् केंद्र भी यहाँ स्थित है। पूरा होने पर चारनका सौर उद्यान की क्षमता 500 मेगावाट सौर विद्युत निर्माण करने की होगी।
- चिनाब नदी रेलवे पुल (9.20 करोड़ डॉलर)
- यह परियोजना वर्ष 2019 तक पूरी होनी है, जो चिनाब नदी पर बनने वाला विश्व का सबसे ऊंचा रेलवे पुल होगा, जिसका निर्माण जम्मू कश्मीर के कटरा में नदी तल से 359 मीटर की ऊंचाई पर किया जा रहा है। 1.3 कि मी लंबा यह पुल उधमपुर-श्रीनगर-बारामुल्ला रेल लिंक (यूएसबीआरएल) परियोजना के 73 कि मी लंबे कटरा-धरम खंड का हिस्सा है।
आने वाली अनेक बोधियों में हम इन रोचक विचारों के बीच परस्पर संबंध को देखेंगे। इंतजार कीजिये!
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